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3/30/22

कशमोकश भरी जिंदगी है आजकल :-सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा





 कशमोकश भरी जिंदगी है आजकल 

हर उम्र के लोग सोचने को

मजबूर हो गए हैं आजकल


आज क्या बयां करें कहने को तो कुछ भी नही 

मुक्तसर है आजकल 


कुछ फांसले बढ़े तो बढ़ते ही गये

 इस क़दर की कहने को अभी 

कुछ भी नही बचा है आजकल

अब एक ही घर में अजनबी

हो गयें हैं बहुत आजकल


खामोशी से नही मिलता है

किसी भी सवाल का जवाब

 हर एहसास जुस्तजू हुआ है 

और कुछ नही है आजकल


हमारे होने या न होने का 

जब फर्क न हो किसी को

तो कहीं दूर निकल जाये

यही खयाल बचा है मन में आजकल


लड़खड़ा रहे हो क़दम वो 

कब मुड़ गये पीछे को न हो

एहसास इस बात का तो क्या करें समझौता 

जिंदगी का आजकल

मुंबई महराष्ट्र

स्वरचित (स्वैच्छिक)

सरिता मिश्रा पाठक "काव्यांशा


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