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4/12/22

छोटे आकार की कहानी लिखना भी एक कला है और कथाकार की कठिन उपलब्धि भी!"- मनोरमा गौतम


    ग्रामीण जीवन के संघर्ष और प्रतिकार का प्रामाणिक 

    दस्तावेज है जितेंद्र कुमार की पुस्तक अग्निपक्षी ! :सिद्धेश्वर 

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" छोटे आकार की कहानी लिखना भी एक कला है और कथाकार की कठिन उपलब्धि भी !": मनोरमा गौतम

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  " छोटी कहानियों का प्रवाह उन्हें उत्कृष्ट बनाता !": डॉ शरद  नारायण खरे 

 " जितेंद्र कुमार एक ऐसे जमीनी साहित्यकार है, जिनकी कहानियां हों या कविताएं , उनमें व्यक्त, व्यक्ति, समाज और जीवन के अंतर्मन  की व्यथा, शब्दों की कलाबाजी के बगैर भी अपना प्रभाव पाठकों के ह्रदय में छोड़ जातीं हैं l  उन्होंने अपनी रचनात्मक प्रक्रिया के संदर्भ में स्वयं कहा है कि - " मैं प्रतिदिनअपने समय, समाज और वहां के व्यापक जन जीवन को  समझने में  लगा रहता हूं ! शायद इसलिए मेरी कहानियां भी एक दिन या एक यथार्थ को पाकर संतुष्ट नहीं होतीं, बल्कि उन्हें बार-बार रचना होता है l "

                        

    फेसबुक के " अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर,भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में ऑनलाइन आयोजित" हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन " का संचालन करते हुए  तथा जितेंद्र कुमार की कथाकृति "अग्निपक्षी " पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए, संयोजक  सिद्धेश्वर ने  उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि, " अग्निपक्षी "  कथाकृति की "अग्निपक्षी " कहानी पढ़ते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि जितेंद्र कुमार की कहानियां समकालीनता से लैस है और  समय का दस्तावेज भी l "

                 , कथा  सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार जितेंद्र कुमार ने "  लंबी कहानियों के  अपेक्षा छोटे आकार वाली कहानी  की प्रासंगिकता ".विषय पर कहा कि - "  अधिक लंबी कहानी अपने मूल विषय से भटक जाती है ,इसलिए बहुत जरुरी हो तभी लंबी कहानियां अपेक्षित है ! वरना छोटे आकार वाली कहानियां  पाठकों के लिए अधिक प्रिय होती है l"

         मुख्य वक्ता डॉ शरद नारायण खरे ( म.प्र.) ने कहा कि-" छोटी कहानियों का प्रवाह उन्हें उत्कृष्ट बनाता है !

वर्तमान की व्यस्ततम् व आपाधापी वाली ज़िन्दगी में छोटी कहानियों का महत्व कहीं अधिक बढ़ गया है। यदि छोटी कहानी में कसावट है, प्रवाह है,गतिशीलता है,तो वह पाठक के मन-मस्तिष्क  को अंत तक अपनी ओर खींचे रहने में पूरी तरह से सफल होती है।"

              अपने  अध्यक्षीय  टिप्पणी में चर्चित युवा कथा लेखिका डॉ मनोरमा गौतम ( नई दिल्ली ) ने कहा कि - "छोटी कहानी लम्बी कहानी की अपेक्षा विस्तार कम लेती है उसका कलेवर भी बहुत सीमित होता हैl  लेकिन उसके भाव जबरदस्त होते हैं l छोटी कहानी लिखना भी कोई आसान बात नहीं l हर व्यक्ति या फिर हर कहानीकार या रचनाकार छोटी कहानी नहीं लिख सकता l  ये भी एक कला है , एक खूबी है, जो कि हर व्यक्ति की वश की बात नहीं l ऐसा सिर्फ कोई मंज़ा हुआ रचनाकार ही कर सकता है l बिना विस्तार दिए , बिना किसी लाग  लपेट के , सरल भाषा में, कम शब्दों में पूरी कहानी कह देना सामान्य बात नहीं है l इस तरह की कहानी लिखने वाला कोई साधारण रचनाकार नहीं हो सकता l "

                उन्होंने कहा कि "इस तरह के ऑनलाइन कार्यक्रम बहुत कम हो रहे हैं ! इसलिए संयोजक  सिद्धेश्वर जी को मैं धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने इतने सुन्दर कार्यक्रम का आयोजन किया l  निश्चित तौर पर ऐसे  आयोजनो  से युवा कथाकारों  को एक दिशानिर्देश मिलती है "

               युवा लेखिका राज प्रिया रानी ने कहा कि- " कहानी छोटी हो  या लंबी, वह जितनी समकालीन परिस्थितियों पर खड़ा उतरती है उतना ही जमीनी स्तर पर प्रभावपूर्ण एवं प्रासंगिक होती है। यशस्वी कथाकार प्रेमचंद की  छोटी हो या बड़ी कहानियां यथा  सद्गति, कफन, पूस की रात ,गोदान, प्रेमाश्रम, रंगभूमि जैसे सशक्त कथा  रचनाऐं इस बात का उदाहरण है, जिसमें कहानी का आकार   मायने नहीं रखता बल्कि कहानी सम्राट संपूर्ण परिवेश को अपने भावों में उजागर  करने में सिद्धहस्त एवं सक्षम दिख  पड़ते हैं । उसी प्रकार जयशंकर प्रसाद की कहानियों में भारतीय संस्कृति, जनचेतना, उदारता, मानव मूल्यों के प्रति चिंता एवं मनो भूमि के उतार-चढ़ाव का सजीव चित्रण मिलता है ।  हालांकि यह भी सच है कि भागते दौर में लंबी कहानियों की ओर रुख करने की मन: स्थिति पाठकों में कम ही देखने को मिलती हैं ,उनका रूझान अपेक्षाकृत छोटी कहानियों की ओर ज्यादा होता है।

               इस अखिल भारतीय " हेलो फेसबुक कथा  सम्मेलन " में जितेंद्र कुमार ने " झूठा मुकदमा " / अशोक प्रजापति ने " मानदेय " / अजीत कुमार (बोध गया ) ने - " अच्छा कौन ? "/  मनोरमा गौतम ( नई दिल्ली) ने-"  एक क्या ऐसा भी"/  प्रियंका श्रीवास्तव  शुभ्र ने -" सुंदरवन का दलदल "/ सिद्धेश्वर ने " यह सिर्फ खत नहीं !"/ ऋचा वर्मा ने "प्रेम की रेखाएं !"  कहानियों का पाठ कर  श्रोताओं  को मंत्रमुग्ध  कर दिया l 

                  इस कथा सम्मेलन में  पूनम कतरियार,  दुर्गेश मोहन , अपूर्व कुमार,  रामनारायण यादव,  पूनम श्रेयसी,  निर्मल कुमार डे,  पुष्प रंजन, आराधना प्रसाद,  दुर्गेश मोहन,  संतोष मालवीय, राम नारायण यादव,, नरेश कुमार, अमरजीत कुमार, नन्द  कुमार मिश्र,. भावना सिंह, ज्योत्सना सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका,  अभिषेक  आदि की भी भागीदारी रही।

प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) / एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद) 
















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1 comment:

  1. फेसबुक अवसर सहित्यधर्मी हेलो कथा मंच के संचालक आदरणीय सिद्धेश्वर भाई को इतने सुंदर कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए साधुवाद।
    उन्होंने जितेंद्र कुमार की पुस्तक पर बहुत अच्छी समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत किया। शायद सुनने वाले सभी श्रोता को पुस्तक पढ़ने की इच्छा जागृत हो गई होगी।

    आज का विषय कथा छोटी हो या बड़ी, इसपर सबके अपने विचार हैं । मैं राजप्रिया रानी जी के विचार से सहमत हूँ । कथा छोटी हो या बड़ी हो इससे पहले ये मायने रखता है कि वो सशक्त हो, समसामयिक हो। बड़ी कथा में अक्सर भटकाव होता है पर असल साहित्यिक रचना तो यह है कि कथा कितनी भी लंबी हो वो पाठक को अपने में बांध ले।

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