विशेष जानकारी पाएं

4/30/22

हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा, पटना के वरिष्ठ साहित्यकार एवं चित्रकार सिद्धेश्वर से लिया गया साक्षात्कार


 "साहित्य आजकल " हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा, पटना के वरिष्ठ साहित्यकार एवं चित्रकार सिद्धेश्वर से लिया गया साक्षात्कार 

 कोरोना काल ने साहित्य को एक नई दिशा दी है !:- सिद्धेश्वर📘

•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••

 { "व्यक्ति के द्वारा किया गया कार्य ही उसकी पहचान होती है", इस कथन को पटना, हनुमाननगर, कंकड़बाग के रहने वाले एक ऐसे साहित्यकार, जो निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं, साथ ही साथ आकाशवाणी, दूरदर्शन में भी प्रसारित होते रहे हैं। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं के साथ कई पुस्तकों में भी प्रकाशित हो चुकी है l इन्होंने खुद चार पुस्तक लिखा है, तथा इनकी  1,000 से अधिक रेखाचित्र और कलाकृति देश भर के हजारों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है,  ऐसे लोकप्रिय साहित्यकार-चित्रकार   सिद्धेश्वर ने चरितार्थ कर दिखाया है। दोस्तों ! वेबसाइट व यूट्यूब पर लोकप्रिय साहित्यिक मंच "साहित्य आजकल" के संस्थापक युवा कवि हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा "साहित्यकारों से साक्षात्कार" कार्यक्रम निरन्तर आयोजित की जा रही है। इसी के निमित्त साहित्यकारों से साक्षात्कार एपिसोड-03 हेतु पटना के लोकप्रिय साहित्यकार  सिद्धेश्वर से खास बातचीत हुई है।

              आइये रूबरू होते हैं पूर्णियां से चलकर पटना आये हरे कृष्ण प्रकाश से लोकप्रिय साहित्यकार-चित्रकार सिधेश्वर की खास बातचीत।

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- सर्वप्रथम आप अपना परिचय साहित्य आजकल के तमाम पाठकों को दीजिये l।

♦  सिद्धेश्वर:  किसी भी साहित्यकार या कलाकार का  जीवंत परिचय उसके  द्वारा सृजित साहित्य और कला होती है, जिसका उचित मूल्यांकन आम पाठक करते हैं l  मैं साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिख रहा हूं, किंतु लघुकथा और कविता के प्रति बड़ी खास रूचि रही है l आजकल "डायरीनामा" मेरी  नियमित लेखन हो गई है, जिसके तहत साहित्य संस्कृति और कला से संदर्भित अपने आंतरिक विचारों के अतिरिक्त पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों पर संक्षिप्त टिप्पणी भी लिख रहा हूँ l

                 मैं पूर्व मध्य रेल में, उप मुख्य टिकट निरीक्षक पद से अवकाश प्राप्त किया हूँ और अब पूरी तरह साहित्य और कला  के प्रति समर्पित हो गया हूँ l

     हमारे व्हाट्सएप से जुड़ें.. |   हमारे यूट्यूब से जुड़ें   |

🔮हरे कृष्ण प्रकाश:- लेखन की कौन सी विधा में आप लिखते हैं और ख़ुद को किस विधा में सहज महसूस करते हैं ?

♦ सिद्धेश्वर :- साहित्य की लगभग सभी विधाओं में मैं सृजनरत हूं, लेकिन लघुकथा और कविता के प्रति मेरी खास रूचि रही है l  इस श्रृंखला में आप चित्रकला को भी रख सकते हैं l  क्योंकि मैं हर महीने 50 से अधिक रेखाचित्र और कलाकृति बना लेता हूँ l🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- साहित्य और रेखाचित्र दोनों में सर्वाधिक अधिक प्रकाशित होने वाली आपकी  कौन सी विधा है ?

♦ सिद्धेश्वर :- निश्चित तौर पर मेरे रेखाचित्र और कलाकृति अधिक प्रकाशित होते रहे हैं l शौक  के रूप में अपनाई गई यह विधा आज मेरी केंद्रीय विधा  के रूप में स्थापित हो चुकी है l

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश :- इसके क्या कारण हो सकते हैं, आपकी नजर में ?

♦ सिद्धेश्वर :- दरअसल साहित्य के क्षेत्र में जितने अधिक रचनाकार  साहित्य के मैदान में हैं, कला के क्षेत्र में उतने  अधिक कलाकार नहीं दिख  पड़ते l  साहित्य की तरह, कला के प्रति भी अभिरुचि में पाठकों की रुचि में बदलाव आए हैं ! पुस्तकों के आवरण से लेकर कहानी कविता के साथ जो चित्र प्रकाशित हो रहे हैं, उसमें स्थूल चित्र के अपेक्षा, भाव चित्र को अधिक पसंद कर रहे हैं,  जिसकी मांग लगातार बनी हुई है l लेकिन  सार्थक कलाकार कम हैं l निश्चित तौर पर इसका लाभ मुझे भी मिला है l

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश :-  समकालीनता के इस दौड़ में आपके प्रिय कलाकार कौन कौन है ?

♦ सिद्धेश्वर :- मुझे तुरंत जो स्मरण आ  रहे हैं उनमें आनंदी प्रसाद बादल, संदीप राशिनकर, विज्ञान व्रत, संजय रॉय, आदि  के रेखाचित्र और कलाकृति मुझे अधिक लुभाते हैं,और उनके  चित्रों से बहुत कुछ सीखने का हमें मौका भी मिलता है l

🔮हरे कृष्ण प्रकाश:- जहां लोग सरकारी जॉब से रिटायर्ड होते हैं तो खुद के जीवन को असहज महसूस करते हैं l  वहीं रेलवे में सेवा देते हुए, आपकी रुझान साहित्य के प्रति  कैसे हुई?

♦  सिद्धेश्वर :- साहित्य, कला या संगीत के प्रति अभिरुचि जन्मजात, यों कहे वंशानुगत होती है, मेरा यह मानना है l किसी के भीतर जबरन अभिरुचि पैदा नहीं की जा सकती l यह अलग बात है कि कुछ लोग संघर्ष से हार कर अपनी अभिरुचि का परित्याग कर देते हैं और कुछ लोग पूरी जन्म निभाते हैंl  साहित्य और  कला के प्रति मेरी अभिरुचि भी जन्मजात रही है l  शायद इसलिए 14 वर्ष की उम्र में मैंने कविता लिखी, और पेंटिंग बनाया  जो, जो उस समय की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होती रही l जीवन यापन के लिए रेलवे की नौकरी मुझे स्वीकार करना पड़ा, जो मेरी रुचि के विपरीत  होने के बावजूद, मुझे सृजन करने से रोक नहीं सकी और तमाम व्यवधान आने के बावजूद मैं सतत सृजनशील रहा l मैं आपको बता दूं कि पत्रिका संपादित करने का भी मेरा शौक भी बचपन से रहा है !

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- तो क्या आपने पत्रिका का संपादन भी किया है ?

♦  सिद्धेश्वर:-  जी हां बिल्कुल ! बचपन में पहली हस्तलिखित पत्रिका " आशा "और फिर " लघुकथा संसार " नाम से कई अंक निकालें, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित है ! इसे मैं स्वयं अपने संपादन में अपने हाथों से लिखता था और चित्रांकन करता था !  इसके बाद बी एल प्रवीण के संपादन में प्रकाशित "प्यार जगत" पत्रिका से जुड़ कर मुझे संपादन करने की कला का ज्ञान हुआ lआगे चलकर मैंने "अवसर " नाम से मुदित पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया, जिसके कई अंक  आज भी मेरे पास मौजूद है l  यही पत्रिका आज मैं ई पत्रिका एवं फेसबुकिया पत्रिका के रूप में  संपादित कर रहा हूं l  "राइजिंग बिहार " सप्ताहिक और " तर्पण " साप्ताहिक  का साहित्य संपादन भी लगातार दो  वर्षों से कर रहा हूं, जो आज राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय है l

🔮हरे कृष्ण प्रकाश:- अपने युवा अवस्था के क्रम में हुई साहित्यिक घटना के बारे में बताएं।

♦ सिद्धेश्वर:- युवावस्था की एक घटना आपको सुना रहा हूँ l  बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में एक कवि गोष्ठी का आयोजन था और कविता में रुचि रखने के कारण मैं भी वहां गया था l  कविता पढ़ने के लिए मैंने संचालक महोदय के  पास जब अपने नाम का स्लिप बढ़ाया, तब उन्होंने धीरे से पीछे फेंक दिया l दो -चार  युवा कवियों के साथ भी  उन्होंने ऐसा ही किया, जबकि अपने रिश्तेदारों से कविताएं पढ़वाते रहेंं l  मेरे भीतर एक भावना जागी. कि क्यों ना युवा साहित्यकारों के लिए एक स्वतंत्र मंच हो l आराम से मैं जो संकल्प ले  लेता हूं उसे पूरा करने की पूरी कोशिश अवश्य करता हूं l

                  इसी भावना ने मुझे प्रेरित किया और मैंने  नई प्रतिभाओं को मंच देने के उद्देश्य से, 14 सितंबर 1979  में "भारतीय युवा साहित्यकार परिषद " नाम से एक संस्था खोला और बिहार सरकार से पंजीकृत करवाया l  सरकारी अनुदान के पीछे दौड़ने का समय तो नहीं मिला, लेकिन मैंने  निरंतर युवाओं के लिए लघुकथा, कविता, कहानी आदि विधाओं पर गोष्ठी करवाता रहा और ढेर सारे युवाओं से हमारा संपर्क हुआ l उनमें से दो दर्जन से अधिक ऐसे साहित्यकार हैं, जो आज राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं, जिनके कृतित्व को देखकर संस्था को अपने आप पर गर्व महसूस होती है l

               उसी क्रम में मैंने "अवसर " पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया था,  और देशभर के युवाओं को जोड़ने का प्रयास किया था l  देश में पहली बार लघु पत्रिका प्रदर्शनी का आयोजन भी हमने  इसी संस्था के माध्यम से कियाl 

                  भगवती प्रसाद द्विवेदी, शरद रंजन शरद, प्रेम रंजन अनिमेष, बी एल प्रवीण, कल्पना सिंह, प्रवीण परिमल,  सुरंजन, निविड़  शिवपुत्र,  अशोक मनोरम, तारिक  असलम तस्नीम, मुकेश प्रत्यूष, फजल इमाम मल्लिक  आदि दर्जनों साहित्यकार हमारी इस संस्था के केंद्र बिंदु में रहें,  जो आज राष्ट्रीय फलक पर अपनी अलग पहचान बना चुके हैं l

                   रेलवे में नौकरी करने के बाद भी हमने अपनी गतिविधियों को कभी नहीं रोका l  नौकरी के साथ-साथ साहित्यिक गतिविधियों में आज की तरह ही सक्रिय था,  लघुकथा का मंच से पाठ करने का पहला अवसर भी हमारी संस्था के माध्यम से  ही आरंभ हुई l अखिल भारतीय लघु पत्रिका प्रदर्शनी का भी आयोजन भी पहली बार हमारी संस्था ने किया  जो आज तक जारी है l   इतना ही नहीं बरेली, लखनऊ,  फतुआ, हरियाणा के साथ पटना पुस्तक मेला, और अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन के  प्रांगण में मेरे द्वारा बनाए गए लघुकथा एवं कविता पोस्टर  प्रदर्शनी का भी लगातार आयोजन होता रहा है, जिसमें किसी के लिए प्रतिबंध नहीं था l नए पुराने सभी साहित्यकारों का खुला आमंत्रण होता रहा, जो आज तक जारी है l  बस स्वरूप बदल गया है l अब मैं ऑनलाइन में ज्यादा विश्वास रखता हूं l  कितना कुछ बतलाऊँ l पूरी बात कहूंगा तो एक किताब लिखनी पड़ेगी l

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- ऑनलाइन गोष्ठियों के प्रति आपकी अभिरुचि कैसे जागी ?

♦ सिद्धेश्वर :- लगभग दो साल पहले जब कोरोना काल का आरम्भ हुआ l  घर से निकलने के मनाही हो गई l हर एक  इंसान अपने-अपने घरों में कैद हो गए l संवादहीनता की स्थिति आ गई l  शब्द मंचों से उतरकर घरों में कैद हो गए l एक साहित्यकार का दूसरे साहित्यकार से संवाद लगभग बंद हो गई  l सृजनशीलता में लगाम लग गई l  छोटी बड़ी पत्र-पत्रिकाओं की हार्ड प्रतियां  बाजार से गायब हो गई l  आकाशवाणी, दूरदर्शन तक साहित्यकारों के लिए ताले लग गए l  घर में बैठकर भी साहित्यिक गोष्ठियां  करना संभाव ना हुआ l छः फीट की दूरी हजार फीट में बढ़ गई l अधिकांश साहित्यकार डिप्रेशन के  शिकार होकर, अकाल मौत के मुँह में समाने लगे l  तब मुझे लगा फेसबुक और व्हाट्सएप यानी सोशल मीडिया  इस संवादहीनता को तोड़ सकती है l  ईपत्र पत्रिकाएं, हार्ड कॉपी का स्थान भले ना ले, लेकिन एक विकल्प तो बन ही  सकती है l 

               नए पुराने साहित्यकारों को एक मंच पर लाने की मेरे भीतर की अकुलाहट ने, ऑनलाइन साहित्यक गोष्ठियों और  फेसबुक  तथा व्हाट्सएप के पेज पर "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " का आरंभ किया ! पूरे देश भर में एक नई क्रांति आई !  उस तरह के साहित्यकार भी अंधेरे से बाहर आएं, जो मंचों  तक पहुंचने में कतराते थे l निश्चित तौर पर अधिकांश सतही रचनाएं सामने आई,  और हमें मेहनत करते हुए उनमें से ही सार्थक रचनाओं को चुनकर सामने लाने का प्रयास  करना पड़ा l मुट्ठी भर लोगों की मोनोपोली टूटी l कई नए रचनाकार सामने आए l ऑनलाइन कवि सम्मेलन तो बहुत होते रहे,  लेकिन मैंने 2 साल पहले पहली बार ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन का आरंभ किया, जो अब देशभर में कई संस्थाओं ने अपना लिया है  l

                    

आपको जानकर हैरानी होगी कि  सिर्फ हमारे ऑनलाइन साहित्य गोष्ठियों में शामिल होकर, इनमें से कई युवा प्रतिभाएं जो सिर्फ कविता लिखते  थे, वे सार्थक लघुकथा लिखने लगे, और जो सिर्फ लघुकथा लिखते थे, वे सार्थक कहानी भी लिखने लगे, कविता भी लिखने लगे l मैं यह मानता हूं कि ऐसी  ही छोटी  छोटी गोष्टिया, नई  प्रतिभाओं के लिए साहित्यिक  पाठशाला का काम करती है l  हमारे इस ऑनलाइन आयोजन के कारण ही कई साहित्यकार डिप्रेशन में जाने से बच गए और कई साहित्यकार अकाल मौत से बच गए l  सिर्फ वे नहीं बचे, बल्कि उनका साहित्य सूजन भी जीवंत बचा रहा, कोरोना काल में भी वे सृजनरत  रहें  और कई सार्थक रचनााएँ उन्होंने हिंदी साहित्य को सौंपा, इनमें से एक मैं भी शामिल हूँ l  सच पूछिए तो कोरोना काल ने साहित्य को एक नई दिशा दी है !

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश :- कई संस्थाएं प्रतिष्ठित रचनाकारों के पीछे घूम रही है, वहां पर आप इस उम्र के मुकाम पर भी नई प्रतिभाओं के प्रति क्यों समर्पित है ?

♦ सिद्धेश्वर:- क्योंकि हम दिखावा नहीं करते ! हमारी संस्था का उद्देश्य ही है युवा प्रतिभाओं को मंच  देना,  बगैर व्यावसायिक आधार पर l  सूरज की ओर तो  सभी हाथ जोड़ लेते हैं,  कुछ लोग तो ऐसे हो जो रात के अँधेरे  में भी बूझते  हुए दिए को जला सके l  क्योंकि इन दियों  में ही  कल कोई सूरज बनेगा l जब हम भी वही करें जो और लोग कर रहे हैं तो फिर हम में उनमें अंतर क्या रह जाएगा ?

             सामाजिक सेवा भी कई स्तर पर होते हैं l  नई प्रतिभाओं की सेवा भी साहित्य सेवा या सामाजिक सेवा ही है और तो और हमारे देश की साहित्यिक परिवेश इतना गंदा हो चुका है, साहित्य भी गंदी राजनीति का शिकार हो चुका है,  खेमे और गुटों में बंट गया है कि सबका साथ सबका विकास उनकी नजर में कोई मायने नहीं रखता l  सब एक दूसरे से सिर्फ स्वार्थ वश ही जुड़े हुए हैं l एक दूसरे को सहयोग करने की बात तो दूर,  टांग अड़ा कर, कैसे अपने साथी को  मुंह के बल गिरा कर,  वह खुद कैसे आगे बढ़ जाए,इसकी  दौड़ अधिक है l

            अधिकांश लोग तो अपने लिए जी रहे हैं ! सिर्फ अपनी तरक्की चाहते हैं l  जबकि साहित्यकार का व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए, कि उनके गुजर जाने के बाद उनके कृतित्व की तरह उनका व्यक्तित्व भी सराही जाए l  हमारा तो एक ही मकसद है, सबका साथ, सबका विकास और मैंने कहा भी है कि, -

"  सूरज को हथेली पर 

   उतार लेना बड़ी बात नहीं! 

    साहित्य के फलक पर हमने,

  चांद सितारों को उतारा है ll "

 🔮हरे कृष्ण प्रकाश:- अपने पसन्द की कोई एक रचना     

      सुनाएं।  

♦ सिद्धेश्वर :- कौन हिसाब रखे ? चलती हुई इन सांसों का, 

कौन हिसाब रखे ?

उठती -गिरती पलकों का, 

कौन हिसाब रखे ?

         हर पल हम जी लें, 

          हर पल रौशन रहें 

        उगते सूरज की तरह।

        दिन और रातों  का 

         कौन हिसाब रखे ??

सच बोलने वाला 

शख्स भी झूठ बोल गया.... 

सही - गलत, इन बातों का

 कौन हिसाब रखे ?

              प्यार की अंगड़ाई, और 

               मोहब्बत की जुदाई, 

               तड़पते हुए दिलों का 

               कौन हिसाब रखे ?

नित नई जिंदगी , नित नई मौत ! 

घटती- बढ़ती इन सांसों का

  कौन हिसाब रखे  ?

               दुश्मनों से ज्यादा घाव 

               अपनों ने ही दिए।

                चुभते हुए वादों का 

                 कौन हिसाब रखे  !?

 जितनी मिली है जिंदगी 

काफी है मेरे दोस्त !

आकाश में भरपूर उड़ानों का 

कौन हिसाब रखे !??

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- सुना है कि आपकी पुस्तक को सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया है उसकी जानकारी दीजिये l

♦ सिद्धेश्वर :-  मेरी पहली लघुकथा पुस्तक " बूंद बूंद सागर " को बिहार सरकार द्वारा रेणु पुरस्कार से सम्मानित किया गया l उसके बाद इतिहास झूठ बोलता है काव्य कृति को  भारत सरकार (रेल मंत्रालय ) के द्वारा  मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (प्रथम पुरस्कार ) से सम्मानित किया गया !साथ ही इस पुस्तक को,  साहित्यकार संसद ने "अज्ञेय शिखर सम्मान "भी प्रदान किया ! उसके बाद मेरी तीसरी पुस्तक "ढलता सूरज : ढलते शाम " को,  भारत सरकार (रेल मंत्रालय ) द्वारा ही प्रेमचंद सम्मान ( प्रथम पुरस्कार :15000 रुपये )  से सम्मानित किया गया ! चौथी पुस्तक लघुकथा कृति "भीतर का सच " को बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा अनुदान प्रदान किया गया ! यह संजोग है कि मेरी चारों पुस्तकें बिना किसी सिफारिश के पुरस्कृत हुई,  जबकि आजकल अधिकांश  पुरस्कार और सम्मान, खूब दांवपेच और खूब दौड़-धूप कर हथियाया  जाता है, जो बात किसी से छुपी नहीं रहती, और वह रचनाकार को सम्मानित नहीं अपमानित ही करता है l

                इसके अतिरिक्त मेरी एक बाल कथा कृति " सोने के पंख ",  एक उपन्यास अंश "दहशतजदा "एक काव्य  पुस्तिका " काव्य कलश " प्रकाशित हुई है l मेरी कलाकृतियों की  भी एक पुस्तक प्रकाशनाधीन है l इनके अतिरिक्त पांच  पुस्तकों का मैंने संपादन भी किया है l

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- नए सृजनकारों से आप  क्या कहना चाहेंगे?

♦ सिद्धेश्वर : मैं एक सौ कविताएं पढ़ता हूं, तब एक कविता लिखने का प्रयास करता हूँ l  खूब अध्ययन किए बिना सार्थक सृजन संभव नहीं है  l  अपवाद की बात मैं नहीं कर रहा l लेकिन आज नामचीन साहित्यकारों के पीछे भी , उनके द्वारा सतत अध्ययन की  भूमिका रही है l  नए साहित्यकारों को जल्दीबाजी से बचनी चाहिए l  झूठे मान सम्मान के पीछे दौड़ लगाने से ज्यादा अध्ययन के प्रति समर्पित होना चाहिए l क्योंकि उनका सृजन ही  उनकी पहचान बनती है,सम्मान पत्रों का जोड़ घटाव  नहीं l भले आप सबकी सुने, मगर करें आप वही जो  आपकी आत्मा गवाह दे l आप सृजन करने के बाद अपनी ही रचनाओं को,  1 महीने के बाद, एक आम पाठक बन  कर पढ़ें और सुधार करें l साहित्य के जानकार मित्रों से संपर्क रखें l  साहित्यिक गोष्ठियों में भी ध्यान दें और  वरिष्ठ रचनाकारों की रचनाएं पढ़ते वक्त  उनकी रचनाओं से कुछ सीखने का प्रयास करें l जिस विधा में रचना कर रहे हों, उस विधा की   समीक्षात्मक और शास्त्रीय पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करें l  झूठी वाह वाही पाने से बचें l  और जब तक रचनाओं से पूरी तरह संतुष्ट ना हो जाएं, पुस्तक प्रकाशन की बात ना सोचे l  किसी की आलोचना से घबराकर हतोत्साहित भी न हों l बल्कि अपनी कमियों को ढूंढने का प्रयास करेंl  और बेहतर लिखने का प्रयास जारी रखें l इसमें कोई दो मत नहीं की सम्मान पत्र से नहीं, सृजन से ही  किसी भी साहित्यकार का मूल्यांकन होता है !"

🔮हरे कृष्ण प्रकाश:- वर्तमान समय में समाज के बीच व्याप्त दुषप्रथा दहेज प्रथा पर आप क्या कहेंगे?

♦  सिद्धेश्वर :-  जब तक कथनी करनी एक नहीं होगा समाज की कोई भी विसंगतियां खत्म नहीं हो सकती l  जब तक हम खुद अपनी कमजोरियों को दूर नहीं कर लेते, आदर्श की बात कहने या  लिखने का हमें कोई अधिकार नहीं बनता l  सिर्फ कहने से नहीं होगा कि लड़का लड़की एक समान, जब तक हम दहेज को जड़ से उखाड़ नहीं फेकेंगे l दहेज के रहते  समानता की बात करना बेमानी है l  सब कुछ सरकार नहीं कर सकती l  प्रत्येक नागरिक का अपना कर्तव्य भी बनता है l जाति बंधन से बाहर आकर ही हम दहेज  को मिटा सकते हैं l  मैंने स्वयं  अपनी शादी में दहेज नहीं लिया  साथ ही साथ अपने बेटे की शादी में भी एक पैसा दहेज नहीं लिया l  पढ़ी-लिखी लड़कियों को चाहिए कि  अपने पसंद के वैसे लड़कों से ही विवाह करें, जो दहेज  की मांग ना कर रहा हो, भले वह किसी भी जाति का हो l  जाति और संप्रदाय के लोग ही दहेज को बढ़ावा देते हैं l

🔮 हरे कृष्ण प्रकाश:- अंततः जाते जाते तमाम पाठकों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे ?

♦ सिद्धेश्वर : साहित्य जीवन में परिष्कार लाती है ! यह गलत धारणा है कि साहित्य सिर्फ साहित्यकारों के लिए लिखी जाती है l साहित्य समाज की विसंगतियों पर प्रहार करती है,  मानवीय मूल्यों को प्रतिस्थापित करने में मदद करती है l आदमी को आदमी होने की तमीज सिखलाती है l  हमारे भीतर के खालीपन को भरती  है l  समाज के आदर्श और नैतिकता के प्रति हमें निष्ठावान बनाती है l अपने नैतिक मूल्यों के प्रति सचेत करती है l  तमसो मा ज्योतिर्गमय  ही साहित्य का मूल उद्देश्य है l इसलिए पाठक  साहित्य को पढ़ने की आदत को अपनी दिनचर्या में शामिल कर ले l टीवी, मोबाइल, अखबार की तरह वह साहित्य को भी अपने जीवन का अंग बना लें l  व्हाट्सएप,  यूट्यूब और फेसबुक यानी सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य का अध्ययन करने का, देखने सुनने का प्रयास नियमित करें l धीरे-धीरे आप देखेंगे कि आपके सोच विचार हाव-भाव और व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया है ।



•••••••••••••••••••••••••••••••••••

🇧🇩 सिद्धेश्वर का संक्षिप्त परिचय 🇧🇩

  नाम ० सिद्धेश्वर

० पिता का नाम :स्वर्गीय यमुना राम 

०माता का नाम: स्वर्गीय सावित्री देवी ०जन्मतिथि:20/06/1959 

0जन्म स्थान: पटना( बिहार)

0 शिक्षा: स्नातक(कला) विशिष्टता के साथ 0लेखन की भाषा: हिंदी

0 सम्प्रति : अवकाश प्राप्त, मुख्य  टिकट निरीक्षक(पूर्व मध्य रेल)( अवकाश प्राप्त का महीना : अप्रैल 2020)

0: अवकाश प्राप्ति के पश्चात् स्वतंत्र लेखन

0लेखन की विधाएं :कविता/ कहानी/ लघुकथा/ लेख/ चिंतन/ बाल कविता/ भेंटवार्ता/ डायरीनामा और बाल कहानी/

0विशेष अभिरुचि :कलाकृति (रेखाचित्र)

0अब तक (2020)* पांच सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में, डेढ़ हजार से अधिक साहित्य की लगभग सभी विधाओं में प्रकाशित। 

0एक हजार से अधिक रेखाचित्र राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं और पुस्तकों के आवरणों में  में प्रकाशित। 

0प्रकाशित कृतियां :0बूंद -बूंद सागर (लघुकथा संग्रह, पुरस्कृत) 

0इतिहास झूठ बोलता है( कविता संग्रह, पुरस्कृत )

0ढलता सूरज :ढलता शाम (कहानी संग्रह,पुरस्कृत) 

0उपन्यास अंश:दहशतजदा

0लघुकथा कलश(काव्य पुस्तिका) 

0भीतर का सच (लघुकथा संग्रह )

( एक उपन्यास प्रकाशनाधीन)

( कलाकृतियों पर एक पुस्तक प्रकाशनाधीन )

0संपादित पुस्तकें: आदमीनामा (बिहार के लघुकथाकारों की पहली पुस्तक )

0उत्कर्ष (पुरस्कृत लघुकथाएं) 

0टूटते जुड़ते संदर्भों के बीच (कविता संग्रह) 0गजल यात्रा (गजल संकलन)

0 शताब्दी की कविताएं (काव्य संकलन)

 0सोच विचार( मासिक पत्रिका, का बिहार ब्यूरो चीफ) 

0संपादक और प्रकाशक :अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका (त्रैमासिक) 

0संस्थापक अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद का संस्थापक अध्यक्ष 0अवसर प्रकाशन का प्रकाशक

0 कोरोना काल में एक सौ से अधिक ऑनलाइन साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन 

0 राष्ट्रीय स्तर पर रेल मंत्रालय द्वारा मैथिलीशरण गुप्त सम्मान/० बिहार सरकार द्वारा रेणु पुरस्कार /०साहित्यकार संसद द्वारा अज्ञेय शिखर सम्मान /०वर्तमान साहित्य द्वारा श्रीकृष्णप्रताप स्मृति कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत। 

० सारिका द्वारा सर्वभाषा कहानी एवं लघुकथा प्रतियोगिता में "बोहनी" पुरस्कृत ।

० अखिल भारतीय लघुकथा मंच सम्मान प्राप्त 

०मीडिया में अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ग्रुप का एडमिन। 

O  राइजिंग बिहार   ( हिंदी साप्ताहिक अख़बार का     

        साहित्य संपादक ) 

❤ सम्पर्क  l: सिद्धेश्वर/"सिद्धेश् सदन" अवसर प्रकाशन, (किड्स कार्मल स्कूल के बाएं) /पोस्ट :बीएचसी, द्वारिकापुरी रोड नंबर:०2 हनुमाननगर ,कंकड़बाग ,पटना 800026 (बिहार )मोबाइल :92347 60365 ईमेल:sldheshwarpoet.art@gmail.com

☢️🌻लघुकथा के  विकास में वरिष्ठ कथाकार सिद्धेश्वर द्वारा किया गया उल्लेखनीय कार्य एवं गतिविधियां ☢️)  आदमीनामा (बिहार के लघुकथाकारों की पहली पुस्तक) /संपादक: सिद्धेश्वर! (प्रकाशन वर्ष :सन उन्नीस सौ पचासी! //रचनाकार :सिंहा वीरेंद्र/ रामयतन यादव/ अजय सिन्हा/ चितरंजन भारती /भगवती प्रसाद द्विवेदी/तस्नीम /डॉ सतीशराज पुष्करणा और  सिद्धेश्वर। 

☢️() कविता पोस्टर प्रदर्शनी :आरंभ : 19 79 को पहली बार /भारतीय युवा साहित्यकार  परिषद के वार्षिकोत्सव के अवसर पर। 

☢️🌻() बिहार सरकार द्वारा मौलिक पुस्तक के लिए "रेणु पुरस्कार" से सम्मानित: डाॅ सतीशराज पुष्करणा के साथ सिद्धेश्वर। 

☢️🌻बूंद बूंद सागर लघुकथा कृति(लेखक :सिद्धेश्वर) 

() भीतर का सच (लघुकथा कृति) (लेखक:सिद्धेश्वर) /2015

()उत्कर्ष (पुरस्कृत लघुकथा संकलन (संपादक :सिद्धेश्वर) 

☢️☢️ अब तक एक सौ से अधिक और पचास  बार से अधिक प्रदर्शित /सिद्धेश्वर द्वारा रेखांकित एवं प्रस्तुत /अखिल भारतीय लघुकथा पोस्टर /जिसमें शामिल लघुकथाओं  के रचनाकारों का नाम:

 सिद्धेश्वर (अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /पटना)

 सूचना:- 

👆👆
यदि आप अपना साक्षात्कार देना चाहते हैं तो आदरणीय यह साक्षात्कार देने हेतु साहित्य आजकल की आधिकारिक फॉर्म है। अतः इसे सही सही भरकर हरे कृष्ण प्रकाश के साथ अपना साक्षात्कार तिथि सुनिश्चित करवाएं।।
(Online/Offline दोनों सुविधा उपलब्ध)
  धन्यवाद:- *(साहित्य आजकल टीम)






यदि आप भी अपनी रचना प्रकाशित करवाना चाहते हैं या अपनी प्रस्तुति Sahitya Aajkal की Official Youtube से देना चाहते हैं तो अपनी रचना या वीडियो टीम के इस Whatsapp न0- 7562026066 पर भेज कर सम्पर्क करें।

कवि सम्मेलन की वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

यदि आप कोई खबर या विज्ञापन देना चाहते हैं तो सम्पर्क करें।

Email:- sahityaaajkal9@gmail.com

 Whatsapp:- 7562026066

     संस्थापक:- हरे कृष्ण प्रकाश (पूर्णियां, बिहार)

                           ...Subscribe Now...       

1 comment:

  1. वरीय साहित्यकार श्री सिद्धेश्वर बाबू के साथ श्री हरे कृष्ण प्रकाश जी के द्वारा लिये गये साक्षात्कार की प्रस्तुति बहुत हीं जानदार एवं ज्ञानवर्धक है । आदरणीय श्री सिद्धेश्वर बाबू के द्वारा नये रचनाकारों को बेहतर से बेहतर सृजन करने की जो विधि बताई है वह अनुकरणीय है । इसी के साथ मैं हरे कृष्ण प्रकाश जी को इस सराहनीय कार्य के लिए सहृदय धन्यवाद देता हूँ एवं अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आदरणीय जाने-माने साहित्यकार श्री सिद्धेश्वर बाबू को सहृदय बधाई नमन व मंगलकामना करता हूँ ।

    ReplyDelete