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5/18/22

मेरे पिता:- दुर्गेश मोहन

 


शीर्षक_मेरे पिता

मेरे पूज्य पिता का हो रहा अभिनन्दन।

मेरी ओर से उन्हें शत_शत नमन।

   मेरे पिता थे ब्रजनंदन

   उन्हें मेरा सादर नमन।

   मेरे दादा जी थे जगतनंदन

   उन्हें मेरा सादर वंदन।

मेरे...

मेरी...

   पिताजी ने पीएचडी तक शिक्षा पाया

निर्धनों की सेवा में हाथ बंटाया।

ये पेशे से मरीजों की करते थे सेवा

ईश्वर  दोनों को बदले में देते मेवा।

मेरे...

मेरी...

   ये निर्धनता को न बनने दिया अभिशाप

उन्होंने जगाया संस्कार और उसे किया आत्मसात।

ये परिवार संभाले,रिश्ते निभाए

सारे जग में नाम कमाए।

मेरे...

मेरी...

   आप स्वभाव से थे सुन्दर

   आप थे चरित्रवान।

   आप थे व्यावहारिक

   आपलोगों का करते थे कल्याण।

मेरे...

मेरी...

   उन्होंने मुझे पढ़ाया_लिखाया

   मुझे बनाया नेक इंसान।

   ये पूजनीय थे

   ये मुझे दिलाए अनुपम पहचान।

मेरे...

मेरी...

   ये   सात संतानों की किए परवरिश

मैं हूं उनका वारिस।

सारे जहां से उन्हें था प्यार

ये मुझे दिए अटूट संस्कार।

मेरे...

मेरी...

   साइकिल चलाने व फुटबॉल खेलने में

उनका नहीं था सानी।

सारे कमाल एवं रिकॉर्ड बनाने में 

उन्हें न होती कभी परेशानी।

मेरे...

मेरी...

दुर्गेश मोहन (शिक्षक)

चक वेदौलिया, (समस्तीपुर)

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