जीने लगी हूं:- आभा सिंह
कह दिया है मैंने जख्मों से
हमें यूं सताया ना करो
हम मस्ती में जीने लगे हैं खुद ही
अब पास मेरे आया ना करो।
कब तक घुट-घुट कर जीती रहती
कब तक आंसुओं की बूंदों को पीती रहती
तोड़ दी है मैंने कुछ बंदिशें
अब जंजीर लगाया ना करो।
मुझे यूं सताया ना करो
कह दिया है मैंने जख्मों से
अब मेरे पास आया ना करो।
भरती रही हूं हर तरफ की खाई
रिश्तों में जब भी किसी ने आग लगाई
अपनी मंजिल की ओर बढ़ती रही हूं
अब मुश्किलों से डराया ना करो।
मुझे यूं सताया ना करो
कह दिया है मैंने जख्मों से
अब मेरे पास आया ना करो।
किसी शर्त पर नहीं देखा, जिंदगी को गुजरते हुए
किसी मोड़ पर नहीं देखा, बंदगी को खोते हुए
मेरा सफर तय हो गया है अब अंबर की ओर
मेरे पंखों को कुतरा ना करो।
मुझे यूं सताया ना करो
कह दिया है मैंने जख्म उसे अब मेरे पास आया ना करो।
ख़ामोशी से सहा है मैंने
जिंदगी के हर सितम
बना कर रखा मैंने
अपने कान्हा को प्रीतम
हार गए मेरे हौसलों के आगे
बे बुनियादी तूफान
अब मुझे लहरों में डूबा या ना करो।
मुझे यूं सताया ना करो
कह दिया है मैंने जख्मों से
अब मेरे पास आया ना करो
*आभा सिंह, बिहार*
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बेहतरीन रचना के लिए आदरणीया कवयित्री श्रीमती आभा जी को सहृदय बधाई ।
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