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5/29/22

हिंदी में लिखे उपन्यास को अंग्रेजी में अनुदित करने के बाद बुकर पुरस्कार मिल जाना बहुत प्रसन्नता की बात नहीं है :- सिद्धेश्वर

साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है।  यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें।  

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हिंदी में लिखे उपन्यास को अंग्रेजी में अनुदित करने के बाद बुकर पुरस्कार मिल जाना बहुत प्रसन्नता की बात नहीं है :- सिद्धेश्वर



        ♦    [] मुझे लगता है कि हिंदी में लिखे उपन्यास को अंग्रेजी में अनुदित करने के बाद बुकर पुरस्कार मिल जाना हिंदी  प्रेमियों के लिए,  बहुत प्रसन्नता  की बात नहीं है  l

                  क्योंकि पुस्तक मूल हिंदी जरूर है,  किंतु पुरस्कार जो मिला है वह इसके अंग्रेजी अनुवाद पर मिला है l  हिंदी भाषियों  के गाल पर  यह  तो एक करारा तमाचा है, " कि बोल हिंदी भाषियों,  मेरे बराबर की राशि का कोई पुरस्कार है तेरे पास ? "

           आपने देखा होगा कि हमारे देश की गरीबी को भुनाकर " वाटर " जैसी  फिल्में  विदेशों में  पुरस्कृत होती रही  है l 

             अंग्रेजी का यह वर्चस्व है कि  अंग्रेजी चीख - चीखकर कह रही है - "  हिंदी दिवस में हिंदी के सम्मान की बात कब तक करते रहोगे हिंदी प्रेमियों ? 

     हिंदी प्रेमियों , अगर तुम अंग्रेजी नहीं जानोगे,  अपनी पुस्तकें  अंग्रेजी में नहीं अनुवाद करवाओगे,  तो मोटी राशि वाले विदेशी पुरस्कार से हमेशा  वंचित रह जाओगे ! 

         आप गंभीरता से सोचें कि क्या " हाय हिंदी ! वाह अंग्रेजी !!" का बोध नहीं कराता है यह बुकर पुरस्कार ??

                   फिर भी हिंदी वाले आत्ममुग्ध हैं ! प्रशंसा की दौड़ में सबसे आगे निकलना चाह रहे हैं ! लेकिन पीछे छूट जा  रही हिंदी की ओर जरा भी ताक झांक नहीं कर रहे !  अंग्रेजी के वर्चस्व के पीछे हिंदी  की इस तौहीन को कोई नहीं देख रहा ! हिंदी की इस बेइज्जती को कोई नहीं भांप रहा ?  कैसे भारतवासी हैं हम ? कैसे हिंदी प्रेमी हैं हम ?

          हिंदी में लिखे और हिंदी में प्रकाशित हुए प्रेमचंद, फणीश्वर नाथ रेणु, विमल  मित्र  जैसे अमर कथाकारों के उपन्यासों आज भी विश्व में  सर्वाधिक महत्त्व के समझे जाते हैं, बिना बुकर पुरस्कार प्राप्त किए ! 

 सोचिए, समझिये, आत्मचिंतन  कीजिए।  किसी के कह भर  देने से कौवे की  चाल मत चलिए l 

 हिंदी में लिखते हैं,  पढ़ते हैं,  तो सचमुच हिंदी के सम्मान की बात कीजिए l वरना आप हिंदी में लिखते रह जाएंगे और आपके मेहनत की आधी राशि अनुवाद करने वाले विदेशी लोग ले जाएंगे l

  अब बोलिए, जय हिंदी या  जय अंग्रेजी ??????

••••••••••[] सिद्धेश्वर []•••••••••

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🔮 हमारी डायरी पर कुछ  लोगों की  सहमति / असहमति !

{ आप भी अपना विचार दे सकते हैं }

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 [ तारीख, समय और नाम के साथ,  विचार प्रस्तुत है जो हमें व्हाट्सएप पर प्राप्त हुए हैं l  व्यापक  विचार विमर्श के लिए  इसे हम फेसबुक के पेज पर डाल रहे हैं l आपके विचार भी कमेंट बॉक्स में आमंत्रित हैं l

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[5/28, 13:36] Jayant: हिन्दी राज भाषा है, राष्ट्र भाषा कोई नहीं।

[5/28, 13:41] Jayant: आज तक कोई कर्णधार इसे राष्ट्र भाषा के रूप में दर्जा नहीं दिला सके।

[5/28, 13:42] Poet Srikant: सहमत

[5/28, 13:45] SIDHESHWAR: अंग्रेजी के पीछे हम सब पागल रहेंगे तो यही होगा

[5/28, 14:02] poetDURGES मोहन: हिन्दी का महत्व एवं सम्मान देना चाहिए।👍

[5/28, 14:24] Poet Ravndra Pd: अब तो मोदी जी दिला देंगे, उन पर आस है।

[5/28, 14:34] SIDHESHWAR: हम लोग ही  हिंदी के दुश्मन है और अंग्रेजी के प्रेमी तो कोई क्या कर सकता है

[5/28, 14:43] Poet Ravndra Pd: सही।🙏🙏

[5/28, 15:11] Poet Samma Kousar: बिलकुल सही हिंदी और उर्दू यही दो हमारे भारत की भाषा है अगर इन दोनों के लिए कोई जगह स्थान या सम्मान मिलता है तो वह गौरव की बात है।

इंग्लिश विदेशी है इसे जानना समझना और पढ़ना हमारी मजबूरी है।

विदेश के लोग अपने देश की भाषा को मान सम्मान देते हैं लेकिन हमारे भारत में दोनों भाषाओं की कोई कद्र नहीं है।

आज तक दोनों बहनों को अपने ही देश में अजनबी बनना पड़ता है

[5/28, 15:51] Jayant: हम आप नहीं नीति निर्माता।

[5/28, 16:37] poet Rajpriya रानी: हिंदी का प्रचार प्रसार शब्द कहना ही राष्ट्र भाषा हिन्दी के गौरव को मूर्छित करता है।

[5/28, 16:43] Murari Mdhukr: आधुनिक युग में ब्रिटिश साम्राज्य के व्यापक प्रसार के प्रभाव स्वरूप अंग्रेजी आज विश्व स्तर पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है ।अतः अंग्रेजी भाषा में लिखी गई रचना को ही पुरस्कार प्रदान करना इस भाषा  का वैश्विक प्रसार से प्रेरित निर्णय ही कहा जाएगा जिसे  हम नकारात्मक नजरिया ग्रस्त पैमाना कहेंगे और अन्य भाषाओं के प्रति उपेक्षात्मक दृष्टिकोण बताएंगे। लेकिन जहां तक मानवीय संवेदना और संस्कृति के संवर्धन की बात है तो हिंदी इस भाषा से बहुत आगे है ।यह हम लोगों के लिए बहुत ही गौरव की बात है कि तुलसी रचित  रामचरितमानस विश्व की सर्वोत्तम रचना है और विश्व के अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ है जिसे विश्व बिरादरी पढ़ती है। मैं तो कहूंगा कि किसी भाषा से हम अपनी तुलना और स्पर्धा ना करें और अपने पथ पर निरंतर अग्रसर रहें-- इस खयाल के साथ कि भौगोलिक प्रसार के स्तर पर हमारी भाषा भले ही विपन्नावस्था में है लेकिन मानवीय संवेदना और संस्कार सृजन के  पहलु पर हम संपन्न और सर्वोत्तम हैं

                  मुरारी मधुकर

[5/28, 16:55] Jayant: आप सही है, प्रत्येक भाषा का अपना महत्व है।मूल उपन्यास हिन्दी में है, यही बड़ी बात है।

[5/28, 19:41] SIDHESHWAR: यह उपन्यास अंग्रेजी में अनूदित नहीं  होती, सिर्फ हिंदी भाषा में प्रकाशित रहती,  तो क्या बुकर पुरस्कार मिल जाता ?  सवाल यहीं पर  हिंदी के अस्तित्व का है, !

[5/28, 20:06] Kahani Nitu Sudipti Nitya: विदेश के लोग कितनी हिंदी जानते हैं ????  रविन्द्र नाथ टैगोर के गीतांजलि को नोबेल मिला बांग्ला भाषा को नहीं बल्कि अंग्रेजी अनुवाद पर

[5/28, 21:01] Suresh Kumar Chaudhary Dada: यहां बंगला से अंग्रेज़ी अनुवाद रवींद्र ने स्वयं किया रहा

[5/28, 21:15] Kahani Nitu Sudipti Nitya: रविन्द्र नाथ ने अंग्रेजी में स्वयं अनुवाद किया या दूसरे से करवाया लेकिन गीतांजलि को नोबेल अंग्रेजी भाषा में पढ़कर ही दिया गया था। 


 आपके बच्चे को या आपके बूढ़े माता पिता को अगर हिंदी न समझ मे आती है तो आप उसे वह बात अपनी क्षेत्रीय भाषा में ही समझाते हैं । 


बुकर का गीतांजलि श्री का सम्मान कीजिए। हिंदी -  अंग्रेजी के संकीर्ण विचारों से ऊपर उठिए सभी कोई। यह समय है बुकर पुरस्कार भारत की बेटी द्वारा जितने का न कि उसे कटघरे में खड़ा करने का ।

रेत समाधि खरीद कर पढ़िए और कुछ अच्छा रचिए।

आज मैंने आर्डर किया है 348 ₹ में । अमेज़ॉन पर उसकी कीमत आज आधी रात को फिर बढ़ेगी।

[5/28, 21:21] Suresh Kumar Chaudhary Dada: मेरे लिखे पर आप इतना क्रोधित क्यों है , कृपया एक्सप्लेन

[5/28, 21:28] l - Priyanka Pathak: अनुवाद भले अंग्रेजी में हुआ हो लेकिन किताब मौलिक रूप से तो हिंदी में है। लेखिका ने हिंदी में ही इसे अपने मन में सोचा और हिंदी में ही लिखा है । अनुवादक के मन में जो भाव आया होगा वह हिंदी संस्करण को पढ़कर आया होगा। लेकिन प्रारंभिक रूप से जो भाव गीतांजलि श्री के मन में उभरा वही मौलिक है। इस प्रकार यह रचना भाव और भाषा दोनों की दृष्टि से हिंदी की ही ठहरती है।

   बुकर प्राइज क्योंकि अंग्रेजी जानने वाले लोग ही देते हैं इसलिए इसका अनुवाद होना आवश्यक था, इससे किताब की महत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता। भाषा तो केवल एक संप्रेषण का माध्यम है। चाहे वह हिंदी हो या अंग्रेजी। यदि लेखिका हिंदी की है तो यह हिंदी को मिला हुआ पुरस्कार ही माना जाएगा। वाकई हम भारतीयों के लिए गौरवान्वित पल है। 🙏🌹

[5/28, 21:51] SIDHESHWAR: इसका मतलब  है कि यदि वे   अंग्रेजी नहीं जानते तो उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिलता ?

  फिर उपयोगिता अंग्रेजी की अधिक रही  या हिंदी की, ?

 सम्मान पुरस्कार या किसी भी लाभ के पाने के  लिए हम हिंदी को छोड़  अंग्रेजी को अपनाते ही हैं l  ऐसे में हिंदी के सम्मान के लिए अंग्रेजी से पंगा कौन लेगा ??

 जय हो अंग्रेजी,  जय हो अंग्रेजी करते रहिए l  केवल हिंदी दिवस के दिन हिंदी की सम्मान की बात कीजिये l  जय हो अंग्रेजी l 😅😂😅😂

[5/28, 21:55] SIDHESHWAR: हिंदी वाले  इतने बड़े पुरस्कार( राशि ) डे भी नहीं सकते ल  तभी तो हिंदी वाले भी  अंग्रेजी में अनुवाद करवाते हैं l  फिर हिंदी दिवस के दिन अंग्रेजी का विरोध क्यों करते हैं ??

[5/28, 21:57] SIDHESHWAR: 🏉 रेत समाधि ± गीतांजलि श्री ± हिंदी± अंग्रेजी== बुकर सम्मान

[5/28, 21:59] SIDHESHWAR: 🏉 रवींद्रनाथ  टैगोर ±  बंगला ±  अंग्रेजी =  नोबेल पुरस्कार

[5/28, 22:02] SIDHESHWAR: 🏉 यानी विश्व की सर्वश्रेष्ठ, सर्व  उपयोगी भाषा अंग्रेजी l 

🏉  हमारे देश में नौकरी , पढ़ाई लिखाई,  भाषा अंग्रेजी,  सिर्फ हिंदी दिवस के लिए हिंदी का खूब   गुण गाण,  सिर्फ हिंदी दिवस के दिन अंग्रेजी  पर गुस्सा l

🏉 वाहह रे देश के  अवसरवादी लोग l


[5/28, 22:10] Kahani Nitu Sudipti Nitya: सर जी, मुझे अंग्रेजी एकदम नहीं आती है। तो क्या करूँ ।

[5/28, 22:13] Kahani Nitu Sudipti Nitya: मेरी कहानियां मराठी में अनुवादित हैं अगर कल को उसे पुरस्कार मिल जाए तो आप सब यही कहेंगे नीतू को पुरस्कार मिला है मराठी में अनुवादित कहानी पर।

[5/28, 22:18] SIDHESHWAR: सारी  अच्छी संभावनाएं हिंदी में खत्म होते जा रही है l  अब तो हिंदी के पीछे दौड़ लगाने के  अपेक्षा अंग्रेजी सीख लीजिए l  अब प्रेमचंद ओर रेणु का जमाना नहीं रहा,  नहीं तो उन्हें भी बुकर सम्मान पाने के लिए  अपने हिंदी उपन्यासों को अंग्रेजी में अनुवाद करवाना ही पड़ता l

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