साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। इसी कार्यक्रम "हम में है दम" के निमित्त आज की यह रचना साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा प्रकाशित की जा रही है। साहित्य आजकल व साहित्य संसार दोनों टीम की ओर से आप सभी रचनाकारों के लिए ढेरों शुभकामनाएं। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें। आशा है नीचे सम्पूर्ण रचना आप जरूर पढ़ेंगे व कमेंट बॉक्स में कमेंट करेंगे।
रचना - कविता
शीर्षक:- आकांक्षा
पिता जी!
तुम लोरी सुना कर
सुला देते हो मुझे
और भेज देते हो
सपनों की दुनियां में
यह झूठी दिलासा दे कर
की मां
अवश्य आएगी
और मेरे आंसू पोंछ कर
अपनी ममता भरी
बाहों में समेट लेगी
मेरी मासूमियत को
परन्तु मुझे क्या मालूम
कि तुम मुझे
लोरी सुना कर
मात्र बहलाना चाहते हो।
माना कि तुम
दुःखी नहीं देखना चाहते मुझे
मगर पिता जी!
मां को देखने की जो
असीम आकांक्षा है मुझ में
शायद वो मिट नहीं
पाएगी कभी
तुम्हारी लोरी की
मधुर आवाज सुन कर भी
भले ही मैं
मिट जाऊं और
भूल जाऊं अपना
अस्तित्व ।
आचार्य डॉ पी सी कौंडल,
मंडी, हिमाचल प्रदेश
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