हे पिता
देखा नहीं हमने हरि को कभी
करती हूँ तुम्हारा हीं वंदन
हे पिता तुम्हारे चरणों में
करती हूँ सौ बार नमन.....
आकाश से ऊँचा कद तेरा
भगवान सी तेरी मूरत है
मैं धन्य हुई तुझको पाकर
मुझे तेरी बहुत जरूरत है
तेरे ऋण की कैसे भरपाई करूँ
करती हूँ समर्पित तन और मन
हे पिता तुम्हारे चरणों में .......
बैकुंठ की आशा क्यों मैं करूँ
बैकुंठ तेरे चरणों में हीं है
तेरा शांत स्वरूप हीं रूप मेरा
तेरे दिल में मेरा बसेरा है
तेरे रज कण से मेरा जन्म हुआ
दुनियाँ में हुआ मेरा अभिनंदन
हे पिता तुम्हारे चरणों में ....
तेरे हाथ जो मेरे सिर पर हो
मैं चट्टानों से भी टकरा जाऊँ
चाहे लाख मुसीबत आन पड़े
मैं फिर भी कभी न घबराऊँ
मेरे हृदय में सत्य की पाठ पढा
तुमने किया मेरे मन को कुंदन
हे पिता तुम्हारे चरणों में .......
संघर्ष करना ,बढते जाना
तूने हीं हमें सिखलाया है
बड़भागी मैं इस दुनियाँ में
तुम्हें पिता रूप में पाया है
उठ रोज प्रणाम करूँ तुझको
और नित्य दबाऊँ तेरे चरण
हे पिता तुम्हारे चरणों में .....
तू कर्म रूप तू धर्म रूप
हम भाई बहन के प्राण हो
मैं क्यों न तुम पर गर्व करूँ
तुम तो मेरे अभिमान हो
तूने सदाचार का राह दिखा
कर दिया है निर्मल तन और मन
हे पिता तुम्हारे चरणों में....
देखा नहीं हमने हरि को कभी
करती हूँ तुम्हारा हीं वंदन
हे पिता तुम्हारे चरणों में
करती हूँ सौ बार नमन।
स्वरचित:-
मनु रमण" चेतना "
पूर्णियाँ बिहार
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