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हमारी जिद और हमारा जुनून हमें और बेहतर करने को प्रेरित करता है :- सिद्धेश्वर
चित्रकार सिद्धेश्वर बिहार के पिकासो हैं। " अपूर्व कुमार
" मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक विद्रूपताओं को मूर्त रूप देने में अग्रणी हैं सिद्धेश्वर ! ": रशीद गौरी
पटना : 06/06/2022 ! साहित्यिक विचारों के संप्रेषण का ही एक माध्यम होता है कला या रेखाचित्र l इस मुकाम पर पहुंचने के बावजूद मुझे लगता है अभी बहुत सारे बेहतर काम करने बाकी हैं l और बेहतर काम करने के लिए, जिद और जुनून दोनों चाहिए l मेरा साहित्य सृजन हो या कला सृजन, 40 साल पहले भी मेरे भीतर जो जुनून और जिद्द रहती थी, वहीं जिद और जुनून आज भी है, जो मुझे सदा कुछ और बेहतर करने की ओर प्रेरित करती है l
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर हेलो फेसबुक कला एवं संगीत सम्मेलन में वरिष्ठ साहित्यकार एवं चित्रकार सिद्धेश्वर की ऑनलाइन कला प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें उनके बनाए गए अस्सी श्वेत श्याम रेखाचित्र और रंगीन कलाकृतियां शामिल है l इस अवसर पर युवा लेखिका राज प्रिया रानी ने सिद्धेश्वर से ऑनलाइन भेंटवार्ता लिया, जिनके सवाल का जवाब देते हुए सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया ! उन्होंने "हंस" के नए अंक के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित अपनी कलाकृति के सन्दर्भ में कहा कि 40 वर्षों से लगातार कला के प्रति समर्पित रहने का यह सुखद परिणाम है, जो आप लोगों की दुआओं और ईश्वर की कृपा से संभव हो पाया है l
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ रशीद गौरी (राज ) ने कहा कि - साहित्य, कला एवं संगीत के प्रति कवि एवं चित्रकार सिद्धेश्वर की निष्ठा और उनका समर्पण तथा उनकी संवेदनात्मक स्नेहिल आत्मीयता हमें अभिभूत करती है l वे अपने रेखाचित्रों, कलाकृतियों के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक विद्रूपताओं को मूर्त रूप देने में अग्रणी रहे हैं l उनके चित्रों का अपना अलग ही आकर्षण, प्रभाव एवं संसार है, आज की उनकी एकल कला प्रदर्शनी से यह आभास मिलता है l
सिद्धेश्वर का कला सृजन संसार उनके भीतर की संवेदनाओं की अभिव्यक्ति मात्र ही नहीं है, बल्कि एक दृष्टि है, जो जीवन के यथार्थ से उत्पन्न होती है !"
राज प्रिया रानी द्वारा किए गए एक सवाल के जवाब में सिद्धेश्वर ने कहा कि -- नई पीढ़ी से मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा कि कला और साहित्य में जल्दबाजी कदापि न करें, झूठे मान सम्मान के पीछे दौड़ लगाने से बेहतर है कि वे अपनी कला और सृजन के प्रति ईमानदार बने रहें ! क्योंकि अंततः उनकी अपनी कृतियां ही उन्हें अपनी पहचान दिलाती है ।.कला हो या साहित्य, उसे केवल स्वांत:सुखाए नहीं होना चाहिए l क्योंकि कला और साहित्य का उद्देश्य ही है, सामाजिक विसंगतियों को दूर करने का प्रयास करना और समाज, व्यक्ति और जीवन में सौंदर्य का निर्माण करना l हम जब नया सृजन करने की बात सोचते हैं, तब से ही एक नए आयाम की शुरुआत हो जाती है l आप खुद ही देखिए कि पारम्परिक कला और आज के डिजिटल कला में कितना अंतर आ गया है ? सौंदर्य और भाव में कितनी अधिक वृद्धि हुई है l क्या यह कला का नया आयाम नहीं है ? "
एक घंटे की लंबी भेंटवार्ता में राजप्रिया रानी केएक सवाल " क्या ऐसे सौभाग्य नए कलाकारों को प्राप्त हो सकता है ? " का जवाब देते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि - " क्यों नहीं ? यदि ईमानदारी से कोशिश किया जाए, तो अपने मिशन में अवश्य सफलता मिलती है ? बस सब्र करना चाहिए और लगन जारी रहना चाहिए ! बिना फल की चिंता किए यदि कर्म किया जाए तो उसका परिणाम सुखद होता है l मेरे रेखाचित्र कई वर्षों से प्रकाशित होते रहे हैं l देश की शायद ही कोई ऐसी प्रमुख पत्र पत्रिका हो जिसमें मेरे रेखाचित्र प्रकाशित नहीं हुई l प्रकाशन के ख्याल से, मेरे अपने साहित्य से अधिक सफलता मेरे रेखा चित्रों में मिली है l
बड़ी पत्रिकाओं के मुख्य पृष्ठों पर अपनी कलाकृति प्रकाशित होने की आकांक्षा वर्षों से रही, यह भी सच है और इसमें कई बार सफलता नहीं भी मिली l लेकिन मैंने अपनी लगन और प्रयास में कोई कमी नहीं आने दिया l
समय के साथ सब कुछ बदल जाता है ! जो समय की धड़कन को पहचान लेता है उसे अधिक सफलता मिलती है ! जब मैंने देखा कि डिजिटल जमाने में कलाकृतियां भी डिजिटल हो गई है, तब मैंने भी डिजिटल बनाने की कोशिश किया, और अंततः मुझे इसमें सफलता भी मिली ! इसी डिजिटल कलाकृति बनाने की देन है कि आज देश भर की कई पत्रिकाओं के मुख्य पृष्ठ तथा कई प्रमुख रचनाकारों की पुस्तकों के मुखपृष्ठ पर मेरी भी रंगीन कलाकृतियां प्रकाशित हो रही है l इसे मैं आप लोगों के स्नेह, शुभकामना, मंगल कामना और ईश्वर की कृपा के रूप में स्वीकार करता हूं!"
मुख्य अतिथि अपूर्व कुमार ने सिद्धेश्वर की कलाकृतियों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि --
साहित्यकार सिद्धेश्वर के रेखाचित्रों के सहज आकर्षण को देखकर मैंने पहले ही कहा था कि- यदि आप मकबूल को भारत का पिकास मानते हैं तो चित्रकार सिद्धेश्वर बिहार के पिकासो हैं।" सिद्धेश्वर की जो कृतियां हैं, उन्हें समझने के लिए मगजमारी नहीं करनी पड़ती; खासकर जब दृष्टिकोण साहित्यिक हो।इनके द्वारा की गई प्रत्येक चित्रकारी अद्वितीय है।इनके चित्रों का जब आप गौर से अवलोकन करेंगे, तो यह पाएंगे कि इनकी सभी कलाकृतियों पर स्त्रैण स्वभाव की छाप है।स्त्रैण स्वभाव की छाप होने के कारण इनके चित्रों से आत्मीय गुणों की अभिव्यंजना ज्यादा होती है।यही कारण है कि हम जैसे चित्रकला के अनाड़ी लोग भी इनकी कृतियों का कुछ सहज विश्लेषण करने के साथ ही उस चित्र के भाव को दर्शाती कुछ काव्यात्मक पंक्तियां भी सहज रूप से लिख देते हैंl " हंस ", ",वीणा "," साहित्य अमृत", " नूतन कहानियां " सहित देश की अन्य विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित रेखाचित्र तो एक बानगी मात्र हैं।इनकी सभी कृतियां एक से बढकर एक हैं। "
शायद इनके कला के भावनाओं की प्रकीर्णता के गुण के कारण ही इन दिनों देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनके चित्र अंदर के पृष्ठों पर प्रकाशित होने के साथ ही अब आवरण पृष्ठ की भी शोभा बढ़ा रहे हैं।
आइए इनके कुछ रेखाचित्रों पर प्रकाश डालते हैं!यौवन की ज्वाला-इस कृति में एक नारी मुखाकृति की सौम्य मुद्रा का प्रदर्शन इस तरीके से किया गया है मानो दहकते लाल अंगारों के समान प्रतिकूल परिस्थितियां भी उसे नीले अनंत आकाश में प्रगति के लिए उड़ान में बाधक नही है। यद्यपि मन में तप्त संवेदनाओं की ज्वालाएं हैं जिसे पीत और रक्त वर्ण के मिश्रण से दर्शाया गया है।चित्र के एक कोने में चित्रित हरा रंग समस्याओं के बीच भी विकास की प्रवृति को दर्शाता है। सफर का साथी साइकिल:- इसका प्रदर्शन पटल पर विश्व साइकिल दिवस पर किया गया।इस आकर्षक रंगीन चित्र में लाल रंग की साइकिल पर सवार एक बच्चे को हरी वादियों में घूमते दिखाया गया है। जैसा कि मैंने कहा है, इनकी कृतियों में स्त्रैण भाव है; तो इसमें भी सफेद रंग की एक आकृति है। यह मुझे एक ऐसी स्त्री के समान दिखती जो अपने दोनों हाथों से उस बच्चे को साइकिल सहित सुरक्षा दे रही है l इसी नाम से इनकी एक और कृति है जिसमें वह नारी अन्नपूर्णा रूप में साइकिल सहित बच्चे की मूरत मन में बिठाए है। चुंकि फसल पककर सुनहरे दाने का रूप ले चुकी है, इसलिए इस चित्र से हरियाली गायब है।हाल में ही हंस के जून अंक में प्रकाशित एक सजी- संवरी नारी की मोहक आकृति, नारी के मौन संप्रेषण की क्षमता को व्यक्त करती है।z"
विशिष्ट अतिथि ऋचा वर्मा ने कहा कि --" बचपन से सुनती आई हूं कि मॉडर्न आर्ट कला का वह नमूना है जिसमें आड़े तिरछे कुछ भी तरह से खींची गई रेखाएं या पेंटिंग होती हैं जो एक आदमी के पल्ले कभी नहीं पड़ती।
लेकिन कोरोना के द्वारा थोपे गए सामाजिक दूरी के नियम ने हम सबको 'अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के ऑनलाइन मंच से जोड़ा। मंच के संचालक आदरणीय सिद्धेश्वर सर अपने आप को 'कवि सिद्धेश्वर' के नाम से प्रस्तुत किया करते हैं और मैं भी जब फेसबुक पर उनसे जुड़ी उनके इसी नाम से परिचित हुई। पर धीरे धीरे जैसे-जैसे इनकी कारवां के साथ आगे बढ़ती गई तो पता चला कि मेरा परिचय सिर्फ एक नहीं बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति से हुआ है ,जिसका एक बहुत सशक्त पक्ष है और वह है 'चित्रकार सिद्धेश्वर' का।
चित्रकार सिद्धेश्वर ने अपने मंच पर हम सब का परिचय संदीप राशनीकर और रशीद गोरी जैसे चित्रकारों से और रूपांतर में करायाlसिद्धेश्वर सर के ऐसी प्रस्तुतियों और विशेषकर उनकी कलाकृतियों को देखते-देखते मेरा रुझान चित्रकला की ओर भी हुआ और तब धीरे समझ में आया कि बहुत बार बहुत से ऐसे रेखाचित्र या पेंटिंग्स जिन्हें हम मॉडर्न आर्ट कह कर नकार देते हैं, अगर उन्हें बहुत ध्यान और बारीकी से देखा जाए तो अपने आप में एक या अनेक संदेश देते दिखाई देते हैं। सिद्धेश्वर सर की कलाकृतियों में कुछ बात तो जरूर है जिसे सिर्फ कला मर्मज्ञ ही बता सकते हैं, कि उनके रेखाचित्र लगातार देश के छोटे से बड़े और लब्धप्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में क्यों स्थान पा रहे हैं।
एक आम दर्शक के तौर पर मैं लगातार इनके रेखाचित्रों को देखती आ रही हूं, और जहां तक मेरी समझ है इनके रेखाचित्र मानवीय संवेदनाओं को उजागर करने के लिए कृतसंकल्प दिखाई देते हैं। यद्यपि सिद्धेश्वर जी की अधिकांश चित्र जिंदगी की जद्दोजहद से तंग आई महिलाओं पर केंद्रित होते हैं, जिसके मनोभाव उसके होठों और आंखों की अलग-अलग कोणों से चित्रित होने के कारण बहुत आसानी से दर्शकों तक संप्रेषित हो , मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी!" को चरितार्थ करती है ! लब्धप्रतिष्ठित पत्रिका 'हंस' के मुख पृष्ठ पर प्रकाशित इनकी नवीन कलाकृति की बात करूं तो देखा जा सकता है कि बहुत हद तक ज्यामितीय रेखाओं से निर्मित यह चित्र एक महिला के चेहरे के बायें प्रोफाइल को दर्शाता है। सिर्फ एक हाथ, एक कान, एक आंख और आधा मस्तक चित्रित कर स्त्री और उसके वर्तमान स्थिति और उसकी मनोदशा को सिर्फ उसके आभूषणों और सिर्फ होठों को एक अलग तरह से चित्रित कर बहुत कुछ कहने की सफल कोशिश की गई है। औरत के हाथों की चूड़ियां , कानों का झुमका और ललाट पर चिपकी बिंदी सुहागन भारतीय स्त्री को दर्शा रही है। यह सुहागन स्त्री दुनिया की नजरों में बहुत ही संपन्न दिख रही है ,कानों के झुमके बड़े हैं और उन पर बहुत यत्न पूर्वक डिजाइनिंग भी की गई है। आंखें बड़ी बड़ी है मृगनैनी जैसी ,तो यह औरत निश्चित है एक संभ्रांत कुल की सुंदर महिला है। "
संगीत प्रेमी मुरारी मधुकर ने कहा कि -- वादियों में विराजमान मनमोहक दृश्य को निहारती नजर की तरह, सिद्धेश्वर की चित्रकारी पर हमारी नजर ठहर जाती है । निश्चय ही सिद्धेश्वर के रेखाचित्र एक खामोश जुबान होती है, जो न बोलते हुए भी बहुत कुछ बोल जाती है l "
दूसरे सत्र में, ऑनलाइन संगीत सम्मेलन के तहत रेणु कुमारी ने - " राम को भजने से बेड़ा पार है, यह मनुष्य सुंदर है, जन्म तुझको मिला, तुझ पर भगवान का उपकार है !"/ मधुरेश नारायण ने- देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान !/ मुकेश कुमार ठाकुर ने -- तुम मुझे देख कर मुस्कुराती रहो ,मैं तुम्हें देख कर गीत गाता रहूं !/. अंजू दास गीतांजलि ने --है आज मोहब्बत, कल नफरत भी देखेंगे हम ! को अपने स्वर में ढाला तो दूसरी तरफ मीना कुमारी परिहार में- " कैसा जादू बलम तूने डाला ? " गीत पर नृत्य प्रस्तुत किया ! और राज प्रिया रानी और सिद्धेश्वर ने - तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं " की संयुक्त अभिनय मिश्रित प्रस्तुति दी ! / स्मृद्धि गुप्ता (वाराणसी ) ने - हर मुलाकात में बस यही होता है !" गीतकी सहज अभिव्यक्ति दी l/ रितु मिश्रा (बेतिया )ने ध्रुपद शैली में एक फिल्मी गीत की शानदार प्रस्तुति दी - आओ तुम्हें चांद पर ले जाएं, एक नई दुनिया बसाएं !/ समृद्धि गुप्ता ने -तुझसे नाराज नहीं जिंदगी हैरान हूँ मैं को अपना स्वर दिया!"
इनके अतिरिक्त दुर्गेश मोहन, संतोष मालवीय, विभा रानी श्रीवास्तव, सुधा पांडे, श्रीकांत गुप्ता, शशि भूषण भदोही, संजय राय, सोहेल फारुकी, नरेश सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका, सत्यम, अभिषेक आदि की भी भागीदारी रही।
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( प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) /
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद)
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