6/19/22

पापा आप हैं मेरे लिए(महाप्रयाण):- डॉ शीला कुमारी एल





 महाप्रयाण

पापा आप हैं मेरे लिए

जीवन स्रष्टा ब्रह्मा ।

पालनकर्ता विष्णु ।

आपके महाप्रयाण हो

साल एक लम्बा गुज़र गया।

फिर भी पापा अब भी 

आपके साथ बिताए गए

अनमोल क्षण एक-एक कर 

सक्रिय व सचेष्ट रहते

मेरे ज़हन पर, मेरी रूह पर।


मेरे मन-उपवन में आपकी मीठी यादें

सदा वसंत ही वसंत सजाती रहीं।

कैसे भूल पाऊं पापा आपको ?

वाकई नामुमकिन मेरे लिए ।

आपके हरेक चाल, आपकी हरेक बातें

आंखों की गलियारी पर अब भी जीवंत ।

हाय पापा आपके वह प्रौढ उज्ज्वल

शख्सियत का क्या बखानी

सारी की सारी दौलतें इस धरती की,

निस्सार ही निस्सार मेरे लिए पापा I

आपका रोबीला व शानदार चेहरा,

प्यार स्निग्ध भरी चमकीली आंखें ,

केसरी-सम ऊँची- जागरित आवाजें ,

कैसे मैं विस्मृत कर पाती पापा?

आपके बोलने का निराला ढंग

आपके दृढ पगों का मन्द चाल

आपके आस्था युक्त पावन जीवन

आंखों के आंगन पर सदा-सर्वदा

नाच–थिरकता रहा जीवन्त बन ।


पापा कैसे भूल पाऊँ मैं आपको ?

परिवार व संतानों के परवरिश में

क्या- क्या यातनाएँ भोगीं आपने ?

वर्णन देने में असमर्थ यह रोशनाई।


आपके महाप्रस्थान का दिन कैसे मैं भूल पाती?

एक-एक क्षण सामने मौजूद तरो-ताज़ा बन

जब मैं ने जगाया नींद से आपको

तब नहीं जानती महाप्रयाण की वेला निकट है।

जब आप मेरी बांहों के सहारे बैठे

तब नहीं जानती महानिर्वाण का समय आया है।

जब चेहरे की विवशता देख खाट पर लिटा दिया

तब नहीं जानती महासफर का क्षण समीप है।

जब आपकी आंखों ने महाप्रयाण की तैयारी में

इधर-उधर घुमाघुमा कर सबसे विदा मांगी

तब प्रकृति ने उस शाश्वत सत्य से

अवगत कराया मुझे अपने चाल-चलन से ।


हाँ पापा, मैं टूट-टूट बिखर हो रही थी

फिर भी पापा, आपकी बेबसी देख

आपकी परेशानी देख, आपकी विदीर्णता देख

मैं सह न पायी, अपने को काबू पर रख

आपके माथे पर चूमकर अंतिम दिलासा दिया

कि पापा कुछ भी नहीं, डरने की बात ही नही

यह तो केवल दमघुट ....

हाँ जान लिया मैंने, दम के छोडने का घुट |

महाप्रयाण की तैयारी पर आप,

महासारथियों के पदछाप चारों ओर

देखने में असमर्थ हो,कि

पापा मुझे छोडकर सदा के लिए

संसार सागर को पारकर

जा रहे हैं विष्णुपद की ओर ........


एक क्षण अपने को भूल 

बाहर की ओर दौडी मैं लक्ष्यहीन ....

तुरंत ही कर्णपटों पर पड़ी

मां बहनों की चीख पुकार 

जाग उठी मेरी चेतना।

अवगत हुई प्रकृति सत्य से ।

हाँ, जो बात .होनी थी वह हुई।


पापा के पास आयी दुगुने वेग से ।

तब देहरी पर स्वागत किया मुझे

आपकी आत्मा की अनुपम शक्ति।

देख लिया बिजली सी चमक-कंपन 

महसूस किया आपकी रूह का सान्निध्य

जो भारी ऊन का बंडल-सा

प्रकाश पुंज समान

मेरी काया पर जोर से टकराकर बाहर जाती ।


अवाक् खड़ी मैं, अचंभित हुई मैं

आपकी आत्मा की इतनी ताकत

मेरे पापा का मुझसे इतना प्यार!

पापा कैसे विस्मृत करूँ मैं

आपके महाप्रयाण वेला की 

हम दोनों की आत्मा का मिलन ।


पापा गर्व महसूस कर रहा था

कि मैं आपकी बेटी हूँ।

पापा अब भी मेरे गर्व की बात यह

कि मैं आपकी बेटी हूँ।

चाहे जितनी भी ऊँचे-ऊँचे ओहदों पर बैठे,

चाहे जितने भी बडे-बड़े पुरस्कार पाए

मेरे गर्व की बात यह है कि

मैं आपकी लाडली बेटी ।

मेरे पापा आप ही।


हे प्यार के संचय

हे वात्सल्य के स्रोत

हर लम्हे पर, हर कदम पर

जानती आपकी आत्मा का स्पंदन

प्रार्थना करती अहर्निश मैं

आपकी शाश्वत शांति की खातिर

स्वीकार ले यह पुष्पांजलि

जो प्यार व श्रद्धा से अर्पित करती

आपके पावन स्मृतियों के समक्ष ।

✍️ डॉ शीला कुमारी एल

( शीला गौरभि )

सह आचार्या - हिन्दी

यूनिवेर्सिटी  कॉलेज

तिरुवनन्तपुरम

केरल

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