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!! प्रकृति का दोहन..!!
(पर्यावरण संरक्षण)
मानव के क्रियाकलापों से
बिखर रहा प्रकृति का संतुलन ।
बिंध रही धरती की छाती
मनुष्य कर रहा इसका दोहन ।।
चित्कार कर रही धरती
कुपित हो, मचा रही तांडव ।
दरक रहा पहाड़ों का सीना
मिट रहा नदियों का उद्भव ।।
जल-जंगल-जमीन से हमारा
सदियों का बंधन है ।
प्रकृति का मोहक स्वरूप
हमारे जीवन का अवलंबन है ।।
हमारे ही कृत्यों से
कांप रही धरती ।
बिखर रही इसकी आभा
सिमट रही इसकी आकृति ।।
स्वार्थ के निमित्त हो
ना छेड़ो इसके स्वरूप को ।
विध्वंस हो जाएगा जन-जीवन
सुरक्षित रख लो अपने वजूद को।।
✍️ आर सी यादव
दिल्ली
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