6/28/22

वर्तमान संदर्भ में कविता का जीवंत होना ही समकालीनता है l :-सिद्धेश्वर

  वर्तमान संदर्भ में कविता का जीवंत होना ही समकालीनता है l :-सिद्धेश्वर


               पटना :28/06/2022! "  समाज की वर्तमान विसंगतियों से दूर एवं यथास्थिति से अनभिज्ञ कविताएं समकालीन नहीं हो सकती, भले वह आज की कविता ही क्यों ना हो? कबीर आज इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि वर्षों पूर्व लिखी गई उनकी कविताएं उस वक्त जितनी जीवंत दिखती थी उतनी ही आज भी! आमजन से जुड़ी हुई वर्तमान विसंगतियों पर प्रहार करती हुई जीवंत कविताएं ही समकालीन हो सकती है! चाहे वह कविता गीत गजल के  रुप में  लिखी गई हो या फिर छंदमुक्त के रूप में l वर्तमान संदर्भ में कविता का जीवंत होना ही समकालीनता है l "

                भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आयोजित " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " की अध्यक्षता करते हुए उपरोक्त उद्गार सिद्धेश्वर ने व्यक्त किया ।

          सम्मेलन के मुख्य अतिथि खंडवा, मध्य प्रदेश के प्रतिष्ठित कवि डॉ शरद नारायण खरे ने कहा कि --कविता तभी सार्थक मानी जाएगी,जब वह अपने युग के हालातों का बोध कराए।समकालीनता से परिपूर्ण कविता ही सार्थक मानी जाएगी।अपने युग से बेख़बर कविता कदापि भी सार्थक व उपयोगी नहीं मानी जा सकती।वर्तमान के हालातों, विकृतियों,विडम्बनाओं व नकारात्मकताओं को चित्रित करने वाली कविता ही आज के लिए न केवल उपयुक्त मानी जाएगी,बल्कि सराही व स्वीकारी भी जाएगी।

      कविता में समकालीनता बोध तो प्रतिबिम्बित होना ही चाहिए,अन्यथा कविता निरर्थक-सी जान पड़ती है।वस्तुत: कविता में अपने समय का प्रतिबिम्ब होने से ही कविता में चेतना व ऊर्जा समाहित दृष्टिगोचर होती है।कविता को समकालीनता से रहित कर देने से कविता कविता रह ही नहीं जाती है। " 

              आराधना प्रसाद ने फिलहाल यह काफी है कि तुम खुद को बदल लो!,दुनिया को बदलने में अभी वक्त लगेगा l /  प्रखर पुंज ने - कहानी से बड़ा किरदार होना,जरूरी है बहुत दमदार होना!"/ पुष्प रंजन ने सुनो ठेकेदारों दलालों तुम भी सुनो आपने अपने अनुयायियों की सिसकियां, यदि कान है तुम्हारे!/ ऋचा वर्मा ने - एक अदना सा पंछी,अपनी पूरी शक्ति को समेटे, छोड़ने को तैयार!/ डॉ सुनील कुमार उपाध्याय ने - मन वृंदावन बिन सुन परल बा!/मीना कुमारी परिहार ने-  प्यार के मुश्किल सफर में, हूं अभी हर एक नजर में!/ राम नारायण यादव ने-: सावन की घटा घनघोर,रिमझिम वर्षा चाहूँ ओर, सखी वन में नाचे मोर /सुनील कुमार ने तमाम उम्र  हम तुम्हें भुला सकेंगे क्या ? जैसी अपनी सारगर्भित कविताओं का पाठ किया l 

                   इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में जैसी समकालीन कविताएं पढ़ी गई  l इसमें नीरज सिंह, रूचि.मधुरेश नारायण, मुरली मधुकर, संतोष मालवीय,दुर्गेश मोहन सुनील कुमार उपाध्याय  की भी भागीदारी रही l

🔷💠 प्रस्तुति :ऋचा वर्मा (उपाध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद ////// 

हमारे व्हाट्सएप से जुड़ें.. |   हमारे यूट्यूब से जुड़ें   |

सूचना:- साक्षात्कार देने हेतु यहाँ क्लिक करें

                                      👆👆                                

यदि आप अपना साक्षात्कार देना चाहते हैं तो आदरणीय यह साक्षात्कार देने हेतु साहित्य आजकल की आधिकारिक फॉर्म है। अतः इसे सही सही भरकर हरे कृष्ण प्रकाश के साथ अपना साक्षात्कार तिथि सुनिश्चित करवाएं।।
(Online/Offline दोनों सुविधा उपलब्ध)
ईमेल- sahityaaajkal9@gmail.com
   धन्यवाद:- *(साहित्य आजकल टीम)



 









No comments:

Post a Comment