7/1/22

मैं बदल रहा हूं:-रामवृक्ष ( हम में है दम भाग-2)

साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। इसी कार्यक्रम "हम में है दम" भाग-2 के निमित्त आज की यह रचना साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा प्रकाशित की जा रही है।

                                    साहित्य आजकल व साहित्य संसार दोनों टीम की ओर से आप सभी रचनाकारों के लिए ढेरों शुभकामनाएं। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें। आशा है नीचे सम्पूर्ण रचना आप जरूर पढ़ेंगे व कमेंट बॉक्स में कमेंट करेंगे।

 भाग २ हेतु

 

शीर्षक-  मैं बदल रहा हूं

शिक्षित से अच्छा अनपढ़ था

फिर भी शिक्षित से बढ़कर था

अपने अपनों का अपनापन

सुशीतल मधुर सुधाकर था


अब अनपढ़ से मैं शिक्षित हूं

संस्कारों से परिशिक्षित हूं

फिर भी न जाने क्यूं खुद से

खुद ही खूब मैं लज्जित हूं    


न कहीं रहा खुशियों का पल

सांस्कारिक भरे कल का कल

शिक्षित से अच्छा अनपढ़ था

न थी लोगों में कल बल छल,


बढ़ रहें थाना चौकी क्यों

घरों में चूल्हा चक्की क्यों

जब अनपढ़ से अब शिक्षित हम

तब बच्ची नहीं सुरक्षित क्यों,


हो चले खूब हम शिक्षित हैं

मन से ईर्षित उपेक्षित है

मदिरालय खुल रहें पग पर

फिर कहते हम प्रतिष्ठित हैं


अदालत में अपराध बढ़े

दुल्हन अग्नि की भेंट चढ़े

न मात पिता न भाई बन्धु

न धर्म ग्रंथ संस्कार भरे,



ऐसी शिक्षा ऐसा विकास

कर दे अन्तर्मन का नाश

बढ़ रहे बृद्धा आश्रम अब

कैसा सृजित होता समाज!


स्वरूप जमाने का देखा

अपनों को करते अनदेखा

सोंचा कि मैं बदल रहा हूं

पर देता खुद को धोखा


मन में संतोष न भाव मिले

ना मंजिल कहीं मुकाम मिले

द्वेष अग्नि में झुलस रहा हूं

सोंचा कि मैं बदल रहा हूं


रचनाकार- रामवृक्ष,

 अम्बेडकरनगर।

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2 comments:

  1. Very good👌👍

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  2. शानदार प्रेरक सृजन के लिए आदरणीय को सहृदय बधाई नमन!

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