साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। इसी कार्यक्रम "हम में है दम" भाग-2 के निमित्त आज की यह रचना साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा प्रकाशित की जा रही है।
साहित्य आजकल व साहित्य संसार दोनों टीम की ओर से आप सभी रचनाकारों के लिए ढेरों शुभकामनाएं। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें। आशा है नीचे सम्पूर्ण रचना आप जरूर पढ़ेंगे व कमेंट बॉक्स में कमेंट करेंगे
मै अंगार हूं
🌷🌷🌷🌷
मै फूल हूं बहार हूं
शीतल बयार हूं
पापा की चिड़िया
मां की लाडो सुकुमार हूं
भैया की प्यारी बहन
बहना की अतरंगी
सखियों की संगवार हूं
साजन का प्यार हूं
मै शर्मीली नार हूं
मायके की आन हूं
और सासरे की शान हूं
नंदो की प्रिय सखी
देवर की भाभी जान हूं
बच्चो के लिए मैं
ममता मई मात हूं
उनपे जो कुदृष्टि डाले
तो करती संहार हूं
विनम्र साहित्यकार हूं
लिखती प्रेम श्रृंगार हूं
देश की विसंगति पे
उगलती अंगार हूं
डाले जो नजर बुरी
तीखी कटार हूं
पुरुषो पे भारी पड़े
मै ऐसी विकट नार हूं
बरसाती सदा प्रेम स्नेह
कभी छोड़ती रसधार हूं
हां मैं ऐसीअलबेली
बहाती प्रेम धार हूं
बुरी नजर वालो पे
उगलती अंगार हूं
हां मैं अंगार हूं
शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छत्तीसगढ़
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