साहित्य आजकल द्वारा आयोजित "हम में है दम" कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी है। ज्ञात हो कि इस प्रतियोगिता कार्यक्रम में भाग लिए सभी रचनाकारों में जो विजयी होंगे उन्हें नगद पुरस्कार स्वरूप 101 रुपया, शील्ड कप और सम्मान पत्र उनके आवास पर भेज कर सम्मानित किया जाना है। इसी कार्यक्रम "हम में है दम" भाग-2 के निमित्त आज की यह रचना साहित्य आजकल के संस्थापक हरे कृष्ण प्रकाश के द्वारा प्रकाशित की जा रही है।
साहित्य आजकल व साहित्य संसार दोनों टीम की ओर से आप सभी रचनाकारों के लिए ढेरों शुभकामनाएं। यदि आप भी भाग लेना चाहते हैं तो टीम से सम्पर्क करें। आशा है नीचे सम्पूर्ण रचना आप जरूर पढ़ेंगे व कमेंट बॉक्स में कमेंट करेंगे
*लाडली का पहला ख़त*
क्यों माँ?
ये तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?
जिन हाथों में कलम पकड़ाने के बजाय,
उन हाथों में मेंहदी लगवा दी।।
क्यों मेरे सपनों को कुचला जा रहा है?
मैं भी आसमानों में उड़ना चाहती हूँ।।
मैं भी अपने सपनों के मंजिलों को छूना चाहती हूँ।।
क्यों मेरे पांव को तू रोक रही हो?
मैं भी इस जमाने से आगे जाना चाहती हूँ।
क्यों चंद पैसों से मेरा बोली लगवा रही हो?
दहेज को और तू बढ़ावा दे रही हो!!
क्यों अपनो को पराया और पराए को अपना बता रही हो?
माँ इस जमाने से लड़ने की साहस तुझमें क्यों नहीं है?
आखिर क्यों , मेरा चेहरा तेरे आँखो के सामने आने से
पहले ही तू सहम सी जाती हो?
तू इस जमाने की परवाह न कर
ये जमाना ऐसे ही पीठ पीछे बोलते ही रहेंगे।
मुझे बन जाने दो कल्पना चावला,
मुझे बन जाने दो मदर टेरेसा।।
एक दिन सारे दुनिया वालो के सामने.
तू गर्व से कहेगी "हा ये मेरी
लाडली बेटी नहीं लाडला बेटा है"।।
✍️
*शिवम प्रकाश*
मुंगेर, बिहार
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*मुंगेर (बिहार)*
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