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7/2/22

देखा आज एक इंसान को मैंने :- अविनाश शर्मा

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 कविता - पागल

 देखा आज एक इंसान को मैंने ,

खुद से ही बातें करते हुए ,

कभी हंसते ,कभी गाते ,

कभी रो रो के आहें भरते हुए....


 देख कर उसकी हालत ऐसी,

 मन में प्रश्न से चलने लगे ,

राहगीर मुझे जैसे ,वहीं पर ,

रुक कर बातें करने लगे...


 कोई कहता इसके मन पर शायद,

 वज्रपात कोई हुआ होगा ,

या फिर कोई भयानक हादसा ,

इसके साथ जरूर हुआ होगा....


 कोई करता बात पिछले जन्म की ,

बुरे कर्मों का हिसाब हुआ होगा ,

भोग रहा है यह जो दर्द आज ,

पाप इसमें भी कोई किया होगा....


 कहते कहते सब बढ़ गए आगे ,

मैं खड़ा रहा वहीं, लिए प्रश्न कई ,

होंगे इसके भी कई रिश्ते नाते,

 इसका भी हुआ होगा घर कोई....


 कठिन सी है जिंदगी इसकी ,

पतझड़ के जैसे लगने लगी,

 ना कोई पता, ना कोई फूल,

 पल पल रोज बिखरने लगी ....


इसने भी कभी अपने जीवन में ,

सपनों को प्यार किया होगा ,

मंजिल जिसकी मिले ना मिले ,

रास्ता वह तय किया होगा...


 आज बैठा यू राहों में अनजान ,

खुद को मंजिल से जुदा किए ,

पत्थर उठाकर मारे सभी को,

 जिम्मेदार हो जैसे वह , इस हालत के लिए ...


दुनिया ने नाम दिया है पागल ,

उसकी इन हरकतों के लिए,

 अविनाश तू भी कह दे कुछ जरा,

 कब तक खड़ा रहेगा ,

मन में यू प्रश्न लिए.... 


अविनाश शर्मा

Kapurthala

Punjab

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1 comment:

  1. अच्छी रचना के लिए सहृदय बधाई आदरणीय!

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