7/11/22

साहित्य की कोई भी विधा तभी प्रासंगिक है जब आम पाठक उसे पढ़ने में रुचि दिखलाए !: सिद्धेश्वर

साहित्य की कोई भी विधा तभी प्रासंगिक  है जब आम पाठक उसे पढ़ने में रुचि दिखलाए !: सिद्धेश्वर 

आम पाठक उपन्यास या लम्बी कहानियों में रुचि नहीं रखता !" : मंजू सक्सेना



  पटना : " सोशल मीडिया के जमाने में साहित्य के प्रति दिलचस्पी बढ़ी तो है लेकिन लोगों की पसंद में जबरदस्त बदलाव आया है । चाहे वह कहानी हो,उपन्यास हो, कविता हो या साहित्य की कोई भी अन्य विधा ।ठेठ हिंदी भाषा का प्रयोग भी कहानी को अपठनीय बना दे रही है और ऎसी कहानियां भी आम पाठकों के लिए रुचिकर नहीं रह गई । इस तरह की पुस्तकें भले पुरस्कृत हो जाए किंतु सिर्फ पुस्तकालयों की शोभा ही बनकर रह जाती है l

                           भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन की अध्यक्षता और संचालन करते हुए कवि - कथाकार सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया lउन्होंने विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि शिवानी हो या मृणाल पांडे, गीतांजलि श्री हो या अनामिका, इनकी कहानियां सहज सरल भाषा में नहीं होती l ऐसी बोझिल कहानियां न तो पहले इतनी लोकप्रिय थी ना आज l प्रेमचंद,  रेणु,, धर्मवीर भारती या विमल मित्र जैसे कहानीकारों की  कहानियों के पहले भी अधिक पाठक थे और आज भी हैं l इस श्रेणी में आज भी चित्रा मुद्गल, सुषमा मुनींद्र, रामदरश मिश्र, मिथिलेश्वर, भगवती प्रसाद द्विवेदी , जयंत , अशोक प्रजापति जैसे कई कथाकार है,जिनकी कहानियां आज भी पूरे चाव से पढ़ी जातीं हैं l लेकिन मुख्यधारा में छाए हुए  अधिकांश कथाकारों का नाम तक भी आम पाठक नहीं जानते, उनकी कहानियों को पढ़ना या पसंद करना तो दूर की बात है l साहित्य तभी बोधगम्य  है, ज़ब वह आत्मा की भाषा बने, सिर्फ किताबों की  भाषा नहीं l पाठकों की पहली पसंद ऐसी ही कहानियां होती है l "

                       कथा सम्मेलन की मुख्य अतिथि चर्चित कथाकार मंजू सक्सेना (लखनऊ ) ने कहा कि - " आज आम पाठक उपन्यास या लम्बी कहानियों में रुचि नहीं रखता।खासतौर पर कहानी में अनावश्यक दृश्यों के लम्बे विवरण या लम्बी बहस के संवादों को पढ़ने का उसमें धैर्य नहीं है।इसलिए भूमिका या प्रस्तावना भी उसे पसंद नहीं।वह सीधे तौर पर मुद्दे की बात पढ़ना चाहता है। भारतीय कथाकार मुंशी प्रेमचंद्र के अनुसार, "कहानी एक ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है. एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपुरित कर देता है, जितना रातभर गाना सुनने से भी नही हो सकता."हिन्दी की नयी कहानियों में आज के युग की दिशाहीनता, उत्कण्ठा, उलझन, मानसिक भटकाव और अन्तर्द्वन्द्वों का सजीव चित्रण नये शैली-विधान में किया जा रहा है।और यही आज के पाठक की पसंद है।"

                 मुख्य वक्ता ऋचा वर्मा ने कहा कि - मनुष्य आज के समय में मशीन बन गया है l मशीन को तो तेल पीकर चलने से मतलब है, साहित्य और कला में भला उसकी रुचि क्योंकर होगी? साहित्य प्रेमियों की बात छोड़ दी जाए तो आम इंसान अपने खाली वक्त में वैसे ही कहानियां पढ़ना चाहेगा,जिसमें मनोरंजन हो प्रवाह हो, जिनमें उसके जीवन या आसपास चल रही समस्याओं का समाधान हो और सबसे जरूरी कि वह उस कहानी से अपने आप को जोड़ सकें l कथाकारों को ऐसा ही प्रयास करना चाहिए l

                 राज प्रिया रानी ने कहा कि - ज्ञान वर्धन की बात हो या मनोरंजक कि अब लोग लंबी कहानियों के अपेक्षा सहज भाव में लिखी गई छोटी कहानियां अधिक पसंद करते हैं, इन बातों से इनकार नहीं किया जा सकता है l जबकि मुरारी मधुकर ने कहा कि - कहानी सुप्त संवेदना को जागृत करने वाला चरित्र निर्माण और सामाजिक सौहार्द को बढ़ाने वाला होना चाहिए l "

                इस कथा सम्मेलन में देश के चार नए पुराने कथाकारों की कहानियां शामिल की गई l मंजू सक्सेना ( लखनऊ ) ने " संस्कार " / जयंत ने " मनहूस आया " / नीलम नारंग (पंजाब )ने " अपना अपना आसमान  " एवं  सिद्धेश्वर  ने " यह भी सच है!" कहानी का पाठ किया, जिन्हेँ अधिकांश पाठकों ने सराहा l इनके अतिरिक्त अतिथि कथाकार के रूप में प्रेमचंद की कहानी " यह भी नशा : वह भी नशा " तथा चित्रा मुद्गल की कहानी " रक्षक भक्षक " वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत किया गया l

                 इनके अतिरिक्त अशोक कुमार,,कीर्ति काले, सपना शर्मा, अंकेश कुमार, नीलम श्रीवास्तव, केवल कृष्ण पाठक,, मधुरेश नारायण, हरि नारायण हरि, चाहत शर्मा, अंजना पचौरी, पुष्पा शर्मा,पुष्प रंजन , नीरज सिंह, संतोष मालवीय,दुर्गेश मोहन, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय आदि  की भी दमदार उपस्थिति रही l

🔷💠 प्रस्तुति :ऋचा वर्मा (उपाध्यक्ष ) / एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )भारतीय युवा साहित्यकार परिषद /////

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