7/13/22

ईर्ष्या - रोग :- सलोनी चावला

 ईर्ष्या - रोग :- सलोनी चावला 

           


         


दिए से आग लगे न लगे, पर ईर्ष्या से तो लग जाएगी,

लौ-अग्नि जल से बुझ जाए, पर ईर्ष्या  नहीं बुझ पाएगी। 


ईर्ष्या-रोग है ना-इलाज, यदि शुरु में ना रोका जाए,

कली उखड़ जाए तो ठीक, वरना बरगद उगाएगी। 


यह आग नहीं, है ज्वालामुखी, जो तहस-नहस कर दे जीवन,

यह वह ज़हर है जिसकी गंध भी भारी पड़ जाएगी। 


कब किसी सच्चे दोस्त को जानी दुश्मन बना जाएगी,

प्यार का हाथ बढ़ाओगे तो पीछे से डस जाएगी। 


दिमाग का संतुलन हिल जाए, जो भी इससे ग्रस्त हो जाए,

शिकार पर वार करें कैसे - बस उम्र इसी में कट जाएगी। 


यह रोग नहीं सिर्फ कलयुग का, सतयुग- द्वापर भी बचे नहीं,

राम-बनवास, महाभारत, युगों तक सुनाई जाएगी। 


सहन-शक्ति के अभाव में, अभिमानी, तंग-दिल वालों में, तंग-सोच वालों में यह बीमारी ज़्यादातर पाई जाएगी। 


खुद से ज़्यादा काबिल को स्वीकार कर जाए जो मन, 

उस दिल - दिमाग को यह बीमारी छू भी न पाएगी।


दूजों का सुख हो अपना दुख - यह भाव कभी उगने न दो,

यही सीख टीकाकरण है : रोग से यही बचाएगी।

                रचयिता - सलोनी चावला

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