7/2/22

बॉर्डर की जंग खत्म होते ही:- मीनाक्षी शर्मा

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  कविता  --- फौजी 



--बॉर्डर की जंग खत्म होते ही मैंने अपने अफसर महोदय से

 कुछ दिनों की छुट्टी की अर्जी लगाई,

 अफसर महोदय ने कुछ  टाल-मटोल किया

 फिर मेरी अर्जी पर मंजूरी जताई,


--अगली सुबह में जल्दी उठकर तैयार हो गया,

गांव जाने की खुशी में मन तो जैसे  बावला सा हो गया,

मेरी खुशी का अंदाजा लगा मेरे साथियों का हाल बेहाल हो गया,

कहने लगे वह मुझसे की फौज की

 नौकरी तो कर ली लेकिन घर परिवार से मन अनजान हो गया,


-- गांव की गलियों में करीब 4 साल बाद पांव रखने को मिला,

मेरे चेहरे पर जैसे कोई ताजा फूल हो खिला,

मुझे वह एक एक चेहरा याद था आज भी,

बॉर्डर पर जाते वक्त आखरी बार था जिसे मिला,


-- गांव के बस स्टॉप पर उतरकर पैदल ही घर की तरफ चला,

गांव की कच्ची सी गली में कोई हलचल नहीं थी,

ना तो बहू बेटियों की बातें करने की आवाज,

ना ही गली में खेल रहे बच्चों का शोर,

ऐसी स्थिति ने मेरे मन को कुछ  कुचला,


-- घर पहुंचा तो बच्चे भाग कर मुझसे लिपट गए,

 बीवी की आंखें भी खुशी से नम हो गई,

मां बाप भी खुशी से मेरी बाहों में सिमट गए,


-- बहुत सालों बाद इकट्ठे बैठकर खाना खाने का दिन आया,

बहुत सालों बाद मां ने मेरे मन को भाता पकवान बनाया,


-- बातों बातों में मुझे मां ने बात बताइए,

गांव की हवा में बहुत खराबी है भर आई,

बच्चों की चोरी ने पूरे गांव में धूम  है मचाई,

बहू बेटियों की इज्जत तो जैसे राख के भाव है लगाए,


-- यह सब सुन मेरा मन शर्मसार हो गया,

बॉर्डर पर दुश्मन को हराकर मैंने कौन सा बड़ा तीर मार लिया,

मेरा देश तो फिर भी ऐसे घिनौने अपराधों का गुलाम हो गया,


-- क्यों 15 अगस्त और 26 जनवरी मना कर

 देशभक्ति का ढोंग किया करते हैं,

महात्मा गांधी और भगत सिंह जैसे बलिदानों को

 शर्मसार किया करते हैं,

हमारे देश को आजादी दिलाते दिलाते वह खुद जान गवा बैठे,

और देश के दुश्मन फिर भी देश  मैं आ   बैठे....


 मीनाक्षी शर्मा

कपूरथला

पंजाब

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1 comment:

  1. बेहतरीन रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई आदरणीया!

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