7/25/22

परंपरागत गजल के लिए हिंदी गजल एक वरदान है!: सिद्धेश्वर

"परंपरागत गजल के लिए हिंदी गजल एक वरदान है!: सिद्धेश्वर 

हिंदी ग़ज़ल आमजन के हृदय को छू लेने की क्षमता रखती है!: डॉ सविता सिंह नेपाली

 उर्दू गजल की दुरुहता  के कारण हिंदी ग़ज़ल का उद्भव हुआ!:डॉ शरद नारायण खरे

                   पटना :25/07/2022!  " गजल यानी परंपरागत गजल के लिए समकालीन हिंदी गजल एक वरदान है l औऱ यह वरदान दिया है हिंदी गजल को लोकप्रिय बनाने वाले कवि दुष्यंत कुमार ने l  यह सर्वविदित है कि दुष्यंत कुमार के पहले हिंदी गजल कि वह तल्खीपानी और विषयगत नवीनता देखने को शायद ही मिली हो l हालांकि गोपालदास नीरज की गीतिका को गजल की लोकप्रियता का एक अलग पैमाना माना जा सकता है l किन्तु विशुद्ध हिंदी गजल की जो बानगी दुष्यंत कुमार की गजलों में देखने को मिलती है, वह प्रायः हिंदी गजलों के इतिहास में दुर्लभ है l"

                           भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " के तहत सावन मौसम के अवसर पर एक रंगीन गीत गजल का अखिल भारतीय आयोजन का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उल्लेखित विषय के संदर्भ में उन्होंने आगे कहा कि -अस्सी प्रतिशत हिंदी भाषियों की इसी विवशता को ध्यान में रखकर दुष्यंत कुमार ने आम जन की भाषा यानि शुद्ध हिंदी भाषा में गजल कहने की परंपरा की शुरुआत की l इसके पहले भी कुछ हिंदी गजल लिखी गई, किंतु  जो लोकप्रियता हिंदी गजल को दुष्यंत कुमार के माध्यम से मिली, वह अद्भुत है l इसलिए दुष्यंत कुमार को हिंदी गजल के प्रयोगधर्मी कवि कहते हैं l"

                 " हिंदी ग़ज़ल की प्रासंगिकता और कविता "  विषय को केंद्र में रखकर मुख्य अतिथि डॉ सविता सिंह नेपाली ने कहा कि -संगीत की दुनिया में शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत, सुगम संगीत इत्यादि के अलावा ग़ज़ल का भी विशेष महत्व सदा से ही रहा है । इसके श्रोता भी बहुत विशिष्ट हैं । संगीत और साहित्य में गहरा संबंध हैं । शब्दों का प्रभाव और संगीत की मिठास से तन मन में एक तरंंगे झंकृत होने लगती हैं । व्यक्ति का मस्तिष्क तरोताज़ा हो जाता है । अब तो वृक्षों को संगीत सुनाकर तथा जानवरों को संगीत सुनाकर उन्हें विकसित किया जाता है ।ताकि ये सबकी आवश्यकता अधिक से अधिक पुरी कर सकें।

                    समकालीन कविता की बोझिलता बहुत हद तक हिंदी गजल ने दूर कर दिया है l हिंदी ग़ज़ल आम जन की भाषा में अभिव्यक्त होती है, इसलिए वह कविता की सबसे सशक्त विधा बन गई है  l वह सहज सरल तो है ही आमजन के हृदय को छू लेने की क्षमता भी रखती है l साहित्य अपने विकास की रास्ता स्वयं ढूंढ लेती है l पत्र -पत्रिका कम पड़ने लगी, तब सोशल मीडिया ने इसे विस्तार दिया है, और वैश्विक फलक पर साहित्य का मूल्यांकन आज भी हो रहा है!

          अपनी अध्यक्षीय भूमिका में डॉ शरद नारायण खरे ( मध्यप्रदेश ) ने कहा कि - उर्दू ग़ज़ल बेहद कठिन होने से आम आदमी की समझ के बाहर होती है। समझ में न आ पाने वाले जटिल उर्दू शब्दों से परिपूर्ण उर्दू ग़ज़ल काफी दुरूह होती है। इसी लिए हिंदी ग़ज़ल का उद्भव हुआ। हिंदी ग़ज़ल अपनी सरसता,सरलता, मधुरता व प्रवाह के कारण पाठक को न केवल समझने में आसान होती है, बल्कि पाठक को प्रभावित भी करती है। हिंदी ग़ज़ल में हिंदी कविता जैसा ही माधुर्य होता है।

     इस समय नई कविता/समकालीन कविता/अतुकांत कविता के नाम पर ऊलजलूल कुछ भी लिखा जा रहा है।यह लेखन न सृजन है,न ही साहित्य।ऐसी रचनाएं निरर्थक ही प्रतीत होती हैं l"

            मुख्य वक्ता ऋचा वर्मा ने कहा कि -  ".जब हम गजल और कविता में तुलना करने लगते हैं तो एक बात हमें ध्यान रखनी  चाहिए कि छंद मुक्त और मुक्त छंद की कविताएं प्रचलन में आ जाने के कारण गजल और कविता में एक स्पष्ट अंतर नजर आता है । जहां मुक्त छंद, छंद मुक्त कविताओं में कोई नियम या अनुशासन नहीं होता वही गजल में हमेशा ही एक अनुशासन होता है छंदों का, काफिया का , मीटर का।

समकालीन कविताएं कभी-कभी इतनी बोझिल हो जाती हैं कि पाठकों के समझ नहीं आतीं। ना इनमें भाव होते हैं ना गेयता ,बस ये सब उस पहेली की तरह होतीं हैं जो कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा ही सुलझाई जा सकतीं हैं। वहीं गजल अपने अंदाज -ए -बयां के चलते लोगों में खासकर युवा पीढ़ी में काफी लोकप्रिय है। ऐसे समय में गजल चाहे वह हिंदी में हो चाहे उर्दू में दोनों की प्रासंगिकता एक समान है जिन लोगों की उर्दू भाषा पर उतनी पकड़ नहीं है, वे लोग देवनागरी लिपि में हिंदी में गजलें कहते हैं तो इसमें क्या बुराई है। हिंदी कविता अगर लोकमानस पर अपेक्षित प्रभाव नहीं जमा पाती तो हिंदी के कवि भी गजलों की ओर रुख करते हैं क्योंकि अगर गजलों में रवानी है और उनके विषय हमारे दिल को छू जाते हैं, तो वे हमें अर्से तक याद रहते हैं। गजलकारों के अलावा श्रोता या पाठक हिंदी ग़ज़ल को इसलिए पसंद करते हैं कि उनमें हिंदी या उर्दू के जिन शब्दों का उपयोग किया जाता है वे शब्द लोगों के समझ में जल्द आ जातें है। गजल का एक रिश्ता संगीत और तरन्नुम से भी है और संगीत तो एक बीमार व्यक्ति को भी स्वस्थ करने की क्षमता रखता है। आज लोग भले ही गजल को किताब में पढ़ना पसंद ना करते हो पर गजल सुनने का शौक हर उस व्यक्ति का होता है जिसका हृदय संवेदनशील होता है। इसलिए हिंदी ग़ज़ल आज उतनी ही प्रासंगिक और लोकप्रिय हैं जितनी लोकप्रिय आज भी हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला है।सावन का महीना है और आज का विषय गजल है तो मैं अपनी बात नीरज की गजल जो कि हिंदी भाषा में है की दो पंक्तियों से समाप्त करती हूं

'जब चले जाएंगे हम लौट के सावन की तरह 

याद आएंगे प्रथम प्यार की चुंबन की तरह'!"

          इस अखिल भारतीय हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन में, देशभर के नए पुराने कवियों की भागीदारी रही!डॉ शरद नारायण खरे (म. प्र.)ने - गीत गा रहा माह सुसावन, आसमान सुशोभित है बहुत दिनों के बाद धरा खुश,तबीयत आनंदित है!"/ अशोक अंजुम (अलीगढ़) ने मन जिस जगह लगा मैं उधर देर तक रहा,मुझ पर मोहब्बतों का असर देर तक रहा!/विजयानंद विजय (बोधगया) ने - बदरा बरसे बिजली चमके, उमड़ घुमड़ कर आया सावन!तृण तृण  पर नवजीवन छाया कोटि-कोटि हर्षाया सावनl /शैलजा सिंह (गाजियाबाद ) ने -वो जब बोलता है बहुत तौलता है, कसम से मेरा यार कम बोलता है!/ रशीद गौरी (राज.)ने - रह गया है बस वफाओं का नाम आजकल!,  एक दिखावा है दुनिया  आम आजकल!/ विज्ञान व्रत ने- सावन में सेहरा दिखे, ऐसा तेरा रूप!"/ अपूर्व कुमार (हाजीपुर)ने - आषाढ़ तो तरसा गया ,है सावन तू मत तरसाना,वसुधा के सूखे कपोलों पे, रस की फुहार बिखरा जाना l"

           मधुरेश नारायण ने - हरी चुनरिया ओढ़ के धरती सावन में इतराए!" / सिद्धेश्वर ने - उजड़ा हुआ गांव है गांव में रोने वाला भी है!,आंसू है या बरसात का पानी यह समझने वाला कोई नहीं!/मुरारी मधुकर ने - होती थी गुलजार गांव की गलियां l सावन का सनपुरिया लाने वालों से खिल उठते थे,सभी बाग बगीचे l / सच्चिदानंद किरण (भागलपुर )ने - सावन बरसे रिमझिम बूंदाबांदी, प्रियतम मन हरसाए झम झमा झम!!

              प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने - विरहिनी सा उदास हुआ सावन, जल रहा धरती का तन मन!"/ डॉ शिप्रा मिश्रा ने - क्या-क्या निर्मल करो विमा लोग मुंह के कुछ बंधन में फंसे हैं ऐसे!/ डॉ संतोष मालवीय ने - कोरोना के भर्ती पर गजब ढाया कहर है, गांव की गलियां चुप चुप सारा शहर है l/ रेखा भारती मिश्रा ने - इन फिजाओं में है खुशबू,चांद भी आया उतर!/ संजीव प्रभाकर (गुजरात )ने - बड़े दिन बाद आए हो बताओ हाल कैसा है,,?, बदसला साल को छोड़ो बताओ यह साल कैसा है?/ डॉ अलका वर्मा ने कजरी गाओ सावन आया,जन-जन का मन हर्षाया!/ कालजयी घनश्याम ( नई दिल्ली)ने - सजन अगर साथ हो तो फूल बरसाता है यह सावन फूल बरसाता l/ नीलम नारंग ने - "सावन के महीने में आया तीज का त्यौहार!"/ वंदना सहाय ने - कल ही बरसे हैं बादल और अभी चुप है, लगता है मन उनका अभी भी है भरा हुआ, वापस आएंगे फिर! 

                श्रीकांत (झांसी ) ने - दीवारों के कान सुने थे दरवाजों के कान हो गए,हिस्ट्री  खुली थाने में नेताजी महान हो गए!"/  मीना कुमारी परिहार सावन में प्यार करूंगी,जी भरकर दीदार करूंगी / हमीद कानपुरी ने -" खास का इंतजार करते रहो कुछ जमाने से प्यार करते रहो!"/ रामनारायण यादव (सुपौल)ने - सावन की घटा घनघोर रिमझिम बरसा चहु ओर सखी वन में नाचे मोर!"/डॉ सुनीता सिंह सुधा ( वाराणसी) ने -" उमड़ घुमड़ घिर सावन का नभसे जल बरसाए!?/राज प्रिया रानी ने - हरि बोल ले आई देखो सावन की हरियाली, टपके घर की छतिया  और आंगन पानी पानी!" जैसी उम्दा गीत गजलों का पाठ किया!

           इनके अतिरिक्त  मीनाक्षी सिंह, केवल कृष्ण पाठक,अशोक कुमार,,कीर्ति काले, पुष्प रंजन,वंदना सहाय,नीलम श्रीवास्तव,विजय कुमार मौर्य, नंद कुमार मिश्रा, हरि नारायण हरि, चाहत शर्मा, अंजना पचौरी, पुष्पा शर्मा , नीरज सिंह, संतोष मालवीय,दुर्गेश मोहन, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय आदि  की भी दमदार उपस्थिति रही l

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🔷💠 प्रस्तुति :ऋचा वर्मा (उपाध्यक्ष ) / एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )भारतीय युवा साहित्यकार परिषद 

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