*विश्व गुरु भारत*
*गुरु पूर्णिमा पर गुरु महिमा*
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गुरु की महिमा मैं किन किन।
रूपों में अब गुण गान करूं।।
जन्म से मृत्यु तक तो बस।
मैं अपने गुरु का ध्यान धरूं।।
जन्म देने वाले माता पिता।
मेरे प्रथम गुरु कहलाते हैं।।
पाठशाला में मेरे गुरु जी तो।
पढ़ना लिखना भी सिखाते हैं।।
खेल खेल में मेरे साथी गण तो।
हार जीत की सबक बताते हैं।।
मेरे छोटे छोटे भाई बहनों ने तो।
हंसना रोना भी सिखलाते हैं।।
शुरू होता है जीवन संग्राम में।
स्वयं से जीवन जीने की कला।।
आध्यात्मिक,भौतिक शिक्षा से।
मिट जाती है जीवन की बला।।
पति _पत्नी के संग नए परिवार में।
होता है दो आत्माओं का मिलन ।।
जीवन संगिनी भी कभी गुरु बनकर।
हमें बना देती है हीरो या फिर विलन।।
जिनसे ज्ञान की बातें मिल जाती है।
गुरु रूप में पूजनीय हो जाती है।।
अंधकार से प्रकाश की ओर हमें।
वही सच्चा गुरु ही तो ले जाती है।।
जिसे भी मिल जाए सदगुरु जीवन में।
वह तो भवसागर से पार हो जाते हैं।।
इस गुरु पूर्णिमा पर हम सभी अपने।
श्री गुरु चरणों में श्रद्धा सुमन सजाते हैं।।
मेरे अब तक के जीवन में जिसने भी।
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से मुझे सिखाया है।।
आज गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर।
उन सभी के लिए यह पंक्ति लिख पाया है।।
तुलेश्वर कुमार सेन
सलोनी राजनांदगांव
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