शीर्षक:- हाय पैसा
पैसा आज हुआ हैं भगवान
भगवान को पीछे छोड़ , पैसे को पूज रहें नादान ।
क्या पंडित क्या क़ाज़ी सब पैसे पर हैं राज़ी।
धड़ल्ले से चलता इनका व्यापार हैं ,
झूठ की बिसात पर खड़ी इनकी दुकान हैं।
पैसे की चाहत में कैसे अपनो का गला रेता जा रहा
भाई भाई को ही शूली चढा रहाँ।
बच्चों का जीना हो रहा हैं दुश्वार
वो क्या समझे हेवानियत ,
जो ठीक से कर ना पाएँ शैतानियाँ।
रूपये का बिगुल संसार में बज रहा
सर चढ़ के सबके ये मति भ्रमित बस कर रहा ।
देख के पैसों का ये दुष्प्रचार , मन बड़ा व्यथित हुआ हैं आज ।
ये कैसी विपदा आइ हे , पैसों से मची सर्वत्र तबाही हैं।
प्रभु तुमसे ही अब सुनवाई हैं
तुम ओर ही मेने आस लगाईं हैं।
अर्चना मिश्रा
स्वरचित व मौलिक रचना
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सराहनीय रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई आदरणीया अर्चना मिश्रा जी !
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