भगवान श्रीकृष्ण
नीले नीले चेहरे सलोने लगते हैं।
होठों पर बांसुरी गुनगुनाने लगते हैं।
कमल की पंखुड़ियों पर जब चरण होते हैं।
बड़े मनमोहक लगते हैं, बड़े मनमोहक लगते हैं।
काले काले घुंघराले बाल गोवर्धन पर्वत लगते हैं।
सिर पर मयूर पंख खूब फबते हैं।
कानों की कुण्डली से ध्वनि बेजोड़ निकलते हैं।
गले के हार से मन मस्त हो जाते हैं।
कृष्ण की आंखें शोभायमान लगती हैं।
इन्हीं के आशीर्वाद से दुनिया बनती है।
कृष्ण की माता थी देवकी, पिता थे वासुदेव।
मित्र थे सुदामा, ये हैं हमारे आराध्यदेव।
कृष्ण संसार के हैं सृजनहार।
यही हैं सृष्टि के पालनहार।
कृष्ण कंस को हराये थे।
ये प्रजा के कष्टों को मिटाए थे।
ये भक्तों पर दया करते हैं।
इसीलिए भक्त इन्हें दीनबंधु कहते हैं।
दुर्गेश मोहन ( शिक्षक)
समस्तीपुर(बिहार)
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