कनक हरलालका कविता का नया प्रतिमान गढ़ने में सक्षम हैं!: सिद्धेश्वर
कविता का शीर्षक देकर मैं उसे सीमित दायरे में बांधना नहीं चाहती! : कनक हरलालका
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[] पटना 29/08/2022! कविता के प्रति जो आम धारणा अपनाई जा रही है,उसमें आम पाठक कहीं पर है ही नहीं l साहित्य के सृजक और हिंदी के विद्वान कविता के दिशा निर्धारक बने बैठे हैं l यानि जो कविता सीधे-सीधे समझ में आ जाती है, वह सतही कविता है और जो कविता समझ में ना आए, वह मुख्यधारा की कविता l कई सार्थक कवियों ने इस मापदंड को तोड़ा है l पाठकों के अनुकूल कविताओं का सृजन किया है l ऐसे ही कवियों में असम की एक चर्चित कवियत्री हैं कनक हरलालका l आज एकल पाठ के तहत उनकी छोटी-छोटी सारगर्भित कविताओं को सुनकर अभिभूत हूं मैं l
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर आयोजित " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन " का संयोजन एवं अध्यक्षता करते हुए उपरोक्त उद्गार सिद्धेश्वर ने व्यक्त किया l
कनक हरलालका की कविताओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि - कनक हरलालका की कविताओं से गुजरते हुए इस बात का अहसास होता है कि कविता की भावभूमि पर उनकी चेतना,उनकी संवेदना, उनकी अंतर्वेदना, समर्पित भाव से शब्दाँकित हुई है, और उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से जो कुछ भी कहना चाहा है, उसमें ना तो कोई लाग लपेट है, ना तो कोई अनावश्यक भाव अभिव्यंजना, और ना ही उसे कलात्मक बनाने के मोह में बौद्धिक कसरत! शायद यही कारण है कि उनकी कविताओं में सरलता सहजता कविता के प्रतिमानों के करीब खड़ी दिखती है l "
इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि कनक हरलालका ने कहा कि मैं अपनी कविताओं को शीर्षक से मुक्त रखती हूं, शीर्षक देकर उसे मैं सीमित दायरे में बांधना नहीं चाहती l आज लिखी जा रही बोझिल कविताओं के अपेक्षा छोटी-छोटी कविताओं के माध्यम से पाठकों तक अपनी बात पहुंचाना ही कवियों का धर्म होना चाहिए!
" कनक हरलालका ने दो दर्जन से अधिक कविताओं का पाठ किया - " दो पलों के मध्य यह / ठहरा हुआ सा पल...../ कल और कल के बीच में / बहती नदी कल कल / तैरना संभव नहीं/ बस अवश सा बह चल..!.. " और खुली आंख देखा था सपना/ जैसे बाहों में कोई अपना /बहुत दिनों के बाद,,,,,!/ मन में कोई गजल जगी थी / लेकर मीठी चाह / पथ भूला फिर लौटा कोई/ शायद घर की राह / बहुत दिनों के बाद...! "
ऑनलाइन इस कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र में देश भर से आमंत्रित कुछ नए पुराने कवियों ने अपनी कविताओं की प्रस्तुति दिया l रशीद गौरी (सोजत सिटी) ने - अपने अंदाज ही निराले हैं, आस्तिनों में सांप पाले हैं! सुरमई शाम है मोहब्बत के,मकड़ियों के हजार जाले हैं! / भगवती प्रसाद द्विवेदी ने-" तुम्हें मुबारक लक्ष्मी दूधिया चकाचौंध वाली हम तो दियना बाती तम में जलते जाएंगे!/ ऋचा वर्मा ने - बत्तीस दांतो के बीच फंस गई जीभ बेचारी, कैसा न्याय ईश्वर का! हथियारों से लैस दो जबड़ो के बीच, बिना अस्थि के जीभ बेचारी!/ पुष्प रंजन (अरवल ) ने- देते हो दान तो तेरी अन्य धन वृद्धि हो, नहीं तो तेरी अमीरी को छी : / संतोष मालवीय (मध्यप्रदेश ) ने - लिख दिया मित्र जिनके नाम हमने जीवन का अनुबंध, समर्पित उनको मेरे गीतों का प्रत्येक वह छंद!" सिद्धेश्वर ने - " इस मायानगरी में सब कुछ है पैसों का खेल!दौलत विहीन रिश्तो का, कैसे होगा फिर मेल ?
अपूर्व कुमार (वैशाली) ने - यह तन पट सम, मत कर छम छम, खग अजर अमर,अब भरम न कर!/ रामनारायण यादव (सुपौल) ने - आखरी दम तक खड़ा रहता हूं, वह सब कुछ चुपचाप सहता, धूप की तपिश में झूलसता, छाया की पेशकश ही करता!/ विजय कुमारी मौर्य विजय ( लखनऊ ) ने - क्यों खामोश है ये लोग,डरे सहमे से हैं इंसान, अपने ही देश में अपने ही लोगों से ?/ पूजा गुप्ता ( चुनार ) ने - डर है यूं हम उन्हें खो ना जाए, बीच राह तन्हा हो न जाए!/ संतोष मालवीय (म.प्र.) ने - लिख दिया मित्र जिनके नाम हमने जीवन का अनुबंध, समर्पित उनको मेरे गीतों का प्रत्येक वह छंद!/ मीना कुमारी परिहार ने - बहुत मगरूर है दुनिया भरोसा तोड़ देती है!, कभी वह साथ चलती है तभी वह छोड़ देती है l"/ डॉ सुनीता सिंह सुधा (वाराणसी) ने - हम करें भली बातें, चार अनुभवी बातें!, जब मिला करें हम तुम,रोज हो नई बातें / कालजयी घनश्याम (नई दिल्ली ) ने - नाशाद चाहतों ने दीवाना बना दिया,एक पारक आरजू का फसाना बना दिया!/ डॉ पूनम सिन्हा श्रेयसी ने - हरसिंगार का रूप लुभा वन और प्रणय पथ आग भरा,पुलक भरा आमंत्रणपल-पल,अद्भुत क्षण मधु राग भरा!/ डॉ अलका वर्मा ने - दिल को अब आराम कहां है?,तुम बिन सुबह और शाम कहां है?/ अंजू दास गीतांजलि (पूर्णिया) ने- आप वादे से अगर मुकर जायेंगे, हम एक दिन आपके दिल में उतर जायेंगे!/ डॉ बी एल प्रवीण ( भोजपुर) ने - मेरी गजल यूं गुनगुनाया न करो, कोई बात अब सुनाया न करो!, कहर बरपा है क्यों भीतर देखो, दिल के पार अब जाया ना करो!/ राज प्रिया रानी ने - हूं मैं कठ जीव पत्थर, जन्मजात से नहीं कोमल कली थी, बनाया तूने ही सख्त निष्ठुर छुरी सी, मेरी आत्मा को जलाया!
इनके अतिरिक्त दुर्गेश मोहन, बीना गुप्ता, संजय श्रीवास्तव,चंद्रकला भारतीय, पूनम शर्मा,अशोक कुमार,,कीर्ति काले, चाहत शर्मा, अंजना पचौरी, पुष्पा शर्मा, नीरज सिंह, नीलम. डॉ सुनील कुमार उपाध्याय आदि की भी दमदार उपस्थिति रही l
🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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