" राष्ट्रभाषा का विरोध करने वाले अपने राष्ट्र का विरोध कर रहे हैं!: सिद्धेश्वर
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" पहले अंग्रेज शासन करते थे, आज अंग्रेजी भाषा शासन कर रही है! : डॉ वीरेंद्र कुमार यादव
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" सिर्फ सरकारी प्रयासों से हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती ! : डॉ संगीता तोमर
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पटना :12/09/2022! "अनेकता में एकता की भावना रखते हुए,, हमारे देश का एक राष्ट्रीय ध्वज हो सकता है, एक राष्ट्रीय पशु हो सकता है, एक राष्ट्रीय फल हो सकता है, एक राष्ट्रीय खेल हो सकता है तो फिर एक राष्ट्रभाषा क्यों नहीं हो सकता ? आजादी के अमृत महोत्सव मनाते हुए भी यह सवाल हमारे सामने आज क्यों मुंह बाए खड़ा है ? औऱ इसके लिए कौन कौन जिम्मेवार है ? आप चिंतन करें, आंखें खोल कर विचार करें, तब आप पाएंगे कि इसके लिए जितनी जिम्मेवार हमारी सरकार औऱ , 20% पूंजीपति वर्ग है, उतने ही दोषी हम भी है हम, यानी 80% जनता l हमारी जनता जो अपने अपने क्षेत्रीय भाषा का झंडा लेकर, शोर मचाने लगते हैं कि देश की राष्ट्रभाषा हमारी अपनी क्षेत्रीय मातृभाषा क्यों नहीं ? देश की राष्ट्रभाषा हिंदी ही क्यों ?
हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सरकार ज़ब तैयारी करने लगती है, तब यही अलग-अलग क्षेत्र के लोग सरकार को दिग्भ्रमित करने लगते हैं l सरकार को अपनी सत्ता को बचाए रखने की चेतावनी देते हुए, अपने अपने क्षेत्र के झंडे को लेकर हिंदी के विरोध में खड़े हो जाते हैं !"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, हिंदी पखवाड़े के अवसर पर, " हिंदी के साथ खिलवाड़ क्यों ? " जैसे ज्वलंत विषय पर, गूगल मीट पर ऑनलाइन विचार गोष्ठी का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने कहा कि " निश्चित तौर पर राष्ट्रभाषा का विरोध करते हुए हम अपने राष्ट्र का विरोध कर रहे हैं औऱ अपने देश की आजादी को नीलाम कर रहे हैं। उस अंग्रेजी के बाजार में, जहां पर हिंदी की कीमत पर हम अपनी भाषाई आजादी पाना नहीं चाहते l जिस आजादी के लिए हमारे देश भक्तों ने अपनी प्राण की आहुति दी, फिर से गुलामी की ओर बढ़ता हुआ यह हमारा कमजोर स्वार्थ परक कदम तो नहीं ? "
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मुख्य अतिथि डॉ वीरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि - पहले हमारे देश में अंग्रेज शासन करते थे, आज अंग्रेजी भाषा शासन कर रही है l सिद्धेश्वर जी ने ठीक कहा कि जब तक सरकार हिंदी को रोजगार और व्यवसाय से नहीं जोड़ेगी, हिंदी कभी राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं पा सकेगी l आम लोगों के बीच भी हिंदी के प्रति रुझान लाने के लिए हिंदी को व्यावहारिक भाषा का रूप देना होगा l
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ संगीता तोमर ( इंदौर ) ने कहा कि - हिंदी के प्रति जो नजरिया है उसे बदलना होगा l औऱ ऐसा सिर्फ सरकारी प्रयासों से संभव नहीं l अंग्रेजी बोलने वालों को क्लासी और हिंदी बोलने वालों को दोयम समझा जाता है। हिंदी की दुर्दशा का आकलन तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंग्लिश मीडियम स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने के लिए सरकार को प्रयास करने पड़ रहे हैं जिससे कि हिंदी का अस्तित्व बचा रहे ।
इस विषय पर जमकर चर्चा चली ! अपूर्व कुमार ( वैशाली ) ने कहा कि -एक तरफ लोकसभा में हिन्दी को राष्ट्रसंघ की सातवीं आधिकारिक भाषा बनाने की बात होती है, जिसके लिए 193 सदस्य देशों में दो तिहाई अर्थात् 129 देशों के समर्थन की आवश्यकता है।तो दूसरी ओर अपने ही राष्ट्र में इस बात पर सहमति नहीं बनती की हिन्दी राष्ट्रभाषा बने । हद हो गई! ऐसे ही लोग हिंदी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं l दूसरी तरफ मधुरेश नारायण ने कहा कि --अंग्रेजी भाषा से अधिक डर है भारतीय अंग्रेजों से, जो हिंदी को राष्ट्रभाषा के सिंहासन पर बैठा देखना नहीं चाहते हैं! हिंदी के पक्ष में भाषण देने के बावजूद अपने घर में अंग्रेजी को पनाह और सम्मान देते हैं l हमें इस दोगली मानसिकता से निजात पाना होगा क्योंकि यही लोग हिंदी के साथ खिलवाड़ कर रहे! हैं! "
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए नागेंद्र कुमार ने कहा कि -हिंदी के प्रति उदार भावना रखने वाले अपने दिल से पूछे कि वे हिंदी बोलने लिखने से क्यों कतराते हैं और अपने बच्चों को अंग्रेजी में मम्मी पापा आदि जैसे शब्दों को कहने के लिए प्रेरित करते हैं ? ऐसे दैनिक कई शब्दों के प्रति उन्हें हिंदी में वह आकर्षण क्यों नहीं दिखता जिसके लिए वह अंग्रेजी शब्दों का उपयोग धड़ल्ले से करते हैं ? निश्चित तौर पर ये हिंदी के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं l एकदम मानसिक गुलामी के दौर से गुजर रहे हैं l जबकि राज प्रिया रानी ने कहा कि -- हिंदी हमारा सार्वजनिक धर्म कर्म है,तो हिंदी को स्वीकार करने में भय और सुरक्षा की जरूरत क्यों महसूस होती है ? हिंदी के साथ खिलवाड़ करने वाले लोगों को यह आत्म चिंतन करना होगा l" ऋचा वर्मा ने कहा कि "यह सनातन सत्य है कि पराधीन देश में हमेशा शासक वर्ग की भाषा चलती है ,भारत में अंग्रेजों के पहले मुगलों और मुस्लिमो का शासन था तो उर्दू कोर्ट कचहरी की भाषा म बनी जिसके प्रमाण आज तक मौजूद हैं। उसके बाद अंग्रेजों के शासन में अंग्रेजी राजकाज की भाषा बनी और बोलचाल और पढ़ाई -लिखाई की भाषा बन कर अंग्रेजीदां लोगों को अभिजात्य वर्ग का तगमा दे गयी, यह सिलसिला आज तक कायम हैl आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, पूरे 75 साल के बाद भी ,जब कोई हिंदी माध्यम वाला व्यक्ति भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसे परीक्षा में सफल होता है तो समाचार बनता है इससे बढ़कर तकलीफ की बात और क्या हो सकती है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ऋचा वर्मा ने यह भी कहा कि हिंदी को दूसरे भाषाओं के शब्दों को भी अपनाना चाहिए ताकि अंग्रेजी की तरह इसका शब्दकोश और यह भाषा अधिक से अधिक व्यापक और विस्तारित हो सके ।"
संतोष मालवीय ने कहा कि - हिंदी भाषा के विकास में सबसे बड़ा अवरोधक दक्षिण भारतीय लोग हैं l हिंदी में सरकार अच्छा रोजगार नहीं दे सकती तो लोग हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त क्यों नहीं करेंगे ? इस प्रकार अंग्रेजी का वर्चस्व क्यों नहीं कायम रहेगा ? मुझे तो लगता है हिंदी दिवस भी हिंदी के साथ एक धोखा ही है l
इनके अतिरिक्त मीना कुमारी परिहार , जवाहरलाल सिंह, सुनील कुमार उपाध्याय, श्रीकांत गुप्ता, नरेश कुमार आस्था, रेखा भारती मिश्र, दुर्गेश मोहन आदि की भी महत्वपूर्ण भागीदारी रही l
प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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