दिल हसीनों से लगाऊं
यह शौक बचपन से नहीं।
आशिकी का दर्द जी लूं
यह शौक बचपन से नहीं।
है मेरे जीने का कुछ अंदाज देखो इस तरह।
कांटों से रिश्तो को तोडूं
यह शौक बचपन से नहीं।
दुश्मनों की दुश्मनी मुझे आज भी मंजूर है।
दोस्ती का हाथ मांगू यह शौक बचपन से नहीं।
सरहदों पर भीड़ थी मेरा भी नंबर आएगा।
पीठ दिखला के में भागूं
यह शौक बचपन से नहीं।
गद्दार है यह जिंदगी क्या करें हम ऐतबार।
नफरत करें हम मौत से यह शौक बचपन से नहीं।।
✍️✍️इशुव अली
उत्तरप्रदेश
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