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9/14/22

मैं केवल भाव लिखती हूँ - डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव



 मैं केवल भाव लिखती हूँ 

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मैं कविता नहीं लिखती, 

  ना ही श्रेष्ठ साहित्य रचने का

  दावा करती हूँ...!

  मैं केवल भाव लिखती हूँ, 

  भाव देखती हूँ

   भाव समझती हूँ 

    भाव समझाना चाहती हूँ 

    भाव रचती हूँ...! 

   जब कहीं कुछ देखकर 

   आंदोलित होता है मन 

   उमड़ने लगते हैं भाव

      होकर निर्बंध उन्मन... 

   कहाँ रोक पाती उन्हें 

   शब्दानुशासन की सीमाएँ...? 

   छंदों की कड़वी नियंत्रणाएँ...? 

   कठोर और कोमल पदों की.. 

   वर्जनाएँ...? 

    शब्द नर्तन करते हैं - 

    कभी खुशी, कभी गम, 

     कभी क्रोध, कभी सम- विषम!

     विलसने लगते हैं शब्द घुंघरू  

     पृष्ठों के फ़लक पर...

      रचने लगते हैं-

     व्यक्ति के, समाज के, राष्ट्र के, 

     देश - विदेश, सभ्य - असभ्य 

     हर परिवेश के भाव गाथा...! 

     कभी-

     प्यार- मनुहार के 

     कभी प्रतिकार और सुधार के 

     कभी क्रांति के 

     कभी शांति के! 

     जलाना चाहती हूँ हर दिल में चिंगारी - 

समयोचित भावों के

 राख नहीं होने देना चाहती मैं

कुछ भी मानव में। 

 मैं कण- कण में अलाव लिखती हूँ 

 बस मैं सिर्फ 

भाव लिखती हूँ...!

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डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव 

पटना बिहार 

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