10/5/22

प्रकृति की राह:- मोहित त्रिपाठी


प्रकृति की राह

प्रकृति की चिरंतन राह रही है,

ऊर्जा, शक्ति, जीवन प्रवाह रही है।

पादप, अरु, कानन कुसुम लिए,

सर सलिल सुविस्तृत ताल लिए।

खग-वृन्द अरुणिमा आभा में,

नव गीत, प्रीत, प्रभात लिए।

जग-जीवन समुल्लसित प्राण लिए,

सुरभित अनंत समीर लिए।

मधुकर मृदु जीवन गान लिए,

प्रकृति दिव्य मुस्काती है।

सृष्टि सृजित सज्जित हो कर,

निज प्रेम सुधा बरसाती है।

मनुजों का प्रादुर्भाव हुआ,

काल क्रम गति शील हुआ।

जन जीवन का आविर्भाव हुआ,

यह आदि मनुज प्रकृति को

माता कहकर अभिभूत हुआ।

तरणिजा तुंग तरु पूजित थे

गति काल चक्र की और बढ़ी,

ज्ञान बढ़ा, अभिमान बढ़ा,

जीवन पथ में व्यवधान बढ़ा।

अपना मूल बिसार दिया,

सब गढ़कर भी निर्मूल हुआ।

विकसित तकनीकों की

शय्या में क्षद्म प्रसून शूल हुआ।

आधार हीन प्रगति पुंज से

प्रकृति का दोहन खूब हुआ।

यह क्षणिक सुख किस लिए?

यह भंगुर प्रक्रम किस लिए?

शाश्वत मूल्यों को ठुकराया,

भौतिकता की यह पराकाष्ठा

अनिष्ट का आरम्भ न हो,

सावधान हो जाओ मनुजों!

तनिक तो ज्ञान चक्षु खोलो,

है अभी भी समय शेष,

कही पछतावा भी न हो अशेष।

- मोहित त्रिपाठी

(कवि, शिक्षक एवं समाजसेवी)

वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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