10/18/22

समकालीन लघुकथाओं में रचनाकार की सृजनात्मक आस्था भी झलकती है :- संतोष सुपेकर


संवेदनात्मक और मौलिक दृष्टि की जागरूक लघुकथा लेखिका है ऋचा वर्मा!: सिद्धेश्वर

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 समकालीन लघुकथाओं में रचनाकार की  सृजनात्मक आस्था भी झलकती है l : संतोष सुपेकर 

            पटना 17/10/2022! " 21वीं सदी में ढेर सारे युवा रचनाकारों की अभिव्यक्ति ने हमारे ध्यान को अपनी ओर आकर्षित किया है l ऐसे लघुकथाकारों में ही एक तेजी से उभरता हुआ नाम है ऋचा वर्मा का, जिन्होंने बहुत कम समय में , ढेर सारी लघुकथाओं का सृजन किया है और उनकी लघुकथाओं का साहित्य संसार में व्यापक स्वागत भी हुआ है l और सिर्फ स्वागत ही नहीं हुआ है बल्कि उनकी कई लघुकथाएं राष्ट्रीय स्तर की  साहित्यिक संस्थानों द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित भी हुई है l लघुकथा में नए विषय वस्तु और नए विचार ही उसे जीवंत बनाते हैं l ऋचा वर्मा की अधिकांश लघुकथाओं की कथावस्तु में यह नयापन देखने को मिलता है l वैचारिक आधार पर भी यह नयापन मौलिक चिंतन की ओर संकेत करता है l "

           भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया! उन्होंने ऋचा वर्मा द्वारा पढ़ी गई लघुकथाओं पर टिप्पणी देते हुए कहा कि -ऋचा वर्मा की अधिकांश लघुकथाएं संवाद शैली में  रहने के कारण पाठकों के आकर्षण का पहला कारण बनती है l दरअसल,संवाद शैली  लघुकथा का प्राण तत्व होता है और लघुकथा को अधिक लंबी होने से बचाता है l ऋचा वर्मा की -" निर्णय " और "रैली " जैसी कुछ ऐसी ही श्रेष्ठ लघुकथाएं है l "

                     लघुकथा सम्मेलन के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि चर्चित लघुकथा लेखिका ऋचा वर्मा ने अपनी " स्त्री  पुरुष "," निर्णय ", " बेनाम चिट्ठियां " आदि एक दर्जन लघुकथाओं का पाठ किया l  लब्ध प्रतिष्ठित लघुकथाकार संतोष सुपेकर ( उज्जैन) ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि -" ऋचा वर्मा जी की लघुकथाओं मे यथार्थ का परिदृश्य मात्र ही नहीं है बल्कि समाज को बदलने की, उसे और अच्छा देखने की बेचैनी भी झलकती है l साथ ही साथ इन लघुकथाओं मे रचनाकार की  सृजनात्मक आस्था भी देखने को मिलती है  l लघुकथा आज साहित्य जगत की प्रमुख विधा के रूप मे स्थापित हो रही है l पिछले कुछ वर्षों से बदलते चेहरों की पोल खोलती, कथनी -करनी का फर्क दिखाती, विसँगतियों , विडम्बनाओं  पर प्रहार करती लघुकथा आज  जब  मानवीय संवेदनाओं , उपेक्षित वृद्धों से लेकर भाषाई दायित्व तक यानि अपनी एक नई गढ़न  लेकर सामने आती है तो उसे  विशेष उत्सुकता से देखा जाता है l ऋचा जी की लघुकथाएँ जटिल नही हैं, वे इन्हे सरलता से बुनती हैं जैसे बढ़ती हुई बेल कोशिकाओं का वृत बनाती है वे जीवन के स्थापित आदर्शों  को, संवेदना की तरलता के साथ पाठक की ओर ले जाती हैं l

          संतोष सुपेकर ने लघुकथा को कोर्स मे शामिल किये जाने का आवहान करते हुए कहा कि- साहित्यिक गोष्ठियों से बौद्धिक विकास होता है। इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ  लघुकथाओं का चयन कर पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया जाना चाहिए l सृजनात्मक लेखन हेतु सिद्धेश्वर द्वारा सतत आयोजित साहित्यिक गोष्ठियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।लघुकथा गोष्ठियों में साहित्य अपने उच्चतम स्तर पर उभर कर सामने आई है l

            विशिष्ट अतिथि डॉ पुष्पा जमुआर ने कहा कि - ऋचा वर्मा की  लघुकथाओं में समाजिक ,पारिवारिक, व्यक्तिगत भाव-मंथन तो है ही, साथ साथ जीवन जीने की शक्ति में विलीन होती भावना, बेबसी में कथा नायक -नायिका आत्मशक्ति के साथ खड़े  मिलते हैं। इनकी पढ़ी गई कई लघुकथाएं सामाजिक  विसंगतियों पर मारक प्रहार तो करती हीं है, सामने से नज़र मिला कर अडिग खड़े रहने का साहस भी रखती है।लेखिका ने बड़ी गम्भीरता के साथ कथा में सकारात्मक बदलाव की शक्ति प्रदान किया है।

              विजयानन्द विजय ( बोधगया) ने- बुलडोजर / रशीद गौरी (राज )ने - वनवास / संतोष सुपेकर( उज्जैन) ने दायरा विखंडन / सेवा सदन प्रसाद (मुंबई ) ने -अनुबंध /  / मंजू सक्सेना ( लखनऊ)ने रसीद /डॉ रत्ना मानिक ( जमशेदपुर ) ने जिरह  / सिद्धेश्वर ने -रिश्ते का वायरस / राज प्रिया रानी ने - पिता भक्त / सपना चंद्रा ( भागलपुर ) ने- आत्मसम्मान /  माधुरी भट्ट ने -काश / हरे कृष्ण प्रकाश (हाजीपुर) ने मानवता /

विजय कुमारी मौर्य (लखनऊ ) ने- मैं करूंगा उपवास!/

पुष्प रंजन (अलवर ) ने - नेता जी जिंदाबाद / राम नारायण यादव( सुपौल ) ने आसमान बांटकर शादी /सच्चिदानंद किरण (भागलपुर ) ने -भाईजान / राम नारायण यादव (सुपौल ) ने आसमान बांटकर शादी /

 अशोक वर्मा (नई दिल्ली) ने-मोर और ललन प्रसाद सिंह  ने शीर्षक लघुकथाओं का पाठ किया l इसके अतिरिक्त स्नेह लता यादव. द्वारा लिखित लघुकथा पर अनिल पतंग द्वारा निर्देशित और अभिनीत लघु फिल्म " सोच अपनी अपनी  " का प्रदर्शन भी किया गया,जिसे सैकड़ों दर्शकों ने सराहा l

            इस हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन में दुर्गेश मोहन, संतोष मालवीय, श्रीकांत गुप्ता, मानसिंह खड़ोही, सम्राट समीर  सोहेल फारुकी,  नरेश  सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय,बीना गुप्ता, स्वास्तिका, सत्यम,  आदि की भी भागीदारी रही।

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======( प्रस्तुति : राज प्रिया रानी (उपाध्यक्ष )  /  भारतीय युवा साहित्यकार परिषद) 

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