10/26/22

गोवर्धन पूजा की धार्मिक कथा:- डॉ. कमल किशोर चौधरी "वियोगी"

 आलेख- गोवर्धन पूजा की धार्मिक कथा:- डॉ. कमल किशोर चौधरी "वियोगी"



                   आलेख- गोवर्धन पूजा की धार्मिक कथा

                       --  डॉ. कमल किशोर चौधरी "वियोगी"

गोवर्धन पूजा की कथा बहुत रोचक और संदेशप्रद है।त्रेता युग में राम वनवास के दौरान ही जब लंकेश राक्षस-राज रावण द्वारा माँ सीता का अपहरण कर लिया गया, तो उसे वापस पाने के क्रम में हुए युद्ध के दौरान लक्ष्मण मूर्छित हो गये थे।उनकी मूर्छा को खत्म करने के लिए जिस 'संजीवन बूटी' या लक्ष्मण बूटी-हनुमान बूटी की जरूरत थी। उसे लाने हनुमान जी वहां गये। रौशन होती बूटियों के बीच संजीवन बूटी को नहीं पहचान पाये,तो पर्वत से प्रार्थना की कि आप हल्के होकर मेरे साथ चलिये तो पर्वत ने यह शर्त रखी कि भगवान के साथ मेरी भी पूजा हो, तो मैं चलने के लिए तैयार हूं। अनंत बलवंत हनुमंत जी महाराज ने वचन दे दिया एवं समस्त बूटियों के संग पहाड़ उठा लाये और लक्ष्मणजी की प्राण रक्षा हुई। कालान्तर में राम ने उस पर्वत से पूजा करवाने के वचन को खुद आग्रह कर अगले जन्म तक टालने को कहा। वही श्रीराम द्वापर युग में श्रीकृष्ण हुए तो जन कल्याण हेतु शासनाध्यक्ष चुने गये श्री इन्द्रदेव  भी अपनी पूजा करवाने की जिद पर अड़ गये।फिर  श्रीकृष्ण ने इस अनावश्यक पूजा व उसके अहंकार को खत्म करने के लिए गोवर्धन पर्वत की तलहटी पर पूजा-अर्चना की और पूर्व जन्म की भांति ही हल्का होने की प्रार्थना की। अंतत: भगवान श्रीकृष्ण और उनके सखाओं की रक्षा हेतु "गोवर्धन पर्वत" ने अपना भार कम कर लिया ताकि कृष्ण उसे उठा सकें और हुआ भी वही। फिर शुरु हो गई एक परंपरा कि हम पर्वत, नदी, झील और 'गो-वंश' की पूजा करें।इसी सच को भगवान कृष्ण ने 'गो-माता' के चारागाह के रूप में चर्चित गोवर्धन पर्वत की आराधना की और फिर उससे अपना भार 'लघिमा' करने को कहा। इन्द्र को उसके अहंकार से निजात दिलाकर ग्वाल सखाओं की भयंकर आंधी-वर्षा से रक्षा की। जय गोवर्धन गिरिधारी! जयतु जय श्रीकृष्ण:!

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