शब्दों की करिश्माई एहसास करा जाती हैं
सुशील साहिल की गजलें!: सिद्धेश्वर
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एक दीया से हम हजारों दीए को प्रज्वलित कर सकते हैं!: सुशील साहिल
पटना :- " देश विदेश में अपनी हिंदी और उर्दू ग़ज़लों के लिए विख्यात शायर सुशील साहिल सिर्फ और सिर्फ अपनी अंदाज ए बयां के लिए जाने पहचाने जाते हैंl अपनी गजलों को उन्होंने अपनी आवाज देने का भी सार्थक प्रयास किया है l झारखंड निवासी सुशील साहिल अपनी रचनाधर्मिता के लिए पूरे देश भर में जाने पहचाने जाते हैं lउनकी गजलों का हर शेर अपने आप में मुकम्मल नज़्म का एहसास दे जाता है - रंग बिरंगी रोशनियों को भरकर आज लिफाफे में " अपने आप में हमारे भीतर के एहसासों को स्पर्श करने की पूरी क्षमता रहती है! हम कह सकते हैं कि उनकी ग़ज़ल कहने का अंदाज कुछ अपने तरह की विशेषता लिए होती है ! शब्दों की करिश्माई एहसास करा जाती हैं सुशील साहिल की गजलें l"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, "
हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l दीपावली की पूर्व संध्या पर आयोजित इस विशेष कवि सम्मेलन की अध्यक्षता किया वैशाली की प्रतिभा कुमारी पराशर ने l
ऑनलाइन आयोजन के मुख्य अतिथि सुशील साहिल ( झारखंड ) ने अपनी एक दर्जन से अधिक कविताओं का पाठ किया - रंग बिरंगी रोशनी को भरकर आज लिफाफे में, घर-घर बांट रहे ,हरकारे है त्योहार दिवाली का l"/ शाम के बाद शहर आती है, तम के बाद उजाला है! जैसी गजलों को अपने धुनों में सजाया l
कार्यक्रम के आरंभ करते हुए उन्होंने कहा कि -भाषा को संस्कृति की संवाहिका कहा गया है। किसी भी राष्ट्र की संस्कृति जितनी समुन्नत होगी वहां की भाषा उतनी ही प्रांजल होगी। भाषा से साहित्य का अन्योन्याश्रय संबंध है ।समुन्नत भाषा से साहित्य गौरवान्वित होता है जिसका असर जन मानस पर हमेशा सकारात्मक पड़ता है ।इसी कड़ी में अवसर साहित्य धर्मी पत्रिका पटना के सनाम धन्य संपादक सिद्धेश्वर प्रसाद जी वर्षों से भाषा संस्कृति और साहित्य को जोड़ते हुए समाज के बीच एकता भाईचारा और राष्ट्रप्रेम के संदेश को फैलाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने साहित्य संगीत के माध्यम से करोड़ों देशवासियों को एक साथ एक पटल पर जोड़ा है । वर्षो से अनवरत उनके साहित्यिक कार्यक्रम होते रहते हैं। दीपावली की पूर्व संध्या पर उन्होंने अपने हेलो पेज से ऐसे ही साहित्य और संगीत मय कार्यक्रम का आयोजन किया ।यह विशेष तौर पर दीपोत्सव को समर्पित था। जिसमें उन्होंने मुख्य अतिथि के रूप में मेरा एकल काव्य पाठ भी सम्मिलित किया l
इस कथ्य से हम सभी भली भांति परिचित हैं कि प्रकाश से अंधकार मिटता है। दीये जलाने से रोशनी फैलती है उजास होता है। मगर यह दीपक सिर्फ दीपक का काम नहीं करता है बल्कि इनके कई और भी अर्थ होते हैं। जहां बिजली की बहुतायत है वहां आखिर दीये जलाने की क्या आवश्यकता पड़ी ।इसके पीछे गूढ़ रहस्य है और भारतीय संस्कृति की अनोखी अवधारणा है। एक दीया से हम हजारों दीए को प्रज्वलित कर सकते हैं अर्थात अगर एक व्यक्ति चाहे तो वह हजारों के विचारों के संवाहक बन सकते हैं और इस प्रकार से भाईचारगी जन जन तक फैल सकता है। दीपक से निकले हुए प्रकाश असत्य से सत्य पर विजय का द्योतक है ।तम से उजास में ले चलने का द्योतक है। बुराई पर अच्छाई की जीत का द्योतक है ।दवे कुचले लोगों के आगे बढ़ने का द्योतक है। समाज के सभी वर्गों के बीच मेलजोल भाईचारा एवं सामाजिक सौहार्द बनाने का द्योतक है ।यह दीपावली कई अर्थों में भारतीय विचारों को विश्व भर में फैलाता है। आज सिर्फ अपना देश भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देश दीपावली के त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाते हैं और इसके महत्व को जानते हुए भारतीय संस्कृति को अंतरात्मा से स्वीकार करते हैं तथा इनकी सराहना करते हुए कभी थकते नहीं है। यह भारतीयता की जीत है यहां के ऋषि-मुनियों द्वारा बनाई हुई परंपराओं की जीत है। हम इन परंपराओं को निभाते हुए अपने प्रयास में दूसरों के प्रयास को मिलाते हुए जन जन तक सामाजिक समरसता के भाव को फैलाएं। एक साथ मिलजुल कर दीपोत्सव के त्यौहार को मनाएं। "
इसके बाद वीडियो के माध्यम से लोकप्रिय लोक गीत गायिका नीतू नवगीत की विशेष प्रस्तुति की गई l
इसके बाद दूसरे सत्र में देश भर के नए पुराने कवियों ने दीपावली से संदर्भित एक से बढ़कर एक कविता, गीत, गजल और दोहों का पाठ किया l
भगवती प्रसाद द्विवेदी ने - हठी तिमिर की हो रही आज हर जगह जीत, पर बुझ बुझ पुनः जलना,है दीपों की रीत!/संजीव कुमार (नई दिल्ली ) ने - " तेरे बगैर मुकम्मल नहीं जहां मेरा! कहीं भी जाऊं रहा मैं,तन्हा है काफिला मेरा l!"/डॉ नीलू अग्रवाल ने -" एक दिया मैं तो चल जलाऊंगी, एक दिया तुम भी जला देना!"/सिद्धेश्वर ने -संचित गिले -शिकवे को दूर हमें भगाना है l,वर्तमान के दहलीज पर एक दीया जलाना है l
विज्ञान व्रत (नोएडा )ने - गांव में जो घर होता है, शहरों में नंबर होता है l "/ अजीत कुमार (बोध गया ) ने - पर्व है बिछड़ों को मिलाने का,पर्व है खुशियां फैलाने का,पर्व है भेदभाव मिटाने का!/ मधुरेश नारायण ने - दीपावली चलो घर घर मनाएं, आओ दीपों को मिलकर सजाएं!"/ अपूर्व कुमार (वैशाली) ने -" तमसो मा ज्योतिर्गमय,कुबेर धन धान्य भरे,अपूर्व कामना करे!"/ डॉ शरद नारायण खरे (म प्र )- दिप दीप दीप है
दमकता,खुश हुआ व्यवहार है,भाव की माल पिरोकार,द्वार पर त्यौहार हैll/ कनक हरलालका (प,बं,)ने = आओ सखी आज तुम द्वार पर चौमुखा दीपक जलाओ!/डॉ प्रतिभा कुमारी पराशर( वैशाली) ने - दीप करें जगमग, जोत करें पग पग,आई शुभ घड़ी आज,रंगोली बनाईये!/सेवा सदन प्रसाद ( मुंबई ) ने - परंपराओं का उपहार,शहर ने पहना,दीपों का हार!/ विजय कुमारी मौर्य (लखनऊ) ने - दीप जलाएं खुशी मनाएं, नफरत मन से दूर भगाएं!/ दुर्गेश मोहन (समस्तीपुर ) ने - अंधकार को दूर कर प्रकाश फैलाता है, बुराई को भगाकर अच्छाई का पैगाम लाता है!
वेद मित्र शुक्ल ने - कुछ यूं दर पर उजियारा हो, भीतर बाहर उजियारा हो!/ नीलम नारंग ने - मैं एक कुम्हार,चाक पर करता जान निछावर!/मंजू सक्सेना ने- आज दीपावली की बात कर,हर तरफ रोशनी की बात कर!/मुकेश कुमार ने - बनाएंगे रंगोली हम,दीप जगमग जलाएंगे!, सजाएंगे घर आंगन हम, द्वार तोरण लगाएंगे!/लाल देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने- अबकी बरस हम ऐसी दीवाली अनाएं, आडंबर और कुरीतियां सारे जहां से मिटाएं, अबकी बरस हम ऐसी दीवाली मनाएं!/ राज प्रिया रानी ने - प्रज्वल करे कोई ऐसा दिया, कि दूर तक अविरल जले!/रशीद गौरी ने - आंधियां आप ये नफरत की चलाया ना करो, नाम दुनिया से मोहब्बत का मिटाया न करो!" जैसी सारगर्भित कविताओं का पाठ कर फेसबुक से जुड़े श्रोताओं का मन मुग्ध कर दिया!
इनके अतिरिक्त रामनारायण उपाध्याय माधुरी भट्ट, मीनाक्षी , केवल कृष्ण पाठक,अशोक कुमार,,कीर्ति काले, सपना शर्मा, हरि नारायण हरि, चाहत शर्मा, अंजना पचौरी, पुष्पा शर्मा , नीरज सिंह, संतोष मालवीय, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय आदि की भी दमदार उपस्थिति रही l
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🔷💠 प्रस्तुति : राज प्रिया रानी ( उपाध्यक्ष )/ एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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