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10/12/22

हमारे भीतर की शैतानी प्रवृत्ति है रचना की चोरी!: सिद्धेश्वर

  "हमारे भीतर की शैतानी प्रवृत्ति है रचना की चोरी!: सिद्धेश्वर



            पटना!11/10/2022! " आप माने या ना माने लेकिन यह सच है कि हमारे भीतर की शैतानी प्रवृत्ति है रचना चोरी ! बहुत आसानी से लोग कह जाते हैं कि रचना की चोरी एक आम घटना है l संयोगवश रचना किसी न किसी रचना से मेल खा जाती है l रचना की चोरी कोई जघन्य अपराध नहीं, जिसके लिए रचनाकार को अदालतों में घसीटा जाए, उस पर मुकदमा चलाई जाए, और इसके लिए उसे डंड दिया जाए l इस तरह की बातें कहना बहुत आसान है! और उससे भी आसान है इस तरह की तर्क देकर, रचना चोरों के पक्ष में खड़ा होना, उसे सामाजिक रूप से भी अपमानित करने के बजाए, सॉरी कह कर या क्षमा मांग कर, उसे फिर से साहित्य जगत में आमंत्रित करना l

           भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, कवि कथाकार सिद्धेश्वर ने ऑनलाइन "तेरे मेरे दिल की बातें " एपिसोड 3 में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उनकी यह चर्चा साहित्यिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संदर्भों से जुड़ी हुई होती है l आधे घंटे के इस लाइव  एपिसोड के तीसरे भाग में " साहित्य की चोरी भी एक अपराध है,के  संदर्भ में उन्होंने विस्तार से आगे कहा कि -साहित्य सृजन की पीड़ा वही समझ सकता है, जो ईमानदारी से साहित्य का सृजन करता है  l ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार 9 महीने तक अपने गर्भ में बच्चे को रखकर, एक मां बच्चे को जन्म देती है l आंतरिक रूप से तृप्त होने के बावजूद, मानसिक और शारीरिक रूप से असह्य  वेदना को झेल रही होती है lइसमें कोई दो मत नहीं कि किसी की महल चाहे जितना भी खूबसूरत हो , सुकून और चैन अपने छोटे से घर में ही मिलती है, अपने द्वारा बनाए गए झोपड़ी और कुटिया में ही मिलती है l क्योंकि महल हो या झोपड़ी, उसमें इंसान भी रह सकता है और शैतान भी ! उस महल या झोपड़ी को तीर्थ स्थल बनाने वाला, उसके भीतर रह रहा इंसान होता है,शैतान नहीं l फिर किसी की रचना चोरी करना तो शैतानी ही है न ?

                   निर्मल कुमार दे (जमशेदपुर ) ने कहा कि साहित्यिक चोरी नैतिक अपराध के साथ साथ आर्थिक अपराध भी है। जिस लेखक की रचना चोरी होती है,वह मानसिक रूप से पीड़ित महसूस करने लगता है। अपनी साधना और श्रम पर  कुठाराघात होते देख विचलित हो उठता है।साहित्यिक चोरी करने वालों को इस बात से वाकिफ होना चाहिए कि नकल और चोरी के बल पर साहित्यिक जगत में ज्यादा दिन नहीं टिक सकते। उनकी रही सही प्रतिभा भी कुंठित हो जाती है। अंत में, उन्हें पछतावा ही हाथ आता है।साहित्यिक चोरों का वहिष्कार करना चाहिए। कॉपी राइट कानून का उल्लंघन करने वालों पर मुकदमें ठोक देना चाहिए।

              विजय कुमार मौर्य विजय (लखनऊ )ने कहा कि..-साहित्य समाज का दर्पण है। समाज को आइना दिखाने वालों की रचनाएं चुराना अपराध के अन्तर्गत आता है। माना कुछ समय के लिए चुराई गयी रचनाएं आपको खुशी दे सकती हैं, लोग वाह वाह कर सकते हैं मगर जिस दिन आपकी चोरी पकड़ी गयी उस दिन के बाद आप जी नहीं पायेंगे। क्योंकि आपको लोग साहित्य चोर कहेंगे, तब आपको अपने ऊपर ग्लानि महसूस होगी कि काश! ऐसा न किया होता।

         निरविंध्या के संपादक  संतोष मालवीय (मध्य प्रदेश ) ने कहा कि - रचना की चोरी जघन्य अपराध है और इसके लिए बड़ी से बड़ी सजा  देना कम है l रचना की चोरी करने से अपेक्षा ज्यादा बेहतर है कि वह अधिक रचनाओं का ध्यान करें l रचनाओं का स्तर भी देखा जाता है! रचनाकार की अगर लेखनी में ताकत होगी या परिपक्वता होगी तो वह निश्चित ही प्रकाशित और प्रसारित होगी! इसलिए अपने लेखन में परिपक्वता लाईये!

       रशीद गौरी (राज ) ने कहा कि -साहित्य चोरी निंदनीय अपराध है। लेकिन उस रचनाकार की अन्तार्त्मा कैसे स्वीकार करती है। वह उसे धिक्कारती नहीं?"

ऋचा वर्मा, विजय कुमारी मौर्य, प्रेम किरण, दुर्गेश मोहन,नीलम श्रीवास्तव, श्रीकांत  आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे l

♦️🔷 प्रस्तुति : ऋचा वर्मा 

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