"सुर और ताल के सक्षम कलाकार हैं ऋतु मिश्रा और राकेश मिश्रा !": सिद्धेश्वर
प्रकृति के कण-कण में पारंपरिक रूप में आदिकाल से ही व्याप्त है संगीत!: अपूर्व कुमार
पटना :- " धन से केवल हमारी भौतिक हसरतें ही पूरी होती है । इस तरह से धन भौतिक संसाधनों को प्राप्त करने का महज साधन- मात्र है, न कि सुख का स्रोत । सुख एक अदृश्य अनुभूति है जिसका संबंध तन की सेहत और मन की शांति से है यदि ये दोनों चीजें जीवन में नहीं है तो असीम संपदा का कुछ भी सार्थकता नहीं है और इस सब को पाने का सहज माध्यम संगीत है l गीत- संगीत जीवन का एक ऐसा प्रभावकारी नैसर्गिक पक्ष और पहलू है जिसका श्रवण हमें सुकून, शांति, आनंद और सरसता का एहसास कराता है। चिकित्सा विज्ञान भी गीत -संगीत को मूड डिसऑर्डर को ठीक करने वाला एक कारगर थेरेपी बताता है।
कई लोगों ने इन बातों को स्वीकार किया है! और ऐसे ही संगीत के साधक कलाकार है ऋतु शर्मा और
राकेश शर्मा, जो अपने सतत संगीत साधना से न सिर्फ अपनी अलग पहचान बनाया है बल्कि संगीत का शिक्षण भी दे रहे हैं ! इतना ही नहीं वे कई उत्कृष्ट गजलों के सृजनकर्ता भी रहे हैं, जिसे अपनी सुर आवाज और संगीत में ढालने का सफल प्रयास भी स्वयं किया है l आज के हेलो फेसबुक संगीत सम्मेलन के प्रथम सत्र में उन्होंने 30 मिनट तक अपनी एक से एक संगीत की प्रस्तुति दिया और श्रोताओं के सामने यह साबित कर दिया कि सुर और ताल के सक्षम कलाकार हैं ऋतु मिश्रा और राकेश मिश्रा !"
. भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के " अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर, ऑनलाइन आयोजित " हेलो फेसबुक संगीत सम्मेलन " के संयोजक और संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया !
सिद्धेश्वर ने संचालन के क्रम में कहा कि-" अधिकांशत:फिल्मी गीत साहित्यिक प्रकृति से परिपूर्ण होते हैं ! पुराने फिल्मी गीत आज भी इतनी लोकप्रिय है कि नए कलाकार भी उन गीतों पर ही अपना रियाज करते हैं, आज भी वह सर्वाधिक सुने और पसंद किए जातें हैंl उन गीतों में कथ्य, शिल्प, लय,भाव, प्रवाह,वज़न सभी कुछ सहज भाव से संप्रेषित होता हैl इसलिए हम कह सकते हैं कि सुर और ताल के साथ, शब्दों द्वारा अभिव्यक्त फिल्मी गीत भी साहित्य है, क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद गुलजार,नीरज, बच्चन, कैफ अज़ीमाबादी, प्रदीप, संतोष आनंद, सुल्तानपुरी आदि जैसे तमाम कवियों को साहित्य से अलग नहीं किया जा सका है ! ये लोग अपनी छवि आज भी साहित्य में बनाए हुए हैं और भविष्य में भी इनकी छवि ऐसी बनी रहेगी ,इसमें कोई संदेह नहीं ! "
समस्त कलाकारों के प्रयासों की सराहना करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अपूर्व कुमार ने कहा कि - आप सभी जानते हैं कि पौराणिक आख्यानों के अनुसार, संगीत की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा हुई। ब्रह्मा ने यह विद्या शिव को दी। शिव के द्वारा यह विद्या सरस्वती को दी गई।सरस्वती ने नारद को दी।तत्पश्चात नारद ने स्वर्ग के गंधर्व,किन्नर एवं अप्सराओं को यह शिक्षा दी।हनुमान एवं अन्य के द्वारा इसका प्रचार- प्रसार धरती पर हुआ।आप सभी इस संस्कृति का निर्वहन कर रहे हैं l संगीत की इस उपयोगिता को जन जन तक पहुंचाने के लिए सिद्धेश्वर जी बधाई के पात्र हैं जो पिछले लगभग दो साल से लगातार ऑनलाइन संगीत सम्मेलन करते आ रहे हैं l
उन्होंने संगीत की पारंपरिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि -"संगीत प्रकृति के कण-कण में पारंपरिक रूप से आदिकाल से ही व्याप्त है।बादल के गर्जन में,वर्षा की छम-छम में, नदियों के कल-कल में, पत्तियों की सरसराहट में, चिड़ियों की चहचहाहट में एवं बच्चों की किलकारियों में संगीत नहीं तो और क्या है, जिसे सुन कर मनमयूर नर्तन कर उठता है? प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक समय तक संगीत के अनेकों रूप उभरकर सामने आए । संगीत में एक स्वभाविक आकर्षण होता है जो मानव के उद्भव काल से ही है।आज भी किसी नवजात शिशु के समक्ष आप अपने मुंह से सीटी बजाएं वह बखूबी आपकी ओर आकर्षित हो जाएगा। बच्चे को झुनझुने के संगीत से बहलाने की परंपरा बहुत पुरानी रही है l आपने सुना होगा कि संगीत की शक्ति से राग विशेष से मेघ भी बरसाया जा सकता है अथवा बुझा हुआ दीपक भी जल सकता है, बस तानसेन जैसी साधना चाहिए। आज के कुछेक गीतों की फुहड़ता तो संगीत के नाम पर कलंक हैं।"
दूसरे सत्र में संगीतमय प्रस्तुति के अंतर्गत पुरानी फिल्मों के कई मधुर गीतों को पटल पर प्रस्तुत किया गया और राज प्रिया रानी और सिद्धेश्वर ने फिल्मी गाने पर अभिनय की शानदार प्रस्तुति दी l दूसरी तरफ मधुरेश नारायण ने --तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना ?/ दीपाली आस्था (मुजफ्फरपुर ) ने फिर छिड़ी रात बात फूलों की,/ स्मृद्धि गुप्ता ( वाराणसी ) ने - किसी राह में किसी मोड़ पर, हमें चल ना देना तू छोड़ कर,मेरे हमसफर ./ राज कांता ने दिल में तुझे बिठाके "/ डॉ आरती कुमारी( मुजफ्फरपुर ) ने यह शमाँ, शमां समा है ये प्यार का, दिल ना चुरा ले कोई मौसम बहार का l"/शिप्रा मिश्रा ने- उनको है शिकायत की हम कुछ नहीं कहते!" जैसे उत्कृष्ट गानों को अपनी आवाज देकर श्रोताओं को मन मुग्ध कर दिया l
इस कार्यक्रम में डॉ संतोष मालवीय, ऋचा वर्मा, डॉ सुशील कुमार, दुर्गेश मोहन,दिलीप,बीना गुप्ता, जवाहरलाल सिंह, सुनील कुमार उपाध्याय ,विजय कुमारी मौर्य, संतोष मालवीय, मीना कुमारी परिहार, निर्मल कुमार दे, सपना शर्मा, सुनील कुमार सिन्हा,मंजुला पाठक आदि की भी भागीदारी रही l
--------------( प्रस्तुति:ऋचा वर्मा ( सचिव)/ और सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ): भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना
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