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11/28/22

सोचता हूँ, कि परिंदे की तरह उड़ जाऊँ कभी:- सलमान सूर्य


 जिन्दगी एक सपने की तरह लगती है मुझे।

 सोचता हूँ, कि परिंदे की तरह उड़ जाऊँ कभी,

तो कभी लगता है 

और उड़ान बाकी है मुझमें।

 दुनियां ही नहीं है मंज़िल मेरी 

मेरा तो अभी पूरा आसमान बाकी है,

 लापरवाह हूँ,

फिर भी सबकी परवाह करता हूँ ।

जीवन में कुछ सपने बुनता हूं।

ये जिन्दगी है साहब बिखरेंगे नहीं तो निखरेंगे कैसे।


लड़खड़ा जाते हैं अक्सर कदम मेरे,

 फिर भी हर बार संभल जाता हूं।

 अक्सर मैं खामोशी में अकेला मिट्टी पर बैठ जाता हूं।

जिंदगी में खामोशियाँ कभी बेवजह नहीं होती।

 कुछ दुख ऐसे भी होते हैं जिनकी आवाज़ नहीं होती ।

( सलमान सूर्य)

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