शब्दों का अद्भुत संयोजन और विचारों का नयापन है डॉ नीलू अग्रवाल की कविताओं में : सिद्धेश्वर
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भाषा , छंद , बिंब , रस मिलकर एक सुंदर काव्य का निर्माण होता है! : रेखा भारती मिश्रा
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पटना : 27/12/2022! समकालीन कविता की प्रमुख हस्ताक्षर डॉ नीलू अग्रवाल - जब अपने नज्म में कह उठती है कि - " माना कि तुमसे आज भी लड़ते बहुत हैं हम / पर प्यार भी तो तुमसे करते बहुत हैं हम !
/ नाराज क्यों हुए जो थम गए जरा सा ,/ साथ भी तुम्हारे तो चलते बहुत हैं हम ll" यानि गजल के एहसास से जरा भी कम दमदार नहीं लगती उनकी यह नज्म l हम कह सकते हैं कि गजल के मिजाज में ही,जब हम पारंपरिक बंदिशें तोड़ कर स्वच्छंद रूप से कविता में छंदों के प्रवाह को जोड़ने का प्रयास करते हैं, तब समकालीन तेवर की कविताओं के बीच ऐसे तेवर की नज्में, हमारे हृदय को अलग ढंग से आकर्षित करती हैं l और हिंदी में लिखी जा रही है आज के नज्मों का यही तो खासियत है, जिसे डॉ नीलू अग्रवाल ने समय की नब्ज को देखते हुए अपने ढंग से अख्तियार किया है l उनकी लिखी नज्मों में यह खासियत बहुत आसानी से देखने को मिल जाती है l शायद इसलिए वह मुक्त छंद की कविता भी लिखती है तो, गज़ल और नज्म का मिश्रित रूप दिखलाई देता है!"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, गूगल मीट और फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, ऑनलाइन हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए, संस्था के अध्यक्ष एवं संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उन्होंने डॉ नीलू अग्रवाल की दर्जनों कविताओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा कि -डॉ नीलू अग्रवाल की खासियत है कि व्यक्ति, समाज और जीवन के कई पहलुओं को बिल्कुल नए संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास करती है l कविता की यही ताजगी समकालीन कविता को जीवंत बनाती है l साल को विदा करते हुए, बिल्कुल नए संदर्भ में डॉ नीलू अग्रवाल जब कहती हैं कि -" विदा, विदा,विदा,अलविदा,/अब मिलेंगे नहीं /कभी नहीं /मुझे है पता / फिर भी हंसते हुए देती हूं विदा / तुम जाओ /यही नियति है/ वह आएगा /गुनगुनाता, मदमाता, चुलबुलता, हर्षित बना लूंगी उसे / गले का हार / वैसे ही जैसे / तुमसे मिली थी /पहली बार! शब्दों का अद्भुत संयोजन इस कविता को उच्चतम श्रेणी तक पहुंचाता है l यहां पर कविता को एक नई दिशा देती हुई प्रतीत होती है डॉ नीलू अग्रवाल l"
कवि सम्मेलन साल की विदाई और नए वर्ष के स्वागत पर केंद्रित रहा l प्रथम सत्र में चर्चित कवयित्री डॉ अग्रवाल ने अपनी एक दर्जन से अधिक कविताओं का पाठ किया l सिद्धेश्वर द्वारा ली गई अपने भेंटवार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि आज के कवियों को लिखने से पहले साधना करनी चाहिए ! और तुरंत पुस्तक प्रकाशित करने के बजाय थोड़ा संयम बरतना चाहिए l "
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में चर्चित कवयित्री रेखा भारती मिश्रा ने कहा कि इस खूबसूरत आयोजन के लिए अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के संयोजक और संपादक कवि सिद्धेश्वर जी धन्यवाद के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि - कविता साहित्य की वह विधा है जिसमें मनोभावों को कलात्मक रूप से अभिव्यक्त किया जाता है । एक कवि अपनी कविताओं के माध्यम से न सिर्फ अपनी बल्कि समाज और परिवेश से संबंधित चीजों को भी व्यक्त करता है । इसमें भाषा , छंद , बिंब , रस यह सभी मिलकर एक सुंदर काव्य का निर्माण करते हैं ।
इस कवि सम्मेलन की विशिष्ट अतिथि रत्ना मानिक ने कहा कि - " हम वही लिखे जो समाज में, देश में देख रहे हैं। लेखन के साथ किसी भी तरह की गद्दारी नहीं होनी चाहिए। सिर्फ प्रशंसा प्राप्ति ही इसका उद्देश्य नहीं होना चाहिए बल्कि समाज का उचित दिग्दर्शन करना भी इसका लक्ष्य होना चाहिए और इस कसौटी पर यदि डॉ नीलू अग्रवाल जी की रचनाओं को देखा जाए तो वह सटीक बैठती हैं। उनकी रचना विदा, समर शेष है, बुद्धि वादी पैगंबर,कामवाली में जहां जीवन के उतार-चढ़ाव, भौतिकतावाद पर प्रहार, हिंसा की प्रवृत्ति को खत्म करने की पेशकश और तकनीक पर निर्भर मानव को झकझोरा गया है, वहीं उनकी गजलों में एक नज़ाकत देखने को मिलती है। विचारों की विविधता और भावानुकूल भाषा डॉ नीलू अग्रवाल की रचना की विशेषता है।"
सिद्धेश्वर एवं राज प्रिया रानी के सशक्त संचालन में, कवि सम्मेलन का दूसरा सत्र आरंभ हुआ जिसमें पुष्प रंजन ने - आओ मिल सब करो दुआएं नववर्ष में सब नव हो जाए!"/ सिद्धेश्वर ने - अलविदा मत कहो दोस्तों हम कल फिर मिलेंगे l थम गई अगर हमारी सांसे फूल बनकर खिलेंगे ll / अपूर्व कुमार ने - हम बन नहीं पाते बुद्ध, क्योंकि रोक नहीं पाते अपने भीतर का युद्ध!"/ ऋचा वर्मा ने -" सांता क्लॉस जब तुम आना,सबके घरों में एक सा आना!,उनके घरों में भी जिनके तकिए के नीचे नहीं रख दिए जाते कीमती उपहार!/ विजय कुमारी मौर्य 'विजय ' ने - नहीं बस सकते सपूत तुम देश के तो,बन के कपूत भ्रष्टाचार न बढ़ाइए!/ हज़ारी सिंह ने -आदमी चेहरा बदलता जा रहा है!, वक्त रेत सा फिसलता जा रहा है!/ माधुरी भट्ट ने - स्वागत करें नववर्ष का,बीते वर्ष की खुशी-खुशी करें विदाई! / डॉ मधुबाला सिन्हा ने - बेचारा पत्र मंजूषा,अब भी खड़ा कर रहा अपने किसी के प्रेम खत का इंतजार!/ प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने - मात्र नाम का नहीं अटल विचार भी थे उनके अटल,जो सोचा उस पर रहा अटल,भाई था सब का अटल!/ कालजयी घनश्याम ने - आओ खा ले कसम हम नए साल में!,बांट लेंगे खुशी गम नए साल में!"/ डॉ सुनीता कुमारी सुधा ने -नए वर्ष पर सबको प्रेषित शुभकामना नई मृदुल हृदय की अर्पित मंजुल संवेदना नई!"/ डॉ अलका वर्मा ने - इस भागमभाग की जिंदगी में, मुझे भी आराम चाहिए, मुझे भी एतवार चाहिए!/ राज कांता राज ने - स्वागतम आपका है नए साल में!, हर नजर दिलरुबा है नए साल में!/
इनके अतिरिक्त डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना, अंकेश कुमार, ललन प्रसाद सिंह, निर्मल कुमार दे, डॉ मीना कुमारी परिहार, सुनील कुमार उपाध्याय, अमीना खातून और अंजू भारती ने अपनी सारगर्भित कविताओं का पाठ किया l
प्रस्तुति : राज प्रिया रानी (उपाध्यक्ष ) एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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