विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं
एक नज़र....
सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ नागेंद्र की नजर में हिंदी ...
जनभाषा के रूप में हिंदी आठवीं शताब्दी में ही साहित्य का माध्यम बन चुकी थी ।
🇮🇳 हिंदी की यह बहुत बड़ी शक्ति है जो संप्रेषण क्षमता की सूचना देती है ।
🇮🇳 साहित्य की हिंदी भाषा कठिनता से सरलता की ओर जाते हुए एक व्यापक रूप ग्रहण करने की ओर बढ़ रही है ।
🇮🇳 दूर-दूर रहते हुए भी तथा भिन्न-भिन्न प्रवृत्तियों में रमते हुए भी हिंदी व हिंदी की बोलियाँ अपनी सांस्कृतिक एकता की स्थापना करती है ।
🇮🇳 जीवन की भाव-भूमि का साथ देनेवाली शब्दावली सरल रूप में नये पुरुषार्थों तथा नये अनुभवों को व्यंजित करने की शक्ति बड़ी स्फूर्ति से जन्म दे रही है हिंदी ।
🇮🇳 सबको एक साथ अभिव्यक्त करने का सामर्थ्य जुटाने में तल्लीन हिंदी भाषा न अलंकार की परवाह करती है , न ही लक्षणा- व्यंजना आदि की ।
🇮🇳 आठवीं सदी से अपभ्रंश को तज हिंदी को अपनाने का अनजाने में चला यह प्रयास अब साधन सहेजकर 21वीं सदी तक पहुँचते -पहुँचते सफल हुआ है ।
शशि दीपक कपूर
१०.०१.२०२३
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