नए साल के मौके पर मैंने एक कविता बनाई है, इसे पढ़ कर बताएं कि मेरी कविता कैसी है!
शीर्षक:- "किसलिए नया साल मनाऊं"
किसलिए मैं नया साल मनाऊं!
फिर क्यों नव वर्ष पर इतराऊ
जब बट रहा है देश मेरा,
जब टूट रही हो एकता और अखंडता
तब किस बात का नववर्ष मनाऊं!
फिर किस बात पर मैं इतराउ!
जब बढ़ रही हो महंगाई,
टुकड़ों पर हो मानवता ,
जात पात के नाम पर
लड़ रही हो भारत की जनता ,
फिर किस लिए मैं नया साल मनाऊ!
फिर किस बात पर मैं इतराउ!
जब ज्ञानी ही अज्ञानी बनकर
छेरे नफरत की वाणी !
अपने ही देश को बर्बाद करने की
सब में छिड़ी हो ना तानी_ तानी !
किस बात का नववर्ष मनाऊ
फिर किस बात पर मैं इतराउ !
जब आज भी हर बीस मिनट में
होता एक बाला का शोषण !
जहां आज भी समाज में दहेज के नाम पर
होता बहुओं का दहन !
फिर किस बात का नववर्ष मनाऊ
फिर किस लिए मैं इतराउ !
जहां आज भी समाज में होता बेटा-बेटी में अंतर !
जहां आज भी त्योहारों पर चलता तंतर मंतर!
फिर किस लिए नववर्ष मनाऊ!
फिर किस बात पर मैं इतराउ !
जहां चल रही हो अज्ञानता और खतरे में हो शिक्षा !
जब हर घर मिले शिक्षित पर
मिले ना कोई रोजगार व्यवस्था !
फिर किस लिए नववर्ष मनाऊ!
फिर किस बात पर मैं इतराउ !
किस बात पर मैं इतराउ !
✍️Rukshana Azami
(पूर्णियां, बिहार)
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सुन्दर सामयिक सृजन! बहुत-बहुत बधाई आदरणीया!
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