समय की शिला पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं, सुरों की लयात्मकता में डूबे हुए डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना के गीत!: सिद्धेश्वर
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सामान्य और आसान शब्दों का प्रयोग कविता को आम आदमी तक पहुंचाता है !: रेखा भारती मिश्रा
पटना : 23/01/2023! वरिष्ठ गीतकार डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना अपनी गीत पुस्तक " गीत मरते नही " में प्रकाशित गीतों के माध्यम से, एक सशक्त कवि के रूप में अवतरित हुए हैं! और उनके गीतों को पढ़ते हुए लगता है कि, इस कवि ने निश्चित ही लय और छंद में, अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए साहित्य संसार में पदार्पण किया है! समय संरक्षित उनकी एक कविता देखिए -" समय! शूल का ताज मुझे,उसको फूलों की डाली लिख!/कुबेर का धन उसे मुबारक, मुझको एक सवाली लिख ll" उनके गीतों में सिर्फ टटकापन नहीं दिखता बल्कि कविता का संपूर्ण सौंदर्य बोध का आभास भी होता है, जब वे कहते हैं कि -ना गीता, ना वेद, बाइबल,न हीं मिले कुरान में l/ईश्वर मुझको दिखता हर पल बच्चों की मुस्कान में!"
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में
, गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर
साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, " हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उदगार व्यक्त किया l उन्होंने उनकी प्रकाशित
काव्य कृति " गीत मरते नहीं ", पर संक्षिप्त टिप्पणी देते हुए कहा कि -" है धन्यवाद उनको मेरा जो साथ चले या नहीं चले,/मैं सदा शुभेच्छु उनका जो मेरे संग संग में उगे ढले ll "समकालीन गीतों में ऐसी अभिव्यक्ति, ऐसे भाव , और इस तरह का शब्द संयोजन बहुत कम देखने को मिलता है, वह भी बिना लाग लपेट के , शब्दों के बिना कलाबाजी किए l इसलिए उनके लिखे हुए गीत सीधे-सीधे पाठकों के हृदय में रच बस जातें हैं l मुझे कहने में यह जरा भी संकोच नहीं है कि छंदों की सहजता और सुरों की लयात्मकता में डूबे हुए डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना के ये गीत, समय की शिला पर भी अपना अमिट छाप छोड़ जाएंगे l
मुख्य अतिथि डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना ने प्रथम सत्र में अपनी एक दर्जन कविताओं का पाठ किया l " खुशी को आंख भी होती है क्या बता देना!/ खुशी चुपके से भीड़ होती है क्या बता देना!/ दर्पण दर्पण देख लिया सब के सब चेहरे कालेहैं! दोनो हाथो लूट रहे घर, जो घर के रखवाले हैं !/ शीशी टूट गई स्याही की, चारों ओर पसर गई रात! लगता कि काले कंबल में, छिप के आज, उतर गई रात!,/ थोड़ी धूप चाहिए मुझे तू पूरी दिनकर रख ले! जैसे ढेर सारे गीतों को सुनकर श्रोता मन मुक्त हो गए!
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए चर्चित कवयित्री रेखा भारती मिश्रा ने कहा कि -जब आप कवि , लेखक या रचनाकार होते हैं तब आपकी जिम्मेदारियां सिर्फ अपने भाव को व्यक्त करने तक सीमित नहीं रहती है । आपके लेखन का दायरा अधिक विस्तृत हो जाता है । अपने आसपास के व्यक्ति , परिवेश , समाज , संस्कृति यहां तक कि राष्ट्र तक के विभिन्न पहलुओं को भी लेखनी के माध्यम से लोगों के बीच लाना होता है। और यह लेखक का दायित्व है जिसे वर्तमान में साहित्य सृजन करने वाले बहुत हद तक निभा भी रहे हैं । जब किसी भी रचना में सामान्य और आसान शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई बात कही जाती है तो वह एक आम पाठक का श्रोता के हृदय तक पहुंचती है और वह उस रचना से जुड़ाव महसूस करते हैं ।
ऑनलाइन कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र में -डॉ आरती कुमारी ने - जो तू जिंदगी में ना मिल सका मुझे इसका कोई गिला नहीं, है गिला नसीब में,फिर कभी भी वफा का फूल खिला नहीं!/ हरिनारायण सिंह हरि ने - किस बिहार की गौरव गाथा बच्चों तुम्हें सुनाऊं मैं,विद्यापति के गीत भिखारी के बिरहा को गाऊँ मैं!/ सिद्धेश्वर ने - जिंदगी एक पहेली है इसे तू आजमाना सीख, एक दिन तन्हा हो जाएगा,रिश्तों को अपनासीख!/नासिक हजारी सिंह ने - क्यों नहीं खुशबू लुटाती रातरानी!मौन है धरती गगन खामोश क्यों है? "/ पूनम श्रेयसी ने - झूठ से देखिए सामना हो गया, ढूंढिए सच कहां लापता हो गया!/राज प्रिया रानी ने - शत शत वंदन हे,तुझे अभिनंदन है " भोर भरी उजास में,रवि का आगाज है!/ नीलम नारंग ने - चारों और कैसी फूलों की महक छाई है, अहा देखो फिर प्यारी बसंत ऋतु आई है!/ अनीता मिश्रा सिद्धि ने - बहुत छली हूं अब नहीं छलना,ए मेरे मन अब नहीं डरना!/ प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने - चींटी को जब चढ़ते देखा चढ़ते गिरते बढ़ते देखा!/ विजय कुमारी मौर्य विजय ने - यह गणतंत्र,आज सब स्वतंत्र,है लोकतंत्र!/ मीना कुमारी परिहार ने - मुझे दिलकश बनाती है तुम्हारी याद आती है,कली जब मुस्कुराती हैं तुम्हारी याद आती है!/ ऋचा वर्मा ने - तेरे चरणो में नमन मां शारदे, अखिल विश्व को तू बुद्धि का वर दे! / चंद्रिका व्यास ने - सच्चा तो नहीं सपना भी नहीं, गैरों का नहीं वह अपना है, फिर भी लगता सपना है!/ रूबी भूषण ने - आदमियों की हंसी पहचान बनकर जी सकूं!, आदमी के रूप में इंसान बनकर जी सकूँ!/ अपूर्व कुमार ने - न कलम संवार सकी ,ना ही सवांर सकी वीणा, स्त्री का किरदार ऐसा सदैव आंसू पड़ा पीना!/ डॉ नीलू अग्रवाल ने - देशभक्ति लिखनी है मुझे, देशभक्ति पढ़नी है मुझे, पर ना जाने क्यों कुछ भी नहीं उगलती मेरी कलम, जाने कैसा भरम!/ कालजयी घनश्याम ने - सच कहने का हमने मोल चुकाया है,अपनों ने अपनों का खून बहाया है!/ रेखा भारती मिश्रा ने - जी भर खुद को प्यार करो तुम, सपनों को साकार करो तुम, दूर सजे खुशियों के तारे, उनसे अपना श्रृंगार करो तुम!/ इंदु- आओ मिलकर हम सब ऐसा प्यार का दीप जलाएं! जैसी एक से बढ़कर एक कविताओं का पाठ किया, जिसे देश भर के श्रोताओं ने सुना और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की l धन्यवाद ज्ञापन किया ऋचा वर्मा ने l
इनके अतिरिक्त मिथिलेश दीक्षित, पूनम देवा, कृष्ण मुरारी,अर्चना खंडेलवाल, सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज, संतोष मालवीय, चैतन्य किरण, शैलेंद्र सिंह,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे l
♦️🔷 प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद )
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