हम विश्व बंधुत्व के साथ, नए वर्ष का स्वागत गान गाएं!: सिद्धेश्वर
हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता ही हमारी पहचान है!:डॉ सुनीता सिंह सुधा
नूतन वर्ष में लेखक उदारवादी दृष्टिकोण अपनाएं!: अपूर्व कुमार
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पटना :03/01/2023 ! नया साल का पहला दिन नई उमंगे, नया उत्साह, नई कल्पना के साथ आरंभ करना, अपने आप में उत्साहवर्धक होता है l दिन तो वही होता है,समय भी वही होता है, वक्त बदलता रहता है, लेकिन तारीख बदलते हुए भी अतीत के एहसास से मुक्त कहां हो पाते हैं हम ? यूं कहें कि हम अतीत के आधार पर, सुख-दु:ख और अपने अच्छे - बुरे दिनों का मूल्यांकन करते हुए, वर्तमान के दहलीज पर, भविष्य की कल्पना- अल्पना को साकार रूप देने का भरसक प्रयास करते हैं l फिर क्यों ना हम विश्व बंधुत्व की भावना के साथ, नए वर्ष का स्वागत गान गाएं ?
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वधान में, गूगल मीट के माध्यम से , फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, ऑनलाइन तेरे मेरे दिल की बात का एपिसोड 11के तहत, " नया साल : नया संकल्प " विषय पर जबरदस्त चर्चा का संचालन करते हुए, संयोजक सिद्धेश्वर ने उद्गार व्यक्त किया l
विषय प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि - "साहित्य का अध्ययन, सिर्फ हमें मानसिक स्वास्थ्य प्रदान नहीं करती, बल्कि हमारे भीतर सकारात्मक सोच को भी तरजीह देती है l हमारे भीतर की विसंगतियों पर प्रहार करता है l एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है l सबसे बड़ी बात की अच्छा साहित्य हमारे अनावश्यक तनाव को कम करते हुए, डिप्रेशन जैसी खतरनाक बीमारी से भी बचाता है l नए साल के साथ आने वाला समय कितना खतरनाक है हम सभी जानते हैं l लेकिन इस खतरे से सचेत करने में, खतरा आने के पहले हार मान लेने से बचा लेने में, सच्चे मित्र के अभाव में एक जागरूक और जीवंत साथी का काम करने में, खाली समय को सार्थक विचारों से भर देने में, और हमारे भीतर उत्साह सृजित करने में, साहित्यिक अथवा सार्थक पुस्तकों
की अहम भूमिका होती है l नए साल का अनोखा उपहार है साहित्यिक पुस्तकें l
संगोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ सुनीता सिंह 'सुधा '
ने कहा कि- हमारी सभ्यता हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है lआज के दिन रामधारी सिंह दिनकर जी के नाम पर दूसरे कवि की कविता भी वायरल हुई जिसमें था--"ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं, है अपना यह नव वर्ष नहीं ।" मैं इसके पक्ष में हूँ । हम भारतीयों को भारतीय संस्कृति को समझना ही होगा । हम दूसरी संस्कृति को इतना महत्व दे रहे हैं ,बढ़ावा दे रहे हैं और खुद की संस्कृति का न मोल न अता न पता । न उसके लिए कोई उत्सव मनाना न उत्साह । यह तो वही बात हुई घर की मुर्गी साग बराबर । जिस प्रकार अंग्रेजियत का मोह भंग हो गया और हिंदी अपनी वैश्विक पहचान बना चुकी है वैसे ही हमारी संस्कृति ,हमारा नव वर्ष चैत मास का प्रथम दिवस भारतीय नव वर्ष के रूप में मनाया जाए और हमें अपने नव वर्ष पर गर्व हो । जबकि अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अपूर्व कुमार ने कहा कि -आज के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आदरणीया डॉ सुनिता ने हिंदु नववर्ष की सार्थकता पर बल दिया वहीं कार्यक्रम के संयोजक साहित्यकार सिद्धेश्वर ने उदारवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए आंग्ल नववर्ष के स्वागत समारोहों के विरोध पर ऐतराज जताया।उन्होंने अपने वक्तव्य में सत्साहित्यों के अध्ययन पर बल दिया। डॉ सुधा पाण्डेय ने सत्पात्रों को ही उपहार स्वरूप पुस्तक देने की बात कही। वहीँ कथा लेखिका डॉ ॠचा वर्मा के अनुसार, महत्वपूर्ण यह नहीं की हम कौन त्योहार अथवा उत्सव मना रहे हैं! बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि हम उसे शालीनता से मना रहे हैं कि नहीं! वही कवि पुष्परंजनजी ने अपने द्वारा अविष्कृत साहित्यिक खेल ' सुखेल ' पर विस्तार से प्रकाश डाला।
कवि अपने युग का प्रतिनिधि होता है अत: नूतन वर्ष में इस बात का ध्यान रखते हुए हमारे कविबंधु अपनी लेखनी चलाएँगे,इसका मुझे विश्वास है।
प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने कहा -हर पल , हर दिन का खास महत्व होता है। अतः हर पल में खुशी तलाश कर उस वक्त को विशेष समय का दर्जा देना चाहिए। इसी सोच के तहत मैं नए साल अर्थात 2023 का प्रथम दिवस को पूरे उत्साह से मनाने के लिए अनेक तैयारियां करने लगी। विजय कुमारी मौर्य विजय के विचार से नये साल का पहला दिन हर इन्सान ने अपने हिसाब से मनाया। एक साहित्यकार ने अपने तरीके से ,युवाओं ने अपने तरीके से, पढ़ी-लिखी महिलाओं ने अपने तरीके से।
नये साल को लोग खुशी के रूप में मनाते हैं, मगर ये भूल जाते हैं कि मेरे जीवन का एक साल कम हो गया।
फिर भी आजकल की भाग-दौड़ में हंसने खिलखिलाने का एक माध्यम ढूंढा जाता है। हम नये साल को इस रूप में भी ले सकते हैं कि जो हमारे अन्दर घृणा या ईर्ष्या आ गयी हो किसी के प्रति उसे दूर करने का संकल्प लें,पैसे का दुरुपयोग न कर वो पैसा किसी के परमार्थ में लगायें। नशा करने वाले भी अपने को नशा मुक्त करने की सोचें। संतोष मालवीय ने कहा कि कल का दिन मेरे लिए बेहतरीन साबित हुआ! दिनभर बच्चों के बीच गुजरा और नौ बजे रात्रि को घर पहुँचा! कुल राज प्रिया रानी, सुधा पांडे और मधु मेहता ने अहिंसा को अपनाने की सलाह देते हुए कहा कि - अन्य पर्व त्योहार की तरह नए साल में भी हिंसक प्रवृत्ति अपनाते हुए, मूक जानवरों की जान ली गई l शराब और कबाब के साथ जश्न मनाया गया l हमें चाहिए कि हम सात्विक तरीके से पर्व त्योहार या खुशहाली का आनंद उठाएं l हजारी सिंह और सुधा पांडे ने यह भी कहा कि हमें सालों भर गरीब और असहाय लोगों की सहायता जरूर करनी चाहिए! जबकि ऋचा वर्मा ने कहा कि-"ऐसे खुशनुमा त्योहार को मनाने से मना करना, सौहार्द की अंगीठी के बदले दिलों में ईष्या या द्वेष अग्नि जलाने की बात करना सही नहीं है इसलिए आइए हम सब आंग्ल नववर्ष का स्वागत करें साथ ही अपने हिंदी नव वर्ष को भी धूमधाम से मनाने का संकल्प करें। हमें तो खुशियों का बहाना ही ढूंढना है दुनिया में गम और तनाव तो ईश्वर ने वैसे ही बहुत दिए हैं।
डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, वंदना सहाय, मुरारी मधुकर आदि की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण रही l
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🔷 प्रस्तुति : ऋचा वर्मा (सचिव: भारतीय युवा साहित्यकार परिषद )
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