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सिद्धेश्वर के रेखाचित्र और एक्रोलीक कलाकृति में मूड, श्रृंखला,गहराइयों का अनोखा सामंजस्य है!: रुचि शर्मा बाजपेयी

 सिद्धेश्वर के रेखाचित्र और एक्रोलीक कलाकृति में मूड, श्रृंखला,गहराइयों का अनोखा सामंजस्य है!: रुचि शर्मा बाजपेयी 

सिद्धेश्वर की कलाकृतियों में स्त्री, अस्मिता और सौंदर्य 

की सम्मोहन शक्ति है! : कौशलेश पांडे

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 देश ही नहीं विश्व में पहली बार हमने ऑनलाइन चित्रकला प्रदर्शनी की शुरुआत की! : सिद्धेश्वर


              पटना : 31/01/2023 l कवि चित्रकार सिद्धेश्वर की कलाकृतियां बरबस हमारा ध्यान आकर्षित कर लेती है, जिसमें हम  एक नायाब संसार देखते है।  रेखाचित्र हो या एक्रोलीक की मुखाकृति। हम जितना देखते जाते है,उतनी ही सिद्धेश्वर की रेखाचित्र और पेंटिंग्स में मूड, श्रृंखला,गहराइयों को पाते है। हंस मैगजीन के कवर पेज पर जब सिद्धेश्वर जी की पेंटिंग प्रकाशित हुआ तो, लगा कि मानो पेंटिंग के आयाम ही बहुत ऊंचे है। सिद्धेश्वर की  तूलिका जब रंग लाती है तो हम समझ ही नही पाते कि इसे हमसे साधरण बात करने वाले असाधरण कलाकार ने बनाई है l सिद्धेश्वर की  सहृदयता,जीवनन्तता,लगाव,अपनेपन का भाव सब रेखाचित्र के माध्यम से बोलते है। 

          भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में, फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर  दो दिवसीय हेलो फेसबुक चित्रकला सम्मेलन संपन्न हुआ l ऑनलाइन चित्रकला प्रदर्शनी में  कवि - चित्रकार सिद्धेश्वर की 200 से अधिक रेखाचित्र और कलाकृतियों का उद्घाटन करते हुए विशिष्ट अतिथि खंडवा की विख्यात चित्रकार और हस्ताक्षर मासिक पत्रिका की संपादिका रुचि वाजपेयी शर्मा ने उपरोक्त उद्घगार व्यक्त किया l

                अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में चर्चित चित्रकार कौशलेश पांडे ने कहा - कागज पर आड़ी- तिरछी रेखाएं जब कलाकार खींचता है तो वही रेखाएं एक ऐसे स्वरूप को धारण कर लेती हैं जो बहुत कुछ कहने पर मजबूर करती हैं। असल में किसी भी कवि या चित्रकार का विजन यही होता है कि वह जीवन को कैसे देखता है, और वह जो देखता है वही सृजन भी करता है। कवि चित्रकार सिद्धेश्वर की कलाकृतियों में गज़ब की सम्मोहन शक्ति है, जो उनकी कृतियों में रचनाओं में बहती रहती है। मुझे याद है जब मैं ग्रेजुएशन का छात्र था तो प्रायः कई साहित्यिक पत्रिकाओं में उनके रेखांकन देखने को मिल जाया करते थे। मैं उनसे आज भी बहुत प्रेरित हूं। उनकी रेखाएं मुझे आज भी आकर्षित करती रहती हैं। उनकी रेखाओं में एक खुलापन है। अभी हाल में हिन्दी की चर्चित साहित्यिक पत्रिका 'हंस' में आवरण चित्र पूरे देश भर में ख्याति प्राप्त की, जो बिहार के लिए भी गर्व की बात है l मोटे तौर पर उनकी कलाकृतियों में स्त्री, अस्मिता और प्रेम अक्सर दिखाई देते हैं ।

         मुख्य अतिथि खंडवा की कलाकार अंजली शिन्दे ने कहा कि - सिद्धेश्वर के रेखाचित्र  में मन की मुखर और सहज अभिव्यक्ति है। कभी-कभी उनकी रेखाओं में स्त्री और पुरुष के सामान्य जीवन की कई छवियाँ सामने आती हैं, जो परंपरागत स्त्री की छवि को तोड़ती दिखाई देती है। फतुहा के व्यंग्य चित्रकार  अमरेंद्र कुमार ने कहा -  रेखाचित्र और साहित्य में किसी का नाम याद करना हो तो सहज ही सिद्धेश्वर जी का नाम याद हो आता है।  सिद्धेश्वर जी साहित्य और कला के लिए बिहार यानि पटना के शान हैं। इन्होंने अब तक हज़ारों कलाकृतियां गढ़ कर आने वाली पीढ़ी को गिफ्ट दिया है।  वहीं लखनऊ के युवा चित्रकार आशीष आनंद ने कहा   - समकालीन चित्रकारों की दुनिया में यदि सिद्धेश्वर जी को ABSTRACT PATTERN का सरताज कहा जाए, तो मेरी व्यक्तिगत दृष्टि से यह कोई अतिशयोक्ति न होगी।कला के प्रत्येक आरेख को कहां से आरंभ कर, वे किन किन मोड़ों पर किन-किन परिस्थितियों को समेट कर, चित्रकला की अभिव्यक्ति को किस मुकाम तक पहुंचा देते हैं, यह प्रायः एक अकल्पनीय घटना होती है।

         राजस्थान  के विख्यात शायर और चित्रकार रशीद गौरी ने विस्तार से कहा - सिद्धेश्वर जी के चित्र बोलते हैं। जितनी बार देखो हर बार एक नया संदर्भ हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं।इन रेखाचित्रों में केवल प्रेम, उल्लास, निराशा, हताशा व मनोरंजन के साधन मात्र ही नहीं है बल्कि एक निरपेक्ष मुखर  अभिव्यक्ति भी हैl मानवीय संवेदनाओं से जोड़ते सिद्धेश्वर जी के रेखाचित्र तेजी से साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि में महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल रहे हैं। पाठक- दर्शक एक पल के लिए रेखाचित्रों के आकर्षण से ठिठक जाता है। उसकी नजर वहीं थम जाती है। और वह उस भूलभुलैया में खो जाता है। जहां संवेदनाएं हैं। कई प्रश्न है... कई उत्तर ...।

   चर्चित लेखिका ऋचा वर्मा ने कहा  -- सिद्धेश्वर के रेखाचित्रों को ध्यान से देखने पर एहसास होता है कि उनकी कलाकृतियों का मुख्य विषय स्त्री विमर्श है। ऐसा नहीं है कि उनके रेखाचित्रों में पुरुषों, जीव-जंतुओं या फूल- पत्तों को स्थान नहीं मिला है फिर भी सभी रेखाचित्रों में स्त्री एक मुख्य विषय होकर उभरती जान पड़ती है। सिद्धेश्वर जी के द्वारा  महज ज्यामितीय आकार या डिजिटल पेंटिंग का सहारा लेकर कुछ आड़े- तिरछे  रेखाओं को खींचकर किसी के मनोभावों को इतने स्पष्ट तरीके से प्रदर्शित कर देना मुझे तो आश्चर्य में डाल देता है। वहीं राज प्रिया रानी ने कहा - सिद्धेश्वर जी की चित्रशैलीमें रंगों का अद्भुत संगम है l ऐसे कलाकार बिड़ले ही होते हैं, जो लेखनी के सफल हस्ताक्षर होते हुए चित्रकला विधा में भी सर्वश्रेष्ठ हैं । दूसरी तरफ चित्रकार संजय रॉय ने कहा कि - शास्त्रीय पक्ष से अलग अपनी मौलिक पहचान लिए कलाकार सिद्धेश्वर कविताओं के साथ बड़ी संजीदगी के साथ अपनी उपस्थिति कला क्षेत्र में भी रखते हैं जिनके रंग और रेखाओं से कई पत्र-पत्रिकाएं सजते संवरते रहें हैं l कवि कथाकार अनुज प्रभात के अनुसार - सिद्धेश्वर जी की आरी-तिरछी रेखाओं की कहीं आखें बोलतीं हैं तो कहीं हाथ , कहीं चेहरा तो कहीं शरीर का अंग. कहीं लाल गोल रंग  ,टीका  होता है तो वही कहीं बिंदी दिखती है।खड़ा  हुआ कोई आदमी होता है तो खुली हुई लटों के साथ कोई नारी। कुछ चेहरे खौफ भी पैदा करतें हैं l डॉ मिथिलेश दीक्षित(लखनऊ )ने कहा -भाव -प्रभाव  की समन्विति ,रंगों  का मिश्रण  ,रेखांकन का समानुपात , प्रयोजन  का संकेत आपकी कला धर्मिता  को सार्थक  कर देते हैं  ।  सिद्धेश्वर  जी प्रयोग धर्मी  रचनाकार  हैं , अत: रंग  व रेखांकन   आपके द्वारा  रचित प्रत्येक  आकृति को जीवन्त  कर देते हैं l इंदू उपाध्याय और वैशाली के अपूर्व कुमार  ने सिद्धेश्वर की कलाकृतियों पर कई कविताएं रच डाली l 

                     इस हेलो फेसबुक चित्रकला सम्मेलन  में, कला पर केंद्रित सवालों को लेकर, राज प्रिया रानी ने सिद्धेश्वर से ऑनलाइन भेंटवार्ता लिया  l जिसमें पूछे गए एक सवाल पर सिद्धेश्वर ने कहा - पिछले 40 साल का मेरा सपना तब साकार हो गया, जब मेरी कलाकृति पहली बार देश की सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रीय मासिक  पत्रिका " हंस " के मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित हुई l वह भी एक बार नहीं दो दो बार l यहां तक कि इंदौर की सबसे पुरानी मासिक पत्रिका वीणा के मुखपृष्ठ पर भी मेरी कलाकृति प्रकाशित हुई l और तब मुझे लगा, देश का बहुत बड़ा कलाकार न होने के बावजूद भी मेरी कलाकृतियां, देश के बड़े कलाकारों के समकक्ष प्रकाशित होने लगी है  l और देश भर में मेरी पहचान साहित्यकार से अधिक एक कलाकार के रूप में फैल गया है l लघुकथा का ऑनलाइन पाठ के साथ-साथ ,देश ही नहीं विश्व में पहली बार हमने ऑनलाइन चित्रकला प्रदर्शनी की शुरुआत भी किया है जो अनवरत जारी है ! "

      बेतिया के वरिष्ठ गीतकार  डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना ने कहा - -देश की अधिकांश पत्रिकाओं में सिद्धेश्वर जी, अपनी कलाकृति के माध्यम से  देश भर की पत्र-पत्रिकाओं से अपना लोहा मनवा चुके हैं l राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के द्वारा , सिद्धेश्वर की  कला का आदर और समर्थन ही तो है l आजकल, हंस, नया ज्ञानोदय, वागर्थ , नवनीत, साहित्य अमृत जैसी हिंदी की विशिष्ट और राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में उनकी चित्रकला का स्थान मिलना, हमारे लिए ही नहीं बल्कि पूरे बिहार के लिए गौरव की बात है l सिद्धेश्वर  संगीत, साहित्य, कला सभी विधा में सिद्धहस्त हैं l 

                  इसके अतिरिक्त डॉ शरद नारायण खरे,डॉ मिथिलेश दीक्षित, मिन्नी मिश्रा,पूनम देवा, निरुपमा वर्मा डॉ संतोष मालवीय, मुरारी मधुकर,  सच्चिदानंद किरण, आदि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए  l

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प्रस्तुति:  ऋचा वर्मा ( सचिव : भारतीय युवा साहित्यकार परिषद / पटना )

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धन्यवाद

हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि) 

(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार) 




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