छंदमुक्त काव्य:- पल पल अंकुर मनोभाव
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ना राधे कृष्ण सा, न ही सीता राम सा
और न ही सती शिव सा
आधुनिक युग का है प्रेम हमारा
पल पल अंकुर होते मन में भाव नए नए
कभी डरते तो कभी हिम्मत करके
लड़ने को तैयार होते
होके विकल ईश्वर से
हमारे मिलन की प्रार्थना करते
कल्पित ख्वाबों को हकीकत से
सरोबार करने की इबादत मांगते
कभी सवालों उलझ जाते तो
कभी जवाब में मुस्कुरा पड़ते
इम्तेहान कई देने हैं हमारे प्रेम को
यूं ही तो हासिल नहीं हुई राधे श्याम को
जो दिल में ही नहीं आत्मा में बस चुका
दोस्त से लेकर जीवनसाथी तक सफर तय कर चुका
कुछ ऐसा आत्मियता से प्रेम हमारा...
रंग चढ़ा है प्रेम में एक दूसरे का
इंतजार है एक दूसरे की सफलता का
विजय घोष गूंजे संपूर्ण जगत मे
हमारे प्रेम की अमरता का।
दिल के पृष्ठों पर नाम लिखा है एक दूसरे का
स्वर व्यंजन जैसे जुड़ कर बनते शब्द
वैसे ही हम दोनों से मिलकर बनता प्रेम हमारा...!
✍️आ.कनक सिंह जी
(प्रयागराज,उत्तर प्रदेश)
रचना:स्वरचित, मौलिक
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धन्यवाद- हरे कृष्ण प्रकाश
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शानदार कनक जी
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने