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इश्क
ऋतुराज बसंत की मादकता
कामदेव का प्रेम तीर चला l
एक नज़र तूने देखा और
एक नज़र मैंने देखा ll
घायल है हृदय हुआ मेरा
नैन मूक रहे, परिचय है हुआ l
अँखियों के झरोखों से झांखा
मनमीत मिला और प्रीत बढा ll
अल्हड़ मन हिल्लोरें लेने लगा
बासंती मादक बयार बही l
छम छम छम पायल बाज उठी
कान्हा की बंसी गूँज उठी ll
ता तिरकट ता ता थैंया पर
कान्हा संग राधा झूम उठी l
पीत पटका, पीत वसुंधरा
ओढ़ी चूनर, खिलखिलायी
है प्रेम पगी सखियां हैं चली
कान्हा-राधा धारा में बही l
है इश्क इबादत है पूजा
शबरी के बेर भावों में बही ll
है मिलन को आतुर नैन झुके
पल में बाहों में लिपट चलीl
आलिंगनबद्ध ज्यों वृक्ष लता
नैनों में रंग बहार मिली ll
नज़र मिलाकर है कान्हा
तुम हाथ को थामे ही रखना l
वादा है नहीं पूछेंगे हम
किस ओर कहाँ?अब है जाना ll
----डॉo छाया शर्मा, अजमेर
राजस्थान
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)
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