लयबद्ध,समृद्ध और भावपूर्ण है डॉ आरती कुमारी की गजलें : सिद्धेश्वर
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कविता है तो प्रेम, माधुर्य, सौंदर्य, सद्भाव, संस्कृति और सभ्यता जीवित है। : हजारी सिंह
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पटना : 27/02/2023! पत्थर न देखिए कोई खंजर न देखिए, नफरत भरी हो जिनमें वह मंजर न देखिए!/ कौन सी बात कहां कैसे कही जाती है , यह सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है l/ एक रोज आसमान पर ले जाएगी हवा, बिखरी हूं मैं, धरा पे अभी धूल की तरह!/ मेरी खुशियों के बादशाह बता, कब तलक है खुमार का मौसम l मशहूर शायरा डॉ आरती कुमारी की नवीन गजल संग्रह " साथ रखना है" में प्रकाशित उनकी गजलों में से चुने हुए इस तरह के कई शेर बरबस किसी भी पाठक को अपनी ओर खींचने में कामयाब है l इतना ही नहीं,, हिंदी उर्दू गजलों की भीड़ में डॉ आरती कुमारी का यह अंदाज ए बयां, काबिले तारीफ इस मायने से है कि उनकी गजलें जीवन के हर पक्ष को अंगीकार करती है l समाज की विसंगतियों से लेकर, जीवन के सुख-दुख और प्यार मोहब्बत के अफसाने तक.. समकालीन तेवर से लैस हैं,लयबद्ध,समृद्ध और भावपूर्ण है डॉ आरती कुमारी की गजलें l
गूगल मीट के माध्यम से फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर, हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l
मुख्य अतिथि चर्चित कवयित्री डॉ आरती कुमारी ने कहा कि --आज की युवा पीढ़ी ग़ज़लों के प्रति आकर्षित है क्योंकि ग़ज़ल सागर में गागर भरने का कार्य करती है। एक ही ग़ज़ल में अलग अलग विषय पर शेर कहे जा सकते हैं और नए प्रयोग की भी गुंजाइश रहती है। कोई भी सहृदय पाठक ऐसी ग़ज़लों में सच्ची कविता की झलक पा सकता है,क्योंकि ऐसी ग़ज़लें अपनी मर्यादा और शिल्प का अतिक्रमण नहीं करतीं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ शायर हजारी सिंह ने कहा कि - कविता धरती पर प्रेम के पक्ष में खड़ी हुई गवाही है। कविता है तो प्रेम, माधुर्य, सौंदर्य, सद्भाव, संस्कृति और सभ्यता जीवित है। वरना आदमी की अदम्य भोग लिप्सा और स्वार्थ ने दुनिया को नर्क बनाने में कोई कोर कसर कहां छोड़ा है। ग़ज़ल अरबी-फ़ारसी से होते हुए उर्दू -हिन्दी में आई हुई एक कोमल सुकुमार विधा है,जिसका मूल स्वर प्रेम और प्रेम जनित आनंद तथा पीड़ा है। किंतु समकालीन ग़ज़लें बहुआयामी हैं।
हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र में डॉ आरती कुमारी ने --तुम्हें दुनिया की नज़रों से बचाकर साथ रखना है,मेरी चाहत का ख़त हो तुम छुपाकर साथ रखना!/सिद्धेश्वर ने -- हम करीब आते हैं ,तुम दूर दूर जाते हो, टेड़े-मेड़े रस्तों से तुुम रिश्ता ये निभाते हो ?,प्यार करने का तो तुम्हें फुर्सत नहीं है पर,रूठ जाएँ हम वफ़ा के वादे कसमें खाते हो l / जनाब हजारी सिंह ने --अभी लोगों में थोड़ा विश्वास बाकी है,कम ही सही जिंदगी में आस बाकी है।,जवानी बदहवास बुढ़ापा तन्हा ही सही
बचपन में अभी तक उल्लास बाकी है।/ चैतन्य किरण ने -- तेरी खातिर जमाने भर को उल्फत हम सिखा देंगे अगर होगी दिलों में कुछ अदावत हम मिटा देंगे!/ हजारी सिंह ने-- अभी लोगों में थोड़ा विश्वास बाकी है,कम ही सही जिंदगी में आस बाकी है!/ मंजू सक्सेना ने-- गमों से अब तो मेरा चश्म तर नहीं होता, हूं लाइलाज दवा का असर नहीं होता!/ शिवा सिंहल ने -- तेरी हर तमन्नाओ के बरात सजाते हैं,यादों की एक सेल्फी का एल्बम बनाते हैं l/ माधुरी भट्ट ने पुरातन से ही रही धरा निराली,महिमा जिसकी अपरंपार!/ नलिनी श्रीवास्तव नील ने -- मन अब तो साध ले,मन को प्रभु अनुकूल,जीवन बिता जा रहा,कम कर्म न कर प्रतिकूल l/ डॉ लोकनाथ मित्र ने -- आज देखा है मैंने स्वयं को, पाया है मैंने अपने मन को l/ पुष्प रंजन ने-- करो करते चलो, ह्रदय से प्रेम,/ ऋचा वर्मा ने - ऋतुओं की अनुपम संधि,सुखद बसंती बयार है होली।,राधाओं संग कृष्णों की केलि,खुशियों का त्योहार है होली।/ इंदू उपाध्याय ने- जब भी यादें आती है,कितना मजबूर कर देती है,तब कविता बन निकलती है!/ राज प्रिया रानी ने
--ठंडी अगन लगा कर तुम, हवा की बातें करते हो ,जोगन की काया में लिपट, राख से माया करते हो!/गार्गी रॉय ने
- अब अपने को जान लिया है, खुद से खुद को खोज लिया है l/ विजया कुमारी मौर्य 'विजय 'ने -मुहब्बत में धोखा देने वाले ये तो बताते जा,किस तरह से जीना होगा ये रास्ता तो दिखाते जा, कविताओं का पाठ कर मंच को सुशोभित किया, तथा सोशल मीडिया पर छा गए l
इनके अतिरिक्त कुमार गौरव, हरि नारायण सिंह हरि , कमलनयन श्रीवास्तव, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ, नंद कुमार मिश्र, मिथिलेश दीक्षित, पूनम देवा, कृष्ण मुरारी, दुर्गेश मोहन, सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज, संतोष मालवीय, शैलेंद्र सिंह,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे l
♦️🔷 प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद )
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)
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