तेरे मेरे दिल की बात लाइव वीडियो के साथ
साहित्यिक परिवेश के लिए खतरनाक है,साहित्य सृजन रोज-रोज और साहित्य अध्ययन कभी-कभी!: सिद्धेश्वर
पटना!12 /04/2023 l "साहित्य सृजन रोज-रोज और साहित्य अध्ययन कभी-कभी ?दरअसल यह जवाब ना होकर एक सवाल है, आज के उन तमाम नए पुराने लेखकों के सामने, जो नित नई नई फरमाइश पर तुरंत रचना लिख डालते है l रोज-रोज कविता लघुकथा कहानी प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है l उसके लिए विषय निर्धारित की जा रहा है l और कहा जा रहा है कि इस विषय पर यदि आपकी कोई रचना ना हो तो अमुक तारीख तक लिखकर भेज दीजिए l इस विषय पर कविता कहानी लघु कथा भेज दीजिए l इसे हम विशेषांक में प्रकाशित करेंगे l अब लेखक बेचारा क्या करें ? छपास का रोग उसे शरीर में हुए खुजली की तरह परेशान कर डालता है l विशेषांक में आराम से प्रकाशित हो जाना है चाहे उस तरह की भावना आए या ना आए l थोड़ा बहुत गूगल का सहारा लेकर , झटपट रात ही रात मुख्य विषय पर रचना तैयार कर देनी है l और फिर आंख खुलते ही उसे ईमेल के द्वारा मिनटों में भेज देना है l अगले दिन उसका प्रकाशन निश्चित हैl अब ऐसी स्थिति में रोज-रोज साहित्य अध्ययन करने समय ही कहां है और इसकी जरूरत ही क्या है?
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर कवि कथाकार सिद्धेश्वर ने ऑनलाइन तेरे मेरे दिल की बात एपिसोड (20 ) में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l उनकी यह चर्चा साहित्यिक,सांस्कृतिक एवं सामाजिक संदर्भों से जुड़ी हुई होती है l एक घंटे के इस लाइव एपिसोड के भाग :20 में " साहित्य सृजन रोज -रोज : साहित्य अध्ययन कभी-कभी??? " के संदर्भ में उन्होंने विस्तार से आगे कहा कि -प्रेमचंद और निराला युग में, कंप्यूटर मोबाइल और ढेर सारे कवि सम्मेलन का मंच था क्या ? सोशल मीडिया तक आसानी से रचनाओं की पहुंच थी क्या ? पैसा ले देकर पुस्तकें प्रकाशित करवाने का चलन था क्या? हम तुम्हें छापे तुम मुझे छापों का परस्पर सहयोग था क्या ? ईमानदारी से साहित्य सृजन करने वालों की ऐसी उपेक्षा होती थी क्या ? पुरस्कार और सम्मान की खरीद और बिक्री का धंधा चलता था क्या ? लेकिन आज के समय में यह सब संभव है तब लेखक साहित्य का अध्ययन कम और साहित्य का सृजन अधिक कर रहा है तो इसमें आश्चर्य कैसा ऐसा विचार रखने वाले साहित्यकार भविष्य नहीं देख सिर्फ इस वर्तमान देखते हैं ।
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" तेरे मेरे दिल की बात " एपिसोड ( 20) में सिद्धेश्वर के व्यक्त किए गए विचार पर ऋचा वर्मा ने कहा कि-सोशल मीडिया की उपस्थिति में लोगों को एक स्वतंत्र मंच उपलब्ध करा दिया है जिसमें उनकी अपनी मित्रों की टोली होती है l करना सिर्फ इतना होता है कि जो भी दिल में आए उसे लिख दे और साहित्य के नाम पर लोगों के सम्मुख परोस दें, उस पर तुर्रा यह कि उन्हें शिकायत होती है कि लोग उनकी रचनाएं नहीं पढ़ते हैं या उनकी लिखी पुस्तकों को नहीं खरीदते हैं।
राज प्रिया रानी ने कहा कि -साहित्यिक यात्रा के दौरान अगर लेखक अध्ययन और सृजन दोनों पहलुओं को समता के साथ रोजमर्रा में शामिल करें तो साहित्यिक सफर सहज,प्रभावपूर्ण उत्कृष्ट होंगे । किसी भी विधा में अपने वैचारिक पैमाने को विस्तार और सटीकता देने के लिए अध्ययन बेहद आवश्यक है। आज सोशल मीडिया के माध्यम से नवोदित लेखक गण अपने उलझते सुलझते जीवन के अनुभवों को साझा कर ये समझते हैं की उनकी लेखन प्रतिभा बेहद तार्किक और प्रभावशाली है अपने तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए ऐसे लेखक अध्ययन को नजरंदाज करते हैं वरिष्ठ साहित्यकारों की अभिव्यक्तियों से उनका कोई लेना देना नहीं होता। स्वयं की रचनाओं को आधुनिक और समय की मांग समझाते हैं। ऐसे रचनाकार की भीड़ दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है जो अध्ययन को उपेक्षा कर मात्र सृजन को ही मान्यता देते हैं।
रजनी श्रीवास्तव अनंता के शब्दों में - साहित्य अध्ययन रोज-रोज और साहित्य सृजन कभी-कभी होना चाहिए। तभी साहित्य में गुणवत्ता आएगी, तभी हमें पाठक मिल सकेंगे। साहित्य अध्ययन के लिए कौन-सा साहित्य चुना जाता है, यह भी एक महत्वपूर्ण बात है उच्चतम कोटि के साहित्य पढ़ने से हमारी साहित्यिक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। सुंदर शब्दों और भावों का ज्ञान होता है। इसलिए अध्ययन के लिए साहित्य का सही चयन भी बहुत ही महत्वपूर्ण है।
गार्गी राय ने कहा कि -लेखन के विधिवत शिक्षा के लिए जरूरी है कि हम समाज के अनुभवों का भी बारीकी से अध्ययन करना चाहिए ताकि हमारी लेखनी परिष्कृत हो सके।
डॉ शरद नारायण खरे के विचार से..-।बिना अध्ययन के सृजन कार्य गुणवत्ता से विमुख हो जाता है।अध्ययन कवि/लेखक के चिंतन व प्रस्तुति के नवीन आयाम, शिल्प,विषयवस्तु, समसामयिकता बोध सभी कुछ प्रदान करता है।लेखन में ताज़गी व विविधता लाने के लिए सतत् अध्ययन अत्यंत आवश्यक होता है। इसीलिए हर रचनाकार को चाहिए कि वह जितना लिखता है उससे कई गुना अधिक अध्ययन करे।
इनके अतिरिक्त , इंदु उपाध्याय, विजय कुमारी मौर्य, एकलव्य केसरी, अपूर्व कुमार ,सुधा पांडे, ,राजेंद्र राज,सपना चंद्रा, संतोष मालवीय, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र,चैतन्य किरण, शैलेंद्र सिंह, संतोष मालवीय,सुनील कुमार उपाध्याय,नीलम श्रीवास्तव आदि विचारकों ने भी अपने विचार रखे l
♦️🔷 प्रस्तुति : ऋचा वर्मा (सचिव)/ सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)
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