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5/10/23

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय ४२वें महाधिवेशन का हुआ आयोजन।

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन का  दो दिवसीय ४२वें महाधिवेशन

 हमारी पहली प्राथमिकता है हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना!": डॉक्टर अनिल सुलभ

 समाज के लिए लाभकारी न हो, ऐसे साहित्य का क्या लाभ? ": राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेक बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ४२वें महाधिवेशन के उद्घाटन करते हुए,अपने संबोधन में बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि, "  साहित्य को समाज को प्रेरणा देने वाला होना चाहिए। जो समाज के लिए लाभकारी न हो, ऐसे साहित्य का क्या लाभ? "

                  उन्होंने कहा कि, "  हिन्दी भाषा में, संस्कृत का अधिक प्रचलन हुआ रहता तो , दक्षिण भारत में इसकी स्वीकृति बहुत पहले हो चुकी होती। वह इसलिए कि दक्षिण की भाषाओं में संस्कृत शब्दों का बाहुल्य है। उन्होंने कहा कि, साहित्य से नयी पीढ़ी को जोड़ा जाना चाहिए। विद्यार्थियों और बच्चों में पाठ्यपुस्तकों के साथ रचनात्मक साहित्य की पुस्तकें पढ़ने की आदत डाली जानी चाहिए।..."              

             सम्मेलन के संस्थापकों में से एक और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद के पुण्य-स्मृति-दिवस की षष्टि-पूर्ति को समर्पित इस महाधिवेशन के उद्घाटन-सत्र में सम्मेलन अध्यक्ष डा. अनिल सुलभ ने, महामहिम को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि 'विद्या-वाचस्पति' से विभूषित किया। 

              इस अवसर पर, पहले दिन महामहिम राज्यपाल तथा दूसरे दिन बिहार विधान सभाध्यक्ष  अवध बिहारी सिंह ने क्रमशः 21 तथा 48 साहित्यिक विभूतियों  को - 

 ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के कुलपति प्रो. चक्रधर त्रिपाठी को आचार्य शिवपूजन सहाय स्मृति सम्मान  ,  सुप्रसिद्ध साहित्यकार और काशी-वाराणसी विरासत फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. राम मोहन पाठक को देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद हिंदी सेवी सम्मान, दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डा. राजकुमार नाहर को उपेंद्र महारथी कला साधना सम्मान ,  डॉक्टर शैलेश पंडित को फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान, डॉ. हेमराज मीणा को राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह सम्मान , काठमाण्डू, नेपाल की विदुषी हिन्दी सेवी प्रो. कंचना झा को विदुषी शैलजा बाला स्मृति सम्मान , डा. बबीता कुमारी को उषा रानी

 ' दीन ' स्मृति सम्मान , डॉक्टर जंग बहादुर पांडे को आचार्य देवेंद्र नाथ शर्मा सम्मान  , डॉ. प्रशांत कर्ण को पंडित जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज ', डॉ. कुमारी मनीषा को डॉ. उर्मिला कौल स्मृति सम्मान , उषा ओझा को स्नेह लता पारूथी  स्मृति सम्मान , प्रोफेसर रेखा मिश्र को प्रकाशवती नारायण सम्मान , प्रोफेसर उषा सिन्हा को डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र साहित्य सम्मान  , डॉ. कुमार विरल को महापंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, विनय पांडे भारती को डॉक्टर सुभद्रा वीरेंद्र स्मृति सम्मान , विष्णु देव सिंह रघुवीर नारायण सम्मान निवेदिता श्रीवास्तव गार्गी को अंबालिका देवी सारस्वत साधना सम्मान,  श्री ज्वाला सांध्य पुष्प को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति सम्मान , सुरेश कुमार चौबे को गोपाल सिंह '  नेपाली ' स्मृति सम्मान  , डॉ. राजू प्रसाद 'नीलोत्पल ऋतु कल्प '  को रामवृक्ष बेनीपुरी स्मृति सम्मान,  केशव मोहन पांडे को केदारनाथ मिश्र 'प्रभात ' सम्मान,  रवि रंजन को डॉक्टर लक्ष्मी नारायण स्मृति ' सुधांशु ' स्मृति सम्मान ,   रवींद्र कुमार रतन को बाबा नागार्जुन सम्मान,  अमित कुमार दीक्षित को आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री सम्मान , डॉक्टर पल्लवी कौशिक गुंजन को बच्चन देवी साहित्य सम्मान, देवेंद्र नाथ शुक्ल को महाकवि काशी नाथ पांडे स्मृति सम्मान,  राजकांता राज को साहित्य सम्मेलन हिंदी सेवी सम्मान , आलोक रंजन को साहित्य सम्मेलन युवा साहित्यकार सम्मान , डॉ. पुष्पा कुमारी को विदुषी गिरिजा  वर्णवाल स्मृति सम्मान, डॉ. रत्ना पुरकायस्था को डॉक्टर वीणा  श्रीवास्तव स्मृति सम्मान , अरविंद अकेला को डॉक्टर नरेश पांडे चकोर स्मृति सम्मान , पंडित सत्य नारायण चतुर्वेदी को राष्ट्रभाषा प्रहरी, नृपेंद्र नाथ गुप्त स्मृति पवन सिंह को पंडित छविनाथ पांडे स्मृति सम्मान , डॉक्टर अजय कुमार को डॉक्टर रविंद्र राजहंस स्मृति सम्मान डॉ. नम्रता कुमारी प्रकाश को कुमारी राधा स्मृति सम्मान , मिनी मिश्रा को अनुपमा नाथ स्मृति सम्मान नागेंद्र कुमार केसरी को डॉक्टर शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव स्मृति सम्मान , पप्पू मिश्र पुष्प को पंडित रामचंद्र भारद्वाज स्मृति सम्मान ,  श्रीमती निगार आरा  को चतुर्वेदी प्रतिभा मिश्र साहित्य साधना सम्मान, विकास सोलंकी को डॉ. धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री स्मृति सम्मान, श्रीमती कश्मीरा सिंह को डॉ. ललितांशुमयी स्मृति सम्मान, सोनम सिंह को साहित्य सम्मेलन हिंदी सेवी सम्मान ,श्रीमती सुधा पांडे को डॉक्टर शांति जैन स्मृति सम्मान ,डॉ. जनार्दन सिंह को आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव स्मृति सम्मान ,  पवन सिंह को पंडित छविनाथ पांडे स्मृति सम्मान ,अरुण कुमार पासवान को पंडित प्रफुल्ल चंद्र ओझा मुक्त सम्मान, डॉक्टर ओम प्रकाश पांडे को अंगकोकिल डा. परमानंद पांडे सम्मान , डॉ. राजीव सिंह को प्रोफेसर मथुरा प्रसाद दीक्षित स्मृति सम्मान, ज़फर हबीबी को डॉ. श्याम नंदन किशोर स्मृति सम्मान आदि सहित बिहार की महान साहित्यिक विभूतियों के नाम से नामित अलंकरणों से सम्मानित किया।....


                

           इसके पूर्व महामहिम ने साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित, विदुषी लेखिका डा. पूनम आनन्द के लघुकथा-संग्रह '१२१ लघुकथाएँ', सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा. कल्याणी कुसुम सिंह की पुस्तक 'भाग लें' , पर्यावरणविद कवि डा. मेहता नगेंद्र सिंह की पुस्तक 'पेड़ की चिंता' , कवि महेश्वर ओझा '  महेश ' का काव्य संग्रह - ' काव्य कुंज  कुसुमावली , भाग-1 ' तथा सम्मेलन पत्रिका 'सम्मेलन-साहित्य' के महाधिवेशन विशेषांक का लोकार्पण किया।... 

     .....उल्लेखनीय है कि पत्रिका के प्रधान संपादक- डॉ. अनिल सुलभ, संपादक - डा. शिववंश पांडे ,  संपादन सहयोग - प्रोफ़ेसर मंगला रानी , डॉक्टर लक्ष्मी कुमारी , डॉक्टर सीमा रानी , डॉक्टर रणधीर कुमार,  मिश्र ,श्रीमती सागरिका राय ,डॉ. शालिनी पांडे,  डॉ.  प्रतिभा रानी तथा  प्रबंध संपादक - कृष्ण रंजन सिंह हैं।  ....सम्मेलन साहित्य पत्रिका में डॉ. अमरनाथ सिन्हा,  डॉ. कुमार अरुणोदय , प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित ,  प्रोफ़ेसर उषा सिन्हा,  डॉक्टर जंग बहादुर पांडे , डॉक्टर देवेंद्र तोमर ,  प्रोफेसर शशि शेखर तिवारी,  डॉ. चक्रधर त्रिपाठी , डॉ. सीमा रानी, डा. ध्रुव कुमार ,  डॉ. मंगला रानी,  डॉक्टर विनोद कुमार सिन्हा,  डॉ. अर्चना त्रिपाठी तथा डॉ. बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता की विचारोत्तेजक, सारगर्भित व सशक्त साहित्यिक रचनाओं से परिपूर्ण पत्रिका उपयोगी , शोधपरक व संग्रहणीय  बन गई है।  डॉक्टर बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता का विस्तृत आलेख - "   पिछले वर्ष बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का दो दिवसीय 41 वाँ महाधिवेशन : एक अवलोकन " भी प्रकाशित किया गया है, जो पिछले वर्ष सम्मेलन   द्वारा आयोजित महाधिवेशन -2022 का सिर्फ स्मरण ही नहीं करा जाता, बल्कि जीवंत साक्षात्कार भी करा जाता है ।


          ...... आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, महाधिवेशन के स्वागताध्यक्ष और पूर्व सांसद डा. रवीन्द्र किशोर सिन्हा का कहना रहा कि ७५ वर्ष स्वतंत्रता के हो गए, किंतु अभी तक हम हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं कर सके , यह अत्यंत दुःखदायी है।...


             .... उद्घाटन सत्र के अपने अध्यक्षीय संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष  डा. अनिल सुलभ ने कहा कि साहित्य सम्मेलन देशरत्न की सेवाओं का ऋणी है। उनकी हिन्दी-सेवा किसी भी साहित्यकार से बड़ी है। उनके ही प्रयास और प्रेरणा से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई। वे हिन्दी की सेवा को 'देश-सेवा' ही मानते थे। सम्मेलन के हिन्दी-प्रचारक के रूप में उन्होंने दक्षिण-भारत के विभिन्न प्रांतों में अनेक यात्रएँ की और हिन्दी संस्थाओं की स्थापना की और करायीं।

                         डा. सुलभ ने बताया कि देश की भावनात्मक एकता और सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि इसकी कोई एक राष्ट्र-भाषा हो। जिस देश की कोई राष्ट्र-भाषा नहीं होती, वह देश चाहे जितना शोर मचाए, गूंगा ही रह जाता है।

...... उद्घाटन सत्र को केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष डा. अनिल शर्मा जोशी, प्रो. राम मोहन पाठक, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा. कुमार अरुणोदय ने भी संबोधित किया। सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा. शिववंश पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन तथा मंच का संचालन डा. शंकर प्रसाद ने किया।.समारोह के आरंभ में स्वागत समिति के उपाध्यक्ष सरदार महेन्दर पाल सिंह 'ढिल्लन' ने महामहिम समेत सभी मंचस्थ अतिथियों का गुरुद्वारा पटना साहिब की ओर से 'सिरोपा' और पिन्नी-प्रसाद देकर सम्मानित किया।

            प्रथम वैचारिक सत्र  का  विषय था - ' देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद: उनकी हिन्दी सेवा और ग्रामीण-चेतना' । इस सत्र का उद्घाटन करते हुए,  डा. अनिल शर्मा जोशी ने  कहा कि,राजेंद्र बाबू की हिन्दी-सेवा अत्यंत मूल्यवान है। हिंदी के प्रचार-प्रसार में महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारतीय हिन्दी-सेवियों का बड़ा योगदान है। संत विनोवा भावे और काका कालेलकर इसके बड़े उदाहरण हैं।...

             डा. रवीन्द्र किशोर सिन्हा की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में सत्र के मुख्य वक्ता और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश प्राप्त अधिकारी डा. उपेन्द्रनाथ पाण्डेय, डा. योगेन्द्र लाल दास तथ चितरंजन प्रसाद सिंहा 'कनक' ने भी अपने पत्र प्रस्तुत किए।धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन की उपाध्यक्ष प्रो. मधु वर्मा ने तथा मंच का संचालन, साहित्य मंत्री प्रो. मंगला रानी ने किया। 

                आज के दूसरे सत्र का उद्घाटन प्रो. राम मोहन पाठक ने किया। इस सत्र के विषय 'हिन्दी साहित्य में कृषक विमर्श' पर अपना विचार रखते हुए, उन्होंने सही  ही कहा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और साहित्य में कृषकों की बात न हो ,  तो साहित्य अधूरा-अधूरा लगता है। साहित्य सम्मेलन ने इस विषय पर विमर्श आरंभ कर बहुत सराहनीय कार्य किया है , जिसका दूरगामी प्रभाव होगा।

            भूपेन्द्र नारायण मण्डल विश्व विद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति प्रो. अमरनाथ सिन्हा की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र डा. विनोद कुमार सिन्हा, पद्मकन्या महिला महाविद्यालय, काठमांडू, नेपाल की प्राध्यापिका प्रो. कंचना झा, प्रो. मंगला रानी तथा डा. अवधेश के. नारायण ने भी अपने पत्र प्रस्तुत किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा. कल्याणी कुसुम सिंह ने, धन्यवाद-ज्ञापन अर्थ मंत्री प्रो. सुशील कुमार झा ने तथा मंच-संचालन कवयित्री श्वेता ग़ज़ल ने किया।

महाधिवेशन के अतिथियों और प्रतिभागियों के सम्मान में आज की संध्या एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जिसमें सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा. शंकर प्रसाद ने 'सरगम  म-प्रमुख और सुप्रसिद्ध गायक और तबला-वादक डा. राज कुमार नाहर ने अपने शास्त्रीय गायन से पूरे सभागार को सम्मोहित कर संगीतमय बना डाला l आज के समारोह का समापन  सम्मेलन की कलामंत्री डा. पल्लवी विश्वास के निर्देशन में नृत्य-नाटिका 'आनन्द भैरवी' की प्रस्तुति से हुआ जिसमें सांस्कृतिक संस्था ' कलाकक्ष ' के बाल नृत्यांगना काशिका सहित सभी बाल -  कलाकारों का अभिनय व नृत्य मनमोहक था , किन्तु ओडिसी नृत्य आकर्षण का केंद्र रहा ।.

       .इस अवसर पर साहित्यकार डॉक्टर (प्रो.)  जंग बहादुर पांडे , सम्मेलन के प्रचार मंत्री डॉक्टर ध्रुव कुमार, कार्यकारिणी सदस्य डा. पूनम आनंद ,  डॉ. मेहता नागेंद्र सिंह , डा. बी.एन विश्वकर्मा , कवि सदानंद सिंह , सुशील कुमार ,  कृष्ण मोहन सिंह , सिद्धेश्वर,   राज प्रिया रानी , डॉक्टर मासूमी,नागेंद्र प्रसाद यादव ,रणधीर कुमार , बिंदेश्वर प्र.गुप्ता,डॉक्टर अप्सरा , लता पाराशर,  साहित्य स्मारिका के मुद्रक अभिषेक कुमार आदि सहित कई विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, लेखक एवं गणमान्य अतिथि उपस्थित  होकर समारोह को गौरवान्वित किया  , यदि कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । 

दूसरे दिन  , समापन सह सम्मान समारोह के उद्घाटन करता है और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी  विस्तार से कहा कि  अपनी संस्कृति और उसकी चेतना की रक्षा एवं विकास में साहित्य की सबसे बड़ी भूमिका है भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन में साहित्यकारों की बड़ी भूमिका रही साहित्यकारों की महिमा महान है ।  इस अवसर पर सम्मेलन अध्यक्ष डॉक्टर अनिल सुलभ ने श्री चौधरी को सम्मेलन की उच्च मानद उपाधि विद्यावाचस्पति से विभूषित किया । .समारोह के मुख्य अतिथि और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ सी.पी. ठाकुर ने कहा कि साहित्य सम्मेलन में इन हिंदी साहित्यकारों को सम्मानित किया है जो पूरी तन्मयता से हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा कर रहे हैं । इससे अन्य साहित्यकारों को प्रेरणा मिलेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यमंत्री और विधान पार्षद डॉ. संजय पासवान ने कहा कि महाधिवेशन के माध्यम से साहित्य सम्मेलन पूरे देश से जुड़ता है और देश को जोड़ता है। साहित्य को इसलिए जोड़ने का माध्यम माना जाता है । साहित्य वही है जो सबको जोड़ें, तोड़े नहीं ।  इस अवसर पर सम्मेलन की ओर से अध्यक्ष ने यह प्रस्ताव रखा कि "भारत की स्वतंत्रता के ७५ वर्ष व्यतीत हो जाने के पश्चात भी देश की कोई एक भाषा का राष्ट्र-भाषा घोषित नहीं होना, समस्त भारतीयों के लिए वैश्विक-लज्जा का विषय है। इस हेतु यह महाधिवेशन 'एक राष्ट्र, एक राष्ट्रभाषा और एक राष्ट्र-लिपि' हो इसकी माँग भारत सरकार से करताहै। 

समापन समारोह के दिन  प्रथम और महाधिवेशन का तृतीय वैचारिक सत्र का विषय था- “एक राष्ट्र, एक राष्ट्र-भाषा और एक राष्ट्र-लिपि"। मुख्य वक्ता भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य वीरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि हिंदी के प्रति आज भी उपेक्षा की दृष्टि अपनाई जा रही है l भारत का मूल संविधान अंग्रेज़ी में लिखा गया। यही बड़ी भूल थी। हम आज भी हिन्दी की बात तो करते र्हैं, किंतु हिंदी में बात नहीं करते। इस देश की एक राष्ट्रभाषा हो एक लिपि हो, यह तो आवश्यक है ही,किंतु इस हेतु हमें संघर्ष करना होगा। , सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा. शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, स्वतंत्रता की लड़ाई में हिन्दी की प्रमुख भूमिका थी। लेकिन संविधान-निर्माण के समय, वोट की राजनीति आरंभ हो गईl.राणा अवधेश की अध्यक्षता में आयोजित इस सत्र में, डा.  सुमेधा पाठक तथा सागरिका राय ने भी अपना पत्र प्रस्तुत किया। अतिथियों का स्वागत पूर्व जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो. बागेश्वरी नन्दन सिंह ने, धन्यवाद-ज्ञापन पुस्तकालय मंत्री ई.अशोक कुमार ने  तथा मंच-संचालन डा. ध्रुव कुमार ने किया। 

आज के अंतिम और चौथे सत्र, जिसका विषय "'भारत की वैश्विक दृष्टि और 'वसुधैव कुटुम्बकम' की अवधारणा" थी, का उद्घाटन बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष डा. विजय प्रकाश ने किया।उन्होंने कहा कि  हम मनुष्यों तो क्या पशु-पक्षियों, पेड़पौंधों, नदियों पर्वतों से भी संबंध जोड़ लेते हैं। भारत की यही वैश्विक दृष्टि उसकी 'वसुधैव कुटुम्बकम' की अवधारणा का सूत्र है। यही दृष्टि, युद्ध की कगार पर खड़े विश्व को सन्मार्ग पर ला सकती है। 

ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के कुलपति प्रो. चक्रधर त्रिपाठी की अध्यक्षता में संपन्न हुएl इस सत्र में डा. हेम राज मीणा, डा. जंग बहादुर पाण्डेय, डा. सीमा रानी तथा सारण जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष ब्रजेंद्र कुमार सिंहा ने भी अपने पत्र प्रस्तुत किए। अतिथियों का स्वागत संगठन मंत्री डा. शालिनी पाण्डेय ने, धन्यवाद-ज्ञापन , प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने तथा मंच का संचालन कुमार अनुपम ने किया lइसके अतिरिक्त , सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' की अध्यक्षता में एक भव्य कवि-सम्मेलन का भी आयोजन हुआ, जिसका उद्घाटन 'बिहार-गीत' के रचनाकार और हिन्दी प्रगति समिति, बिहार के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने किया। चर्चित कवयित्री आराधना प्रसाद,  डा नीलिमा वर्मा, पंकज कुमार वसंत,,, महेश कुमार मधुकर, आर .पी. घायल, डा. सुरेश सिंह शौर्य, सावित्री सुमन,रंजना, डा नीतू चौहान, प्रो. छोटेलाल गुप्ता, डा. सुनील कुमार उपाध्याय,  आदि कुछ कवि कवियों और कवयित्रियों ने इस विराट कवि सम्मेलन में भाग लिया, किंतु समय अभाव के कारण ढेर सारे कवि काव्य पाठ नहीं कर पाने के कारण  निराश भी रह गए, जिसके लिए अध्यक्ष ने खेद प्रकट किया l कवियों का स्वागत वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन की लोकभाषा मंत्री डा. पुष्पा जमुआर ने किया।

 यह दो दिवसीय महाधिवेशन कई मायने से  अविस्मरणीय और यादगार बन पड़ी 

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हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि) 

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