5/31/23

मुर्दे की ख्वाहिश" ( कविता)- श्लोक कुमार

मुर्दे की ख्वाहिश" ( कविता)- श्लोक कुमार

 "मुर्दे की ख्वाहिश" 

इस तरह शमित मनोदशा में क्यों सोये हो 

आखिरी तलब तो बताओ, कुछ तो कहो 

क्या खत्म हो गई तुम्हारी स्मृति शक्ति

ओ मेरे गुमनाम निष्प्राण 

क्या खत्म हो गई तुम्हारे कराबत की डोर

लेके आये मरघट तुमको हो गए भोर , कुछ तो कहो 

इस तरह खिन्न क्यों हो इस अभिशिप्त मरघट में 

तुम्हारी इस शांत दशा से में हो रहा उद्विग्न क्यों हो ऐसे,

कछ तो कहो 


क्या तुम इस चार स्कंध के ही प्यासे थे 

क्या तुम इस मरघट के ही लोभी थे, कुछ तो कहो 

कुछ छड के लिए लांघ कर स्वर्ग की चौखट को

 अपनी इच्छाओं का जिक्रे खैर तो करो , कुछ तो कहो 

अरे, इस तरह तुम खफा रहोगे हमसे तो 

मृदुला धाराओं से तो कहो , कुछ तो कहो 

त्याग इस मर्त्यलोक को अपने मरघट की 

वस्फ तो कहो , कुछ तो कहो 

कहते हैं , मुर्दे बोला नही करते हैं पर ऐसा नहीं हैं 

ओ सौम्य चक्षु , ओ दुःखद काया कुछ तो कहती हैं

पल पल सिर्फ लौटने को कहती हैं 

पर सोच ना जाने क्या रुकने को कहती हैं ,

कुछ तो कहो

क्यों राह देखते तुम पड़े उस आवाह्न के लिए 

क्यों तुमने अपने प्राण दिए उस निरर्थक मुखाग्नि के लिए ,

      कुछ तो कहो 


इतनी भी कड़वाहट मत कर उद्भूत , 

ओ मेरे छड़िक राही

लौट चल मायानगरी बनकर मरघट का राई

कुछ ही छड़ के लिए पूछ ले मुर्दे की ख्वाहिश ओ धारा दुर्दिन 

इतनी भी शीघ्रता क्यों हैं, ले ले मृतचैल रंगीन 

क्यों तू लिए मृतदेह काया जलती चमड़ी गिन - गिन 

     कुछ तो कहो

✍️ श्लोक कुमार

      (उत्तरप्रदेश)


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