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6/10/23

कर्म का फल ( कर्म सिद्धांत):- डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

कर्म का फल ( कर्म सिद्धांत):- डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अगर हम एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलते हैं तो हमें एक झूठ के फल की जगह सौ झूठ के फल के भोगने पड़ते  हैं। कर्म सिद्धांत के अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपने द्वारा की गई गलती का पश्चाताप इस भावना के साथ करता है कि वह दोबारा इस गलती को नहीं करेगा तो उसके कर्म का फल बहुत हद तक कम हो जाता है।

परंतु इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति अपनी द्वारा की गई गलती या किसी झूठ को किसी दूसरे व्यक्ति पर थोपता है तो वह किसी भी सहानुभूति का पात्र नहीं होता है।

यदि आप किसी के साथ गलत कर रहे हैं और यह सोच रहे हैं कि आपको कोई नहीं देख रहा है या आप अपनी चालाकी से उस व्यक्ति को रोक रहे हैं।

 तो ध्यान रखें कि आप किसी न किसी रूप में स्वयं के साथ गलत कर रहे हैं जिसका फल आप स्वयं तथा स्वयं से जुड़े व्यक्तियों को भी भुगतना पड़ेगा।

कर्म ना जाने किस रूप में ?

                  किस समय में ? 

      किस जगह पर ?

             किस भावना में ?

   किस संबंध में ?

          किस अच्छाई में ?

 किस बुराई में ? 

            किस घटना में ?

 किस दुर्घटना में ?

             किस भोजन में ? 

किस जल में ?

कहां मिल जाए , 

कोई नहीं जानता।।

एक बात अवश्य याद रखें हमारे द्वारा की गई गलतियों का पश्चाताप सुधार संभव है परंतु माफी मांग कर दोबारा वही गलती दोहराना उस गलती को हजार बार किए गए , वह कर्म है जो आपको आपके बालक के रूप में निश्चित ही मिलेंगे ।

"क्योंकि कर्म वहीं से प्रारंभ होते हैं जहां से हमें उनका अंत लगता है, वह अपना फल उसी रूप में आ कर देते हैं ,जिस रूप में हमने उन्हें अलविदा कहा हो।"

डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"

अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

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धन्यवाद

हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि) 

(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)


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