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7/5/23

लघुकथा के पुरोधा सतीश राज पुष्करणा की मनी पुण्यतिथि

 लघुकथा के पुरोधा सतीश राज पुष्करणा की मनी पुण्यतिथि

पटना साहिब से दुर्गेश मोहन की प्रस्तुति:-  लघुकथा आंदोलन के पुरोधा एवं अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के संस्थापक डॉ. सतीश राज पुष्करणा की पुण्यतिथि पर राजधानी के लघुकथाकारों ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की I 

अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के तत्वावधान में खादी मॉल सभागार पटना  में आयोजित " स्मृति पर्व सह लघुकथा पाठ " की अध्यक्षता लंबे अर्से तक उनकी साहित्यिक यात्रा के हमसफर रहे लेखक और शायर डॉ कासिम खुर्शीद ने की I उन्होंने कहा कि डॉ सतीश राज पुष्करणा युवावस्था में जीविका के सिलसिले में बिहार आये और सारा जीवन पूरे समर्पण के साथ साहित्य को, विशेष कर लघुकथा को दे दिया और देखते ही देखते इसी बिहार की जमीन पर उन्होंने अपना ऐसा परिवार बनाया कि उनके जाने के बाद भी स्मृतियां हम सब में इस तरह रौशन हैं कि जिन से हमेशा दिल की अंधेरी बस्तियां प्रज्ज्वलित होती रहेंगी। वे इंसानी रिश्तों को शिद्दत से निभाने वाले सच्चे साहित्यकार थे। " उन्होंने कहा- " तुम्हारी याद के जुगनू हैं मेरी आंखों में, तुम्हारी याद से सारा मकान रौशन है I 

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नई धारा के सम्पादक और कवि प्रो. शिवनारायण ने कहा कि स्मृतिशेष सतीशराज पुष्करणा न केवल हिन्दी लघुकथा को विधागत मान्यता दिलाने के राष्ट्रव्यापी लघुकथा आंदोलन के प्रणेता रहे, बल्कि आधुनिक लघुकथा के प्रतिष्ठापक भी रहे।अहिंदीभाषी होते हुए भी हिंदी की लगभग सभी विधाओं में, विशेषकर लघुकथा में उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना कर एक कीर्तिमान स्थापित किया, जिसके कारण उनकी कर्मभूमि पटना सहित पूरे बिहार को उन पर गर्व है I विशिष्ट अतिथि कवि - साहित्यकार डॉ. भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि डॉ सतीश राज पुष्करणा लघुकथा के पर्याय थे I 

जे पी विश्वविद्यालय, छपरा की हिन्दी  स्नातकोत्तर विभागाध्यक्ष और लघुकथा मंच की उपाध्यक्ष प्रो. अनीता राकेश ने कहा कि उन्हें लघुकथा के पर्याय के रूप में पूरे देश में सम्मानपूर्वक याद किया जाता है I 

उद्योग विभाग, बिहार के विशेष सचिव और कवि दिलीप कुमार ने कहा कि उन्होंने संपूर्ण जीवन लघुकथा की समृद्धि के लिए कार्य किया I  डॉ ध्रुव कुमार, चितरंजन भारती, वीरेंद्र भारद्वाज  सिद्धेश्वर और प्रभात कुमार धवन ने लघुकथा और लघुकथा लेखकों को आगे बढ़ाने में डॉ पुष्करणा के अविस्मरणीय  व विस्तृत योगदान की चर्चा की I इस अवसर पर चितरंजन भारती ( बाउंसर ) , प्रभात कुमार धवन ( दौलत का प्रभाव),  डॉ विद्या चौधरी ( उपहार ),  सुधांशु कुमार चक्रवर्ती ( युद्घ), रेखा भारती मिश्रा ( हार ), डॉ भगवती प्रसाद द्विवेदी ( उम्मीद की परवरिश ), रूबी भूषण ( भूख अपनी-अपनी ), अनिल रश्मि ( कितना प्रतिशत ),  वीरेंद्र भारद्वाज (  ताजमहल ),  रिचा वर्मा ( अलबेला ), मीरा प्रकाश  ( समझौता),  आलोक चोपड़ा ( चोर कौन ), लता पराशर ( शक्ति के उपासक),  राज आर्यन ( परंपरा ),  प्रवीण कुमार ( कोई आवश्यक नहीं), श्रेया कुमारी ( आई. डोंट. कम.) ,डॉ शिवनारायण ( जहर के खिलाफ ),  वीरेंद्र भारद्वाज ( ताजमहल),  सिद्धेश्वर ( प्रकाशन का सुख) , पंकज प्रियम ( मास्टर साहब ) , सुधांशु चक्रवर्ती ( युद्ध ), अलका वर्मा ( छुआ गया ), बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता ( साहित्यिक उपलब्धि), खुशी कुमारी ( बेटी) , आदित्य राज  ( अगर मैं लड़की होता ), शौर्य पराशर ( चार शब्द ), गणपत हिमांशु ( ममता की शीतलता ),  सुप्रिया ( असल खर्च ),  विष्णु कुमार ( समझदारी),  सुमन कुमार  ( गिरगिट) ,  राजप्रिया रानी ( उगलती गर्मी) ,  ए.आर. हाशमी ( तारीख) , डॉ नीलू अग्रवाल ( वजूद ) और डॉ ध्रुव कुमार ( लकीर के उस पार ) सहित कुल 30 रचनाकारों ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ किया I 

संचालन अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के महासचिव डॉ ध्रुव कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन अनिल रश्मि ने किया I

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धन्यवाद

हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि) 

(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)


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