व्यापक समाज में कविता की स्वीकार्यता लगभग नहीं के बराबर है !: सिद्धेश्वर
पटना ! 26/08 /23! कविता की बारीकियों को समझने के लिए, ऑनलाइन या ऑफलाइन कविता की पाठशाला की सख्त जरूरत है l हमने इसी उद्देश्य से ऑनलाइन इस पाठशाला को चला रखा है l हमें खुशी है कि इस पाठशाला से नए कवि कुछ सीख रहे हैं और पहले से बेहतर सृजन कर रहे हैं l लघुकथा से कविता सृजन की ओर मुड़ गए हैँ और पहले से बेहतर लिख रहे हैं l विद्वान होना अलग बात है और साहित्यकार होना अलग l एक विद्वान जरूरी नहीं कि एक साहित्यकार भी हो l ठीक उसी प्रकार एक साहित्यकार जरूरी नहीं कि विद्वान भी हो l एक विद्वान साहित्यकार भी हो, तो अति उत्तम l किंतु विद्वान होना, साहित्यकार होने की पहचान नहीं होना चाहिए l कारण कई बार साहित्यकार इतनी अच्छी रचनाओं का सृजन कर लेता है कि व्याकरण संबंधी दोष के बावजूद उसे संशोधित कर प्रकाशित करना अनिवार्य लगता है l दूसरी तरफ विद्वान साहित्यकार की कई रचनाएं ऐसी होती है, कि व्याकरण या हिंदी का दोष नहीं रहने के बावजूद, वह रचना प्रभावकारी नहीं होती, अस्तरीय होती है l जिनका प्रकाशन कोई खास मायने नहीं रखता l
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शायद इसीलिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे विद्वान साहित्यकार एक सफल संपादक भी थे और वे नए पुराने रचनाकारों की वैसी रचनाओं को संशोधित कर प्रकाशित करते थे, जो रचनात्मक स्तर पर उच्च कोटि की होती थी l वे रचनाओं पर मेहनत करते थे, उसका संशोधन करते थे l और कई बार विद्वान रचनाकारों की अस्तरीय रचनाओं को स्थान नहीं देते थे l निष्पक्षता निर्भीकता और श्रेष्ठ संपादन की यह पहली शर्त होती है l लेकिन आज के संपादक ठीक इसके उल्टे विचार के होते हैं l उन्हें रेडीमेड सामग्री चाहिए जो सीधे पेस्ट कर सके l ऐसे में कई बार अच्छी रचनाएं पाठकों तक नहीं पहुंच पाती l
अवसर साहित्य पाठशाला के 22 वें एपिसोड में, पूरे देश में पहली बार इस तरह का साहित्यिक पाठशाला का ऑनलाइन आयोजन करने वाले संयोजक सिद्धेश्वर ने, संचालन के क्रम में ऑनलाइन उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया!
उन्होंने नए साहित्यकारों के संदर्भ में कहा क़ि पढ़ने की प्रवृत्ति भले ही पहले कम हो गई हो, लेकिन कविताएं खूब लिखी जा रही है ,कविता प्रकाशित भी खूब हो रही हैऔर कविता की पुस्तकें भी खूब आ रही है l लेकिन यह सारी सक्रियता एक तरफा है l कवि बिरादरी तो सक्रिय हैं, लेकिन व्यापक समाज में कविता की स्वीकार्यता लगभग नहीं के बराबर है l थोड़ी बहुत स्वीकार्यता है भी तो सिर्फ गीत और गजल जैसी छँद वाली कविताओं के प्रति l कुछ ऐसी ही स्थित लघुकथा और कहानी के प्रति भी देखी जा रही है l इसलिए जरूरी है कि आज के साहित्यकार साहित्य को गंभीरता से ले l सोशल मीडिया में भी कोई रचना डाले तो बहुत सोच समझकर और बेहतरीन रचनाएं l और बड़ी-बड़ी गोष्ठी में जाने के अपेक्षा छोटी-छोटी गोष्ठीयों में समय व्यय करें l खूब पढ़ने में समय व्यतीत करें, तब लिखें l तभी रचनाओं का स्तर में सुधार होगा और साहित्यकारों का कद भी बढ़ेगा l
विजयाकुमारी मौर्य ने कहा कि - बात सही कहा आपने सिद्धेश्वर जी। आजकल घर-घर कवि हैं,जो अपने अन्दर भाव उभरे और लिख डाली.. चाहे जैसी भी हो, नियम कानून से परे...हालांकि ऐसे कवियों को मार्गदर्शन की आवश्यकता है। यह मैं भी नहीं कहती कि मैं कविता में पूर्ण हूँ। सुधा पांडे ने कहा-"आलोचना से ही प्रखरता आती हैl" जबकि नमिता सिंह ने कहा -" अच्छा रचनाकार बनने के लिए आलोचनाओं को सकारात्मकता से से लेना अत्यंत आवश्यक है l" माधवी जैन ने कहा क़ि छन्दमुक्त कविता में कथ्य के साथ लयात्मकता नहीं हो तो वह सपाट बयानी है ,कविता नहीं lअखोरी चंद्रशेखर ने कहा -"छन्दमुक्त कविता में कथ्य के साथ लयात्मकता भी होनी चाहिए ।" हरि नारायण हरि ने कहा कि -आपका काम ही साहित्य-सृजन करना और साहित्यकारों को मंच प्रदान करना है। साहित्य साधना है। आज के साहित्यकार साधना करना नहीं चाहते और इच्छा रखते हैं कि एक-दो कविता लिखकर महान कहलायें!
इनके अतिरिक्त हरि नारायण हरि , पंकज करण,सुधा पांडेय पुष्प रंजन,इंदु उपाध्याय,माधवी जैन, संतोष मालवीय, नमिता सिंह, इंदू उपाध्याय, निर्मल कुमार दे,माधुरी जैन,डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना, अंकेश कुमार,अंजू श्रीवास्तव निगम,अखोरी चंद्रशेखर,अनिरुद्ध झा दिवाकर, संजय श्रीवास्तव, पूनम अनूप शर्मा, , विजयाकुमारी मौर्य,आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और चर्चा में भाग लिया!
[] प्रस्तुति :,ऋचा वर्मा ( सचिन )एवं सिद्धेश्वर/ अध्यक्ष भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना!
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धन्यवाद
हरे कृष्ण प्रकाश ( युवा कवि)
(संस्थापक- साहित्य आजकल, साहित्य संसार)
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