पतिव्रता:-
कमला का हर दूसरे तीसरे दिन हमारे घर आ जाना पिता जी को न सुहाता था न ही मुझे। पिता जी को अच्छा न लगने का कारण था कमला का बदनाम शराबी पति । मुझे कमला का आना इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी आती , जो भगवान जाने क्यों हमारे घर आते ही अपनी मां से खाना मांगने लगती, और उसे ऐसे जिद्द करता देख मां मुझे उसके लिए रोटी बनाने रसोईघर रवाना कर देती । कमला जब तक घर में होती, तब तक कभी वो तो कभी उसकी बेटी मां से कुछ न कुछ फरमाइश करते ही रहते।
कमला की उम्र पैंतीस साल से अधिक न होगी। दुबला पतला सा शरीर , रूखे बाल और चेहरे की झुर्रियां उसे उसकी उम्र से बीस - पच्चीस साल बड़ा दिखाती थीं। कमला का घर हमारे घर के पास ही था ,साथ लगती गली में। वह सारा दिन लोगों के घरों में घूम घूम कर औरतों का घर के काम में हाथ बटा देती और उसके बदले कभी कोई खाने की चीज या अपने बच्चों के लिए कपड़े ,बच्चों के स्कूल के पुराने बस्ते या जूते मांग लेती । घर जाकर फिर काम में जुट जाती । कभी कच्चे आंगन की लीपा पोती करती तो कभी घर के बाकी काम । कमला की दो बेटियां और एक छोटा बेटा था । बेटियों को घर के काम में हाथ बटाते किसी ने कभी देखा नहीं। सारा दिन लोगों के घरों में काम केतना ,कुछ न कुछ मांग कर घर लाना ,अपने घर का काम और रात को शराबी पति से मार खाना ,यही उसकी दिनचर्या थी।फिर भी लोगों के सामने बेशर्मों की तरह हंसती रहती थी।
उसका पति छिन्दा हमेशा से निठल्ला नहीं था। वह वन विभाग के एक बड़े अधिकारी के घर बावर्ची था ।वहीं कमला उससे मिली थी। तब इसकी उम्र कोई सोलह सत्रह साल रही होगी। एक संपन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली कमला को न जाने इस छिंदे ने क्या वायदे किए कि यह उसके साथ यहां भाग आई। छिन्दे की मां ने खुशी खुशी उसे अपनाया और तब से यह यहीं है । इसके मायके वालों ने कमला से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे ,बाकी किसी रिश्तेदार ने भी कभी इसे फिर मुंह नहीं लगाया । छिंदा वहां से तो काम छोड़ आया पर उसके बाद इसे एक डॉक्टर के घर काम मिल गया था । घर खर्च जैसे तैसे चल रहा था पर इसका मन कमला से कहां भरने वाला था । अपने ही गांव की एक औरत के साथ इसके नाजायज संबंध थे । अपनी ज्यादातर कमाई उसी के हवाले कर देता । उसी से रोज़ मिलने की हवस में नौकरी छोड़कर घर बैठ गया । तब से छिन्दा सारा दिन शराब पीकर घर आराम फरमाता है और कमला पति प्रेम की पट्टी अपनी आखों पर बांध कर लोगों के घर काम करके इसे और तीन बच्चों को पाल रही है।
जब भी कमला हमारे घर आती तो मैं बहुत चिढ़ती। उसे चुगली करने की आदत हमेशा से थी । शायद इसी लिए औरतें उसे अपने पास बैठा लेती थी । औरतों को भी दूसरे घर की बातों में हमेशा ही दिलचस्पी होती है और यह भी यहां की वहां करने में लगी रहती । घर घर जाकर ऐसे अस्थाई शरण से गुजारा करना मुश्किल था इसलिए उसने कुछ बड़े घरों में पक्का काम पकड़ने की कोशिश तो बहुत की, पर इसकी बात ना बनी। इसका कारण भी इसका पति ही था । यह दो तीन दिन जिस भी घर में काम कर लेती ,इसका पति वहीं पैसे मांगने पहुंच जाता। लोग महीने से पहले तनख्वाह देने से मना करते,तो यह गाली गलोच पर उतर आता ।कई बार गांव की औरतें कमला को कहती - " क्यों री,कब तक अपनी देह तोड़ेगी, उस ब्रह्मराक्षस को बोल ,कोई काम करे।"
कमला बात काटते कह देती -" यह तो करना चाहते हैं काकी,पर शरीर साथ भी तो दे,बहुत कमजोर हैं और कुछ लोगों ने इनके पैसे मार रखे हैं जैसे ही पैसे वापिस मिलेंगे यह अपना कारोबार शुरू कर लेंगे "।
भगवान जाने यह झूठ कमला खुद लोगों से बोलती थी या इसके पति ने ऐसे सुरखाब के सपने इसे सचमुच दिखा रखे थे जिनके पूरा होने की आस में यह रात दिन मरती थी ।
एक दिन सुबह सुबह कमला हमारे घर आई और मां के सामने रोने लगी कि उसके बच्चे कल से भूखे हैं। मां ने पिता जी से छिपाकर उसे थोड़ा सा आटा और बनी हुई तरकारी दे दी। मैं तब बरामदे में बैठ कर खाना खा रही थी तो सहानुभूति वश उसे खाने के लिए पूछा पर उसने मुस्कुरा कर मना कर दिया । इस इंकार की उम्मीद मुझे कमला से नहीं थी। उसके जाने पर मां ने बताया कि जब तक कमला अपने पति को नहीं खिला देती तब तक यह अन्न का दाना मुंह तक भी नहीं लाती । मुझे यह सुनकर कमला और उसके पति दोनों पर ही गुस्सा आया । छिन्दा लगभग चालीस साल का हट्टा कट्टा पुरूष था जो अपने काले वर्ण की वजह से सचमुच किसी दैत्य से कम न लगता था और जीर्ण कंकाल जैसी दिखने वाली कमला ने उसे भगवान का दर्जा दे रखा था।
मैं कमला की शारीरिक रूप रेखा और हमेशा औरतों से चिपके रहने की आदत के कारण कई बार उसकी पीठ पीछे छिपकली कह कर बुलाती थी । कई दिन से मैंने कमला को हमारे घर के चक्कर काटते नहीं देखा था तो मां से पूछ लिया -" मां, यह छिपकली कहीं चली गई है क्या ? कई दिन से दिखी नहीं।" मां ने बताया कि बहुत हाथ पैर जोड़ने पर उसे सरपंच के घर पक्का काम मिल गया है। अब वो दिन का ज्यादातर समय वहीं होती है । उनका घर साफ करती है और रसोई में मदद करवाती है । वहां से पक्की तनख्वाह लग गई है और साथ ही रोज़ बचा हुआ बहुत खाना भी मिल जाता है । एक दिन मां ने कुछ काम से कमला को बुलवाया पर उसने बहाना बना दिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं। इसपर मां ने चिढ़कर कहा -" सब पता है मुझे कौन सी तबीयत ढीली है इसकी , जब मांगना होता था तो हमारी दहलीज नहीं छोड़ती थी और अब काम मिल गया तो बुलाने पर भी नहीं आती। लोग सच ही कहते हैं इसके बारे , यह अपने माई बाप की नहीं हुई तो किसी और की क्या होगी।" उस दिन के बाद मां ने किसी काम के लिए कमला को नहीं बुलवाया । एक दो बार वह खुद आई पर मां ने उसे नजरंदाज कर दिया।
मां की कमला को लेकर बेरुखी ज्यादा दिन नहीं चली। एक दिन पता चला कि कमला के पति ने उससे शराब पीने के लिए पैसे मांगे । पैसे न मिलने पर उसने कमला को काफी मारा पीटा और फिर पैसे मांगने सरपंच के घर चला गया । घर पर उस समय केवल सरपंच की पत्नी और बहू थीं। उन्होंने पैसे देने से यह कहकर इंकार कर दिया कि महीना पूरा होने से पहले वे तनख्वाह नहीं देंगी और वैसे भी कमला राशन के लिए कुछ पैसे पहले ही ले चुकी है। सरपंच की पत्नी ने उससे कहा - " तुम वैसे भी पैसे शराब और औरतबाजी में ही खर्च करोगे ।" कमला ने कभी उसके आगे जुबान नही खोली थी इसलिए किसी औरत से बात सुनने की उसे आदत नहीं थी। गुस्से में आकर उसने सरपंच की पत्नी पर हाथ उठा दिया । अचानक हुए आक्रमण से वह खुद को संभाल ना पाई और नीचे गिर पड़ी जिससे उसका सिर दरवाज़े से टकरा गया और खून निकलना शुरू हो गया । छिन्दा तो वहां से घर भाग आया पर सरपंच ने जाकर अपनी पत्नी को अस्पताल दाखिल करवा कर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवा दी। गिरफ्तारी के डर से कमला के पति ने कमला का सिर खुद ही फाड़ दिया और बहते खून के साथ कमला को लेकर कोतवाली जा पहुंचा। वहां जाकर झूठी कहानी गढ़ी कि सरपंच की औरत ने गुस्से में कमला का सिर फोड़ दिया और बीच बचाव में ही सरपंच की पत्नी घायल हुई है । सरपंच ने अपना पलड़ा कमज़ोर होता देखकर समझौते की बात की ।लोगों ने भी उसे सलाह दी कि कोतवाली से बात निपटाना ही सही है ,छिन्दा और कमला तो गांव में ही रहेंगे । इनका जीना तुम वहां हराम कर देना । दोनों तरफ से समझौता कर लिया गया । छिन्दा खुश था ।वह गलती करके भी आसानी से जो छूट गया था।
इस घटना के बाद कमला का जीवन और मुश्किल हो चुका था ।उसे कोई अपने घर काम पर नहीं रखता था । उसका शरीर पहले ही बहुत कमजोर था और अब चोट लगने के कारण उसका बहुत सारा खून बह चुका था । डाॅक्टर ने कुछ और दिन अस्पताल में रहने को कहा पर छिन्दा उसे यह कहकर घर ले आया कि खाने का इंतजाम कौन करेगा । कमला खेतों में काम करने लायक नहीं रही थी । कुछ दिन लोगों के घर जा जाकर अपनी पट्टियों का हवाला देकर लोगों की सहानुभूति इक्कठा करती रही और घर चलाती रही । पर उसके निठल्ले पति के कारण यह तरीका ज्यादा दिन काम न आया । अब उसने लोगों के खेतों में काम करना शुरू कर दिया था । कमला को उम्मीद थी उसके जीवन में भी कभी न कभी अच्छे दिन आयेंगे। उसके पति का कारोबार होगा,उसकी बेटियां पढ़ लिखकर अफसर बनेंगी फिर उसकी पूरी ऐश होगी । यही सोचकर वह बेटियों को घर के काम में हाथ बटाने को न कहती थी । सोचती थी जब अच्छे दिन आयेंगे तो वह पूरा आराम करेगी।
एक दिन मां पिता जी किसी संबंधी के यहां गए थे ।मुझे मां कह गई कि हलवाई की दुकान से अपने लिए कुछ मंगवा लेना , अकेली क्या रसोई पकाना । मैंने गली के एक बच्चे को समोसे लेने दुकान की और भेजा । मां का कहीं जाना मेरे लिए ऐसे ही दावत का मौका होता है । मैं दरवाजे के पास आकर उस बच्चे के वापिस आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी कि तभी मैंने गली में कमला और उसके पति को देखा । कमला कहीं से मांग कर चूल्हे के लिए लकड़ियां ला रही थी और उसका पति आगे आगे चल रहा था । अचानक लकड़ियों की गठरी कमला के सिर से गिर गई , यह देखकर कमला के पति ने एक लकड़ी उठाई और उसे जानवरों की तरह मारना शुरू कर दिया। मार कर जब उसका जी भर गया तो छिन्दा कमला को उसी हालत में छोड़कर घर चला गया । मैं दरवाजे की ओट से यह सारा भयावह नजारा देख रही थी।कमला लकड़ियों को दोबारा सिर पर रखने की कोशिश कर रही थी कि तभी मैं उसके पास गई और बिखरी हुई लकड़ियां समेट कर उसकी ओर बढ़ा दीं। कमला की आखों से अचानक आसूंओं की मानो बाढ़ सी उमड़ आई और वह लकड़ियां लेकर घर चली गई । मैं वहीं खड़ी स्थिति को भांप रही थी । कमला मेरे सामने अपमानित होने के कारण नहीं रोई, उसके रोने का कारण कुछ और था । सारी उम्र वह लोगों के सामने अपने पति की जिस आदर्श छवि को प्रस्तुत करती आई थी , वह मेरे आगे टूट कर चूर हो चुकी थी।
कमला को उस दिन मैंने आखिरी बार देखा । कुछ दिन बाद कमला की बड़ी बेटी मां से कुछ पैसे मांगने आई । कमला के बारे में पूछने पर उसने बताया कि मां बहुत बीमार है और अस्पताल में है। यह सुनकर पिता जी ने कुछ पैसे उसे दे दिए और मां को बच्चों के लिए खाना देने को भी कहा। कमला बीमार तो लंबे समय से थी ,पर शायद अब उसका शरीर जवाब दे रहा था।
छिन्दा इस मौके को जाने नहीं देना चाहता था । वह घर घर जाकर लोगों से कमला के इलाज के लिए पैसे मांगने लग गया । जो पैसे मिलते उससे वह शराब पी लेता और बच्चे लोगों के से घर मांग कर अपना गुजारा कर ही लेते । पर मांगने का यह क्रम भी कितने ही दिन चलता और कुछ लोग यह कहकर मना कर देते थे कि "कमला तो सरकारी अस्पताल में भर्ती है ,वहां के लिए काहे को इतने पैसे चाहिए?" इसका तोड़ भी कमला के पति ने निकल लिया। वह हर हाल में पैसे ऐंठने का ऐसा अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसने कमला को दिल्ली के एक सरकारी अस्पताल में भर्ती करवा दिया और लोगों से यह कहकर पैसे मांगने लग गया कि " बहुत बड़े अस्पताल में भर्ती करवाया है , बहुत खर्च आता है रोज का । आप सहायता कर दीजिए , मैं और मेरा परिवार आपके यहां मेहनत मजदूरी करके सब चुका देंगे।"
सबको पता तो था कि ये कभी पैसे वापिस नहीं करेगा परंतु इंसानियत की खातिर कई लोगों ने इस परिवार की जितना हो सकता था , मदद की। गांव के कुछ शक्की मिजाज के लोगों ने पैसे देने से पहले डॉक्टर से बात करने की शर्त रखी तो डॉक्टर से बात भी करवाई गई । डॉक्टर ने बस इतना कहा -" मरीज का अच्छे से इलाज करवाया जाए तो यह ठीक हो जायेगा पर भविष्य में इससे मेहनत मजदूरी की उम्मीद नहीं की जा सकती। "
एक रात लगभग एक बजे अचानक मां की नींद किसी गाड़ी के हॉर्न से खुल गई । उन्होंने पिता जी को उठाया और देखने बाहर भेजा । साथ वाले कमरे में मेरी नींद भी खुल चुकी थी और मैं मां के पास आ गई । पिता जी ने वापिस आकर बताया कि एंबुलेंस गली में खड़ी है और कुछ अंजान लोग कमला के घर की ओर जा रहे हैं ।मां को अनहोनी का आभास हो गया । मां के बार बार कहने पर पिता जी कमला के घर की ओर गए । वापिस आकर उन्होंने बताया कि कमला की मृत्यु हो चुकी है और किसी गैर सरकारी संगठन की एंबुलेंस मृतक देह को छोड़ने आई थी । यह सुनकर मां की आखों से झर झर आंसू बहने लगे। मां ने उसी समय बच्चों का सोचकर कमला के घर जाना चाहा ,पर पिता जी ने बताया कि वे खुद वहां रुकना चाहते थे पर कमला के पति ने उन्हें वापिस भेज दिया। मां कमला के पति की बेवकूफी को कोस रही थी कि इस समय तो बच्चों को सहारे की कितनी जरूरत होगी ,पर कमला के पति के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था । कमला की लाश को बच्चों के हवाले कर वह रात को ही गांव के प्रतिष्ठित घरों में गया और यह कहकर पैसे ऐंठ लाया कि घर के बाहर एंबुलेंस खड़ी है और एंबुलेंस वाले बिना पैसे चुकता किए लाश नहीं दे रहे।
अगले दिन कमला के मायके वालों को संदेश भेजा गया । मौत की खबर सुनकर मायके वाले भी सारे शिकवे छोड़ कर अपने आखिरी फर्ज अदा करने आ पहुंचे । कमला के मायके वालों ने विधि पूर्वक उसका अंतिम संस्कार करवाया । अपने नाती पोतों को बुरी हालत में देख कर कमला के पिता और भाई बहुत सा अनाज और पैसे भी दे गए और के गए कि बच्चे किसी के आगे हाथ न फैलाएं,जो कुछ चाहिए हो ,हमसे मांग लिया जाए ।
कुछ ही दिनों में कमला के घर की हालत सुधर गई । कमला के मायके वाले तो खुले हाथों से उन पर लूटा ही रहे थे ,गांव वालों ने भी बच्चों पर तरस खा कर जो जितना दे सका,दिया । सारा दिन मेहनत करके भी जैसी जिंदगी कमल अपने बच्चों को न दे सकी,वह उसकी मौत ने दिला दी । बच्चों के नाना ने कमला के पति को अच्छी नौकरी भी दिलवा दी ,जिसे वह कुछ महीने बाद ही छोड़ आया। गांव के कुछ लोगों का यह तक दावा था कि कमला बीमारी से नहीं मरी, छिन्दा उसके अंग बेचने के लिए ही बड़े शहर ले गया था ,और उसने वही किया भी । कमला को आखिरी स्नान करवाने वाली औरतों ने भी उसके शरीर पर जगह जगह टांकों के होने की बात की ,जो इस दावे पर मोहर की तरह थी ,पर किसी के पास कोई सबूत न था तो इस बात को मनघड़त ही मान लिया गया ।
स्नातक के बाद कुछ वर्ष आगे की पढ़ाई जारी रखने मैं घर से दूर रही। कमला का ख्याल भी मेरे मन में कभी नहीं आया । एक दिन मैंने यों ही मां से कमला के परिवार का हाल पूछा तो मां ने लंबी सांस लेकर कहा - " छिन्दा एक अधेड़ उम्र के आदमी से पैसे लेकर बड़ी बेटी का ब्याह उससे कर चुका है और अब तो वह खुद अपने लिए दुल्हन की तलाश में है ।"
मैंने हंसकर कहा- " लेकिन अब यह ब्रह्मराक्षस कमला जैसी कहां से लायेगा?"
मां बोली -" पर उसे कमला जैसी नहीं चाहिए अब , वो कहता है कि अब किसी पतिव्रता से ब्याह करेगा जो घर के अंदर रहकर उसकी सेवा करे , कमला जैसी नहीं, कि सारा दिन लोगों के घरों में घूमती फिरे।"
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